रांची : किसी का ताल्लुक हीरे के कारोबार से था तो कोई 30 लाख के पैकेज पर नौकरी कर रहा था, कोई संपन्न परिवार का लाडला था तो किसी ने बेहतरीन शिक्षण संस्थान से डिग्री हासिल की थी. ऐसे पांच लोगों ने तमाम सुख-सुविधाएं, दुनियादारी की चकाचौंध और घर-परिवार की मोह-माया छोड़कर संन्यास और वैराग्य की राह पकड़ ली. रविवार को झारखंड स्थित जैनियों के विश्वप्रसिद्ध तीर्थस्थल मधुबन में होने वाले दीक्षा समारोह के बाद इन पांचों दीक्षार्थियों को एक नया नाम मिलेगा और वे सदा-सर्वदा के लिए जैन मुनि बन जायेंगे. दीक्षा समारोह का साक्षी बनने के लिए जैन समाज के हजारों लोग मधुबन पहुंचे हैं.
जैन धर्म के 24 में से 20 तीर्थंकरों की निर्वाण भूमि सम्मेद शिखर पारसनाथ में साधु संतों के सानिध्य में एक साथ पांच दीक्षार्थी दिगम्बरत्व जैन धर्म की दीक्षा ग्रहण करेंगे. इस निमित मधुबन स्थित तेरहपंथी कोठी में आचार्य विशुद्ध सागरजी महाराज के सानिध्य में भव्य दीक्षा महोत्सव का आयोजन किया गया है. मधुबन में साधनारत साधु संतों के सानिध्य में धार्मिक विधियां पूरी की जा रही है.
आचार्य विशुद्ध सागरजी महाराज देंगे दीक्षा
प्रसिद्ध जैनसंत आचार्य विशुद्ध सागरजी महाराज इन पांचों को दीक्षा देंगे. विशुद्ध सागरजी महाराज से प्रभावित होकर ही पांचों ने मुनि बनने की राह चुनी है. इनमें दिल्ली के रहने वाले 28 वर्षीय अविरल, मध्य प्रदेश के पन्ना जिले के ब्रजपुर निवासी हीरा व्यवसायी 46 वर्षीय ब्रजेश, इंदौर निवासी सरकारी अफसर के पुत्र 19 वर्षीय स्वागत, भोपाल निवासी 36 वर्षीय संजय और मध्य प्रदेश के ही भिंड निवासी 25 वर्षीय स्नातक अंकुश शामिल हैं. जैन मुनि के रूप में दीक्षित होने के पहले महीनों से ये सभी ब्रह्मचर्य व्रत का पालन कर रहे हैं. दीक्षा के 14 दिन पूर्व बिहार के गया के रमना रोड स्थित जिनालय में सकल दिगंबर जैन समाज की ओर से इनकी बिनौली यात्रा निकाली गयी थी. इसी समय गोदभराई की रस्म भी पूरी की गयी थी. इनके दीक्षा समारोह में शामिल होने उनके परिवार के लोग भी मधुबन पहुंचे हैं.
छोड़ा 30 लाख का पैकेज
मुनि बनने की राह पर बढ़ने के पहले दिल्ली निवासी अविरल बेंगलुरु में कंप्यूटर इंजीनियर रूप में कार्यरत थे. उन्होंने आईआईटी से इंजीनियरिंग की डिग्री ली और चार साल तक नौकरी की. बताया गया कि वह 30 लाख के पैकेज पर जॉब करते थे. अविरल के पिता प्रोफेसर पवन जैन दिल्ली के एक कॉलेज में कार्यरत हैं और माता अलका जैन गृहिणी हैं. इनके दो छोटे भाई भी उच्च पदों पर कार्यरत हैं. बताते हैं कि 2018 में बेंगलुरु में ही आचार्य विशुद्ध सागरजी महाराज का दर्शन करने पहुंचे थे. इसी दौरान उन्हें यह एहसास हुआ कि दुनियावी माया-मोह में कुछ भी नहीं है. वैराग्य के जीवन की ओर उनका आकर्षण बढ़ा. घर वाले हतप्रभ थे. उन्होंने बहुत कोशिश की कि अविरल संन्यास के बजाय घर पर रहकर ब्रह्मचर्य का मार्ग पकड़ लें, लेकिन अविरल के संकल्प के आगे आखिर सबको झुकना पड़ा.
फरवरी 2019 में उन्होंने नौकरी छोड़ी और विशुद्ध सागरजी महाराज के सानिध्य में आ गये. जैन मुनि बनने प्रक्रिया कठिन होती है. ढाई साल की साधना और तपस्या के बाद विशुद्ध सागरजी महाराज ने उन्हें दीक्षा देने की स्वीकृति दी. मध्य प्रदेश के पन्ना जिले के ब्रजेश परिवार के पुश्तैनी हीरा कारोबार से जुड़े थे. जिंदगी सुख-सुविधाओं के बीच गुजर रही थी. उन्होंने भी एक दिन विशुद्ध सागरजी महाराज के सानिध्य में आकर संन्यास का फैसला लिया.
इसी तरह भिंड निवासी अंकुश ने स्नातक पास की तो परिवार वालों ने उम्मीद लगा रखी थी कि वो करियर की कोई चमकती हुई राह ढूंढ़ेंगे. उन्होंने भी एक दिन अचानक घरवालों को संन्यास का निर्णय सुनाया तो सब हैरान रह गये. परिवार के लोगों ने मनाने की कोशिश की लेकिन अंतत: अंकुश के निर्णय पर सभी को सहमत होना पड़ा. बाकी दो की कहानियां भी ऐसी ही रहीं. इन सभी के संन्यास और दीक्षा को लेकर मधुबन में अभूतपूर्व भक्ति का माहौल है.
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