नई दिल्ली : उच्चतम न्यायालय ने एक महत्वपूर्ण व्यवस्था में कहा है कि महिलाएं घर के सदस्यों को बगैर पारिश्रमिक के सेवाएं देने में पुरुषों की तुलना में कहीं ज्यादा समय देती हैं, ऐसे में उनके श्रमदान को उस पुरुष से कम नहीं आंका जा सकता, जो बाहर जाकर कमाता है.
सड़क दुर्घटना में गृहणियों के पीड़ित होने के मामले में न्यायालय ने अपने फैसले में ये टिप्पणी की. न्यायमूर्ति एन वी रमण, न्यायमूर्ति एस अब्दुल नजीर और न्यायमूर्ति सूर्य कांत की पीठ ने सड़क दुर्घटना पीड़ितों को मुआवजे से जुड़े मामले में कहा कि गृहणियों को आर्थिक आधार पर मुआवजा देने के लिए कानून की स्थापित व्यवस्था है.
गृहणियों की काल्पनिक आमदनी निर्धारित करना उन महिलाओं के योगदान का सम्मान करना है जो स्वेच्छा से या सामाजिक/सांस्कृतिक मानकों की वजह से यह काम कर रहीं हैं. पीठ ने सड़क दुर्घटना में जान गंवाने वाले दंपती की दो पुत्रियों और एक अभिभावक की अपील पर फैसला सुनाते हुए दिल्ली उच्च न्यायालय के निर्णय में सुधार कर दिया.
उच्च न्यायालय ने इस मामले में दुर्घटना दावा अधिकरण द्वारा निर्धारित मुआवजे की राशि 40.71 लाख रुपए से कम कर दी थी. हाई कोर्ट का कहना था कि दुर्घटना में मरने वाली महिला एक गृहिणी थी, न कि कोई कमाऊ सदस्य.
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