मसूरी : हरी भरी पहाड़ों की रानी मसूरी (Mussoorie) अब बीतते दिनों के साथ अपनी पहचान खोती जा रही है. यहां की खूबसूरती और हरियाली कंक्रीट के जंगलों में गुम होने लगी है. आधुनिकीकरण और शहरीकरण की होड़ में यहां का स्वरूप दिनों दिन बदलता जा रहा है. क्याेंकि यहां तेजी से अवैध निर्माण किए जा रहे हैं.
हाई कोर्ट (High Court) के आदेशों के बाद भी यहां लगातार अवैध निर्माण जारी है. ताजा मामला देहरादून-मसूरी की पहाड़ियों पर अवैध रूप से किए निर्माण कार्य का है. तमाम रोक लगने के बाद भी यहां निर्माण कार्य जारी है. जिम्मेदार अधिकारी इस मामले पर आंख मूंदे बैठे हैं, जिससे उनकी कार्यप्रणाली पर सवाल खड़े होने लगे हैं. तमाम विरोधों के बावजूद नियमों को धता बताकर मसूरी की तलहटी में अवैध निर्माण कार्यों का होना अपने आप में कई सवाल खड़े करता है.
ये मामला कितना गंभीर है इसका अंदाजा इस बात से ही लगाया जा सकता है कि इस मामले में हाई कोर्ट (Nainital High Court) ने एमडीडीए (MDDA) को 9 जून तक अपना विस्तृत जवाब कोर्ट में पेश करने के आदेश दिए हैं. आखिर मसूरी की तलहटी में अवैध निर्माण कार्य क्यों हो रहे हैं, इसे लेकर क्या नियम हैं, आइये आपको बताते हैं.
क्या है पूरा मामला
दरअसल, देहरादून की रहने वाली रेनू पॉल ने हाई कोर्ट में इस मामले में एक जनहित याचिका दायर की है, जिसमें उन्होंने बताया कि उत्तराखंड के बिल्डिंग बायलॉज (building bylaws) के आधार पर 30 डिग्री से अधिक की ढाल पर भवन का निर्माण नहीं किया जा सकता है. इसके बावजूद मसूरी की तलहटी में नियमों के विरुद्ध भवनों का निर्माण किया जा रहा है.
याचिकाकर्ता का कहना है कि उत्तराखंड (Uttarakhand) की निर्माण नीति 2015 के संशोधन के अनुसार 30 डिग्री के आधार पर किसी भी प्रकार के भवन का निर्माण नहीं किया जा सकता, लेकिन इसके बाद भी कुछ लोगों ने मसूरी और देहरादून के बीच छोटी-छोटी पहाड़ियों को काटकर अंधाधुंध निर्माण करवाया है. इससे पर्यावरण पर बुरा असर पड़ा है. इसके साथ ही शिवालिक पर्वत श्रृंखला को भी कमजोर किया जा रहा है.
हाई कोर्ट लगा चुका है फटकार
मसूरी की तलहटी पर नियमों के विरुद्ध किए जा रहे अवैध निर्माण पर हाई कोर्ट ने भी सख्त रुख अपनाया है. हाई कोर्ट ने इस मामले में एमडीडीए के वीसी को जमकर लताड़ लगाई है. इस मामले में वीसी समेत नगर आयुक्त देहरादून को अपना जवाब पेश करने को कहा जा चुका है, मगर अभी तक इस मामले में कोई जवाब नहीं दिया गया है. कोर्ट ने इस मामले में नाराजगी भी व्यक्त की है. अब सख्त रुख अपनाते हुए एमडीडीए को 9 जून तक इस मामले में अपना विस्तृत जवाब पेश करने के आदेश दिए हैं.
क्या कहते हैं अधिकारी
एमडीडीए के सचिव प्रकाश चंद्र दुमका कहते हैं कि उत्तराखंड के बिल्डिंग बायलॉज के आधार पर 30 डिग्री से अधिक की ढाल पर भवन का निर्माण नहीं किया जा सकता. ऐसे में एमडीडीए की ओर से इस तरह के निर्माण की जांच के लिए वाडिया इंस्टीट्यूट और आपदा प्रबंधन विभाग को पत्र लिख ऐसे क्षेत्रों को चिन्हित करने में सहयोग करने की अपील की है. जिससे कि भविष्य में ऐसे क्षेत्रों में एमडीडीए की ओर से आवासीय या व्यवसायिक भवनों के नक्शों को पारित न किया जाए.
मलिन बस्तियों के मामले में फंसा पेंच
हालांकि, उनका कहना था कि रेनू पॉल की ओर से उच्च न्यायालय में दायर की गई याचिका में जिन चार क्षेत्रों का जिक्र किया गया है उसमें तीन मलिन बस्तियां भी हैं. वहीं इस पूरे प्रकरण में मलिन बस्तियों पर कार्रवाई करने में कई कानूनी पेंच फंस सकते हैं. क्योंकि राज्य सरकार की ओर से मलिन बस्तियों के खिलाफ किसी भी तरह की कार्रवाई न किए जाने का अध्यादेश 3 साल पूर्व ही लाया जा चुका है.
वहीं, देहरादून और मसूरी के बीच सड़क किनारे धड़ल्ले से चल रहे अवैध निर्माण के बारे में एमडीडीए के सचिव हरवीर सिंह कहते हैं कि अगर किसी जमीन पर अवैध कब्जा या अवैध निर्माण हो रहा है तो इसमें सबसे पहले जिम्मेदारी उस विभाग की होती है जिसकी जमीन पर अवैध निर्माण या कब्जा हो रहा है. वहीं, यदि उस विभाग की ओर से किसी अवैध निर्माण की शिकायत एमडीडीए प्रशासन को दी जाती है, तो उस निर्माण की सीलिंग और ध्वस्तीकरण के लिए निश्चित रूप से एमडीडीए सामने आता है.
हालांकि, बीते कुछ सालों में एमडीडीए की ओर से मसूरी और देहरादून के बीच कितने अवैध निर्माण के खिलाफ सीलिंग और ध्वस्तीकरण की कार्रवाई हुई इस मामले पर वे कुछ नहीं बोल सके.
क्या कहते हैं नियम
- उत्तराखंड में पहाड़ी इलाकों के लिए विशेष बिल्डिंग बायलॉज हैं.
- 30 डिग्री से अधिक की ढाल पर भवन निर्माण नहीं किया जा सकता.
- प्राकृतिक आपदाओं जैसे- भूकंप जैसी घटनाओं को ध्यान में रखकर ये नियम बनाए गए हैं.
- वन क्षेत्र को बिल्डिंग बायलॉज के ध्यान में रखा जाता है.
- पहाड़ी क्षेत्रों में अधिकतम 15 मीटर तक ऊंची बिल्डिंग बन सकती है.
- फुटहिल में 21 मीटर तक ऊंची बिल्डिंग को मंजूरी है.
- फुटहिल में देहरादून, नैनीताल, अल्मोड़ा, पौड़ी और टिहरी जिले के मैदानी और पहाड़ी क्षेत्र आते हैं.
मसूरी की तहलटी में हो रहा अवैध निर्माण
- यहां हो रहे निर्माणों में बिल्डिंग बायलॉज का ध्यान नहीं रखा जा रहा है.
- बिना मानकों के धड़ल्ले से अवैध निर्माण हो रहा है.
- यहां 30 डिग्री से अधिक ढलान है.
- उत्तराखंड निर्माण नीति 2015 के संशोधन के अनुसार ये गलत है.
- ढलान अधिक होने के कारण खतरे की संभावना ज्यादा है.
- प्राकृतिक आपदाओं में जनहानि हो सकती है.
- एमडीडीए और प्रशासन के अधिकारियों ने मामले में आंखें मूंद ली हैं.
वैज्ञानिकों ने अध्ययन में बताया है कि मसूरी (Mussoorie) और आस-पास के 15 प्रतिशत इलाकों पर भूस्खलन का बड़ा खतरा है. भाटाघाट, जॉर्ज एवरेस्ट, केम्टी फॉल, खट्टापानी, लाइब्रेरी, गलोगीधर और हाथीपांव की बस्तियों पर बहुत अधिक भूस्खलन संभावित क्षेत्र है. यहां पर खंडित चूना पत्थर की चट्टानें हैं. ये 60 डिग्री की ढलान पर हैं.
भूस्खलन की दृष्टि से मसूरी
- 15 प्रतिशत इलाकों में भूस्खलन का खतरा.
- मसूरी में कई बार हो चुकी हैं भूस्खलन की घटनाएं.
- 29 प्रतिशत इलाकों में मध्यम दर्जे के भूस्खलन की आशंका रहती है.
- 56 प्रतिशत इलाके में भूस्खलन की सबसे कम आशंका है.
उधर, मसूरी-देहरादून मार्ग पर लगातार हो रहे अतिक्रमण व अवैध निर्माण पर मंत्री गणेश जोशी ने सख्त रुख अपनाया है. उन्होंने कहा कानून से ऊपर कोई नहीं है. कानून अपना कार्य कर रहा है. अगर इसमें कोई गलत होगा तो उसे बक्शा नहीं जाएगा. उन्होंने कहा जिला प्रशासन ने इसका संज्ञान लिया है. अधिकारी इस मामले का निरीक्षण कर रहे हैं.
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बता दें पिछले साल में मसूरी-दून मार्ग पर व्यू साइड करीब 80 से अधिक निर्माण कार्य हुए हैं. संबंधित विभाग के अधिकारी इस मार्ग से होकर ही मसूरी आते हैं. मगर इस ओर किसी का ध्यान नहीं जा रहा है.
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इसके अतिरिक्त शहर की टिहरी बाय-पास एनएच 707A पर भी लक्ष्मणपुरी और आईडीएच के बीच, सुवाखोली के समीप लगातार अवैध निर्माण कार्य जोरों पर है.