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इसरो व आईआईएससी ने अंतरिक्ष में जैव प्रयोगों के लिए विकसित किया उपकरण

भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (Isro) और भारतीय विज्ञान संस्थान (IISc) के शोधकर्ताओं की एक टीम ने सूक्ष्मजीवों की खेती के लिए एक मॉड्यूलर, स्व-निहित उपकरण विकसित किया है, जो वैज्ञानिकों को बाहरी अंतरिक्ष में जैविक प्रयोग करने में सक्षम बना सकता है.

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Published : Sep 4, 2021, 3:15 AM IST

इसरो व आईआईएससी
इसरो व आईआईएससी

बेंगलुरु : भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (Isro) और भारतीय विज्ञान संस्थान (IISc) के शोधकर्ताओं की एक टीम ने सूक्ष्मजीवों की खेती के लिए एक मॉड्यूलर, स्व-निहित उपकरण विकसित किया है, जो वैज्ञानिकों को बाहरी अंतरिक्ष में जैविक प्रयोग करने में सक्षम बना सकता है.

एक्टा एस्ट्रोनॉटिका में प्रकाशित एक अध्ययन में, टीम ने बताया है कि कैसे डिवाइस का उपयोग कम से कम मानवीय भागीदारी के साथ कई दिनों में स्पोरोसारसीना पेस्टुरी नामक जीवाणु के विकास को सक्रिय और ट्रैक करने के लिए किया जा सकता है.

इस बारे में आईआईएससी ने कहा कि यह समझना कि इस तरह के रोगाणु चरम वातावरण में कैसे व्यवहार करते हैं, मानव अंतरिक्ष मिशन जैसे 'गगनयान' के लिए मूल्यवान अंतर्दृष्टि प्रदान कर सकते हैं, वहीं भारत का पहला क्रू अंतरिक्ष यान 2022 में लॉन्च किया जाएगा.' इसी के मद्देनजर वैज्ञानिक तेजी से लैब-ऑन-चिप प्लेटफार्मों के उपयोग की खोज कर रहे हैं, जो कई विश्लेषणों को एक एकीकृत चिप में जोड़ते हैं . साथ ही ऐसे प्रयोगों के लेकर आईआईएससी ने कहा कि बाहरी के लिए ऐसे प्लेटफार्मों को डिजाइन करने के लिए अतिरिक्त चुनौतियां हैं.

ये भी पढ़ें - देश के 23 IIT नवंबर में अनुसंधान एवं विकास मेला आयोजित करेंगे : धर्मेंद्र प्रधान

वहीं अध्ययन दल के वरिष्ठ सदस्य व आईआईएससी के मैकेनिकल इंजीनियरिंग विभाग में सहायक प्रोफेसर कौशिक विश्वनाथन ने कहा कि इसे पूरी तरह से आत्म-निहित होना चाहिए. इसके अलावा, आप सामान्य प्रयोगशाला सेटिंग में समान परिचालन स्थितियों की अपेक्षा नहीं कर सकते हैं. उन्होंने बताया कि नया उपकरण प्रयोगशाला में उपयोग किए जाने वाले स्पेक्ट्रोफोटोमीटर के समान ऑप्टिकल घनत्व या प्रकाश के बिखरने को मापकर बैक्टीरिया के विकास को ट्रैक करने के लिए एक एलईडी और एक फोटोडायोड सेंसर संयोजन का उपयोग करता है.

बेंगलुरु : भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (Isro) और भारतीय विज्ञान संस्थान (IISc) के शोधकर्ताओं की एक टीम ने सूक्ष्मजीवों की खेती के लिए एक मॉड्यूलर, स्व-निहित उपकरण विकसित किया है, जो वैज्ञानिकों को बाहरी अंतरिक्ष में जैविक प्रयोग करने में सक्षम बना सकता है.

एक्टा एस्ट्रोनॉटिका में प्रकाशित एक अध्ययन में, टीम ने बताया है कि कैसे डिवाइस का उपयोग कम से कम मानवीय भागीदारी के साथ कई दिनों में स्पोरोसारसीना पेस्टुरी नामक जीवाणु के विकास को सक्रिय और ट्रैक करने के लिए किया जा सकता है.

इस बारे में आईआईएससी ने कहा कि यह समझना कि इस तरह के रोगाणु चरम वातावरण में कैसे व्यवहार करते हैं, मानव अंतरिक्ष मिशन जैसे 'गगनयान' के लिए मूल्यवान अंतर्दृष्टि प्रदान कर सकते हैं, वहीं भारत का पहला क्रू अंतरिक्ष यान 2022 में लॉन्च किया जाएगा.' इसी के मद्देनजर वैज्ञानिक तेजी से लैब-ऑन-चिप प्लेटफार्मों के उपयोग की खोज कर रहे हैं, जो कई विश्लेषणों को एक एकीकृत चिप में जोड़ते हैं . साथ ही ऐसे प्रयोगों के लेकर आईआईएससी ने कहा कि बाहरी के लिए ऐसे प्लेटफार्मों को डिजाइन करने के लिए अतिरिक्त चुनौतियां हैं.

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वहीं अध्ययन दल के वरिष्ठ सदस्य व आईआईएससी के मैकेनिकल इंजीनियरिंग विभाग में सहायक प्रोफेसर कौशिक विश्वनाथन ने कहा कि इसे पूरी तरह से आत्म-निहित होना चाहिए. इसके अलावा, आप सामान्य प्रयोगशाला सेटिंग में समान परिचालन स्थितियों की अपेक्षा नहीं कर सकते हैं. उन्होंने बताया कि नया उपकरण प्रयोगशाला में उपयोग किए जाने वाले स्पेक्ट्रोफोटोमीटर के समान ऑप्टिकल घनत्व या प्रकाश के बिखरने को मापकर बैक्टीरिया के विकास को ट्रैक करने के लिए एक एलईडी और एक फोटोडायोड सेंसर संयोजन का उपयोग करता है.

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