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भारतीय विज्ञान संस्थान ने ऊर्जा-दक्ष दीवारों के लिए विकसित की Low-C bricks

विज्ञान तथा प्रौद्योगिकी विभाग (Department of Science and technology) के मुताबिक, इस तरह की ईंटों के लिए उच्च तापमान वाले दहन की आवश्यकता नहीं है और पोर्टलैंड सीमेंट जैसी उच्च-ऊर्जा वाली सामग्री के उपयोग से भी बचा जा सकता है. साथ ही इस तरह की ईंटों के निपटान से जुड़ी समस्याओं का भी समाधान संभव है.

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Published : Sep 16, 2021, 9:51 PM IST

Low-C bricks
Low-C bricks

नई दिल्ली : अनुसंधानकर्ताओं ने निर्माण व तोड़-फोड़ (construction and demolition-C&D) वाले कचरों और क्षार-सक्रिय बाइंडरों (alkali-activated binders) के इस्तेमाल से ऊर्जा-दक्ष दीवारों (energy-efficient walling) के लिए कम मात्रा में कार्बन युक्त ईंटें (Low-C bricks) विकसित की हैं. विज्ञान तथा प्रौद्योगिकी विभाग (Department of Science and technology) के मुताबिक, इस तरह की ईंटों के लिए उच्च तापमान वाले दहन की आवश्यकता नहीं है और पोर्टलैंड सीमेंट जैसी उच्च-ऊर्जा वाली सामग्री के उपयोग से भी बचा जा सकता है. साथ ही इस तरह की ईंटों के निपटान से जुड़ी समस्याओं का भी समाधान संभव है.

परंपरागत रूप से, इमारतों का निर्माण, जली हुई ईंटों, कंक्रीट ब्लॉकों, फ्लाई ऐश ईंटों, आदि से होते, जिसमें ऊर्जा की खपत तो होती ही है, साथ ही कार्बन उत्सर्जन भी होता है. परिणामस्वरूप इमारतें कमजोर होती हैं.

टिकाऊ निर्माण को बढ़ावा देने के लिए, चिनाई वाली इकाइयों का निर्माण करते समय दो महत्वपूर्ण चीजें-खनन कच्चे माल के संसाधनों का संरक्षण और कार्बन उत्सर्जन में कमी लाने पर ध्यान देने की जरूरत है.

भारतीय विज्ञान संस्थान (Indian Institute of Science-IISc) के वैज्ञानिकों ने फ्लाई ऐश और फर्नेस स्लैग का उपयोग करके क्षार-सक्रिय ईंटों/ब्लॉकों के उत्पादन के लिए इस तकनीक को विकसित किया है. अनुसंधानकर्ताओं की टीम ने फ्लाई ऐश और ग्राउंड स्लैग का उपयोग करके क्षार-सक्रिय प्रक्रिया के माध्यम से निर्माण और तोड़-फोड़ वाले कचरे से कम मात्रा में कार्बन वाली ईंटों को विकसित किया और उनकी थर्मल, संरचनात्मक और मजबूती से संबंधित विशेषताएं बताईं हैं.

IISc Bangalore के प्रोफेसर बी वी वेंकटरामा रेड्डी का कहना है कि एक स्टार्ट-अप पंजीकृत किया गया है, जहां IISc की तकनीकी मदद से कम मात्रा में कार्बन वाली ईंटों और ब्लॉकों का निर्माण किया जाएगा. जो छह-नौ महीनों के भीतर काम करने लगेगा.

नई दिल्ली : अनुसंधानकर्ताओं ने निर्माण व तोड़-फोड़ (construction and demolition-C&D) वाले कचरों और क्षार-सक्रिय बाइंडरों (alkali-activated binders) के इस्तेमाल से ऊर्जा-दक्ष दीवारों (energy-efficient walling) के लिए कम मात्रा में कार्बन युक्त ईंटें (Low-C bricks) विकसित की हैं. विज्ञान तथा प्रौद्योगिकी विभाग (Department of Science and technology) के मुताबिक, इस तरह की ईंटों के लिए उच्च तापमान वाले दहन की आवश्यकता नहीं है और पोर्टलैंड सीमेंट जैसी उच्च-ऊर्जा वाली सामग्री के उपयोग से भी बचा जा सकता है. साथ ही इस तरह की ईंटों के निपटान से जुड़ी समस्याओं का भी समाधान संभव है.

परंपरागत रूप से, इमारतों का निर्माण, जली हुई ईंटों, कंक्रीट ब्लॉकों, फ्लाई ऐश ईंटों, आदि से होते, जिसमें ऊर्जा की खपत तो होती ही है, साथ ही कार्बन उत्सर्जन भी होता है. परिणामस्वरूप इमारतें कमजोर होती हैं.

टिकाऊ निर्माण को बढ़ावा देने के लिए, चिनाई वाली इकाइयों का निर्माण करते समय दो महत्वपूर्ण चीजें-खनन कच्चे माल के संसाधनों का संरक्षण और कार्बन उत्सर्जन में कमी लाने पर ध्यान देने की जरूरत है.

भारतीय विज्ञान संस्थान (Indian Institute of Science-IISc) के वैज्ञानिकों ने फ्लाई ऐश और फर्नेस स्लैग का उपयोग करके क्षार-सक्रिय ईंटों/ब्लॉकों के उत्पादन के लिए इस तकनीक को विकसित किया है. अनुसंधानकर्ताओं की टीम ने फ्लाई ऐश और ग्राउंड स्लैग का उपयोग करके क्षार-सक्रिय प्रक्रिया के माध्यम से निर्माण और तोड़-फोड़ वाले कचरे से कम मात्रा में कार्बन वाली ईंटों को विकसित किया और उनकी थर्मल, संरचनात्मक और मजबूती से संबंधित विशेषताएं बताईं हैं.

IISc Bangalore के प्रोफेसर बी वी वेंकटरामा रेड्डी का कहना है कि एक स्टार्ट-अप पंजीकृत किया गया है, जहां IISc की तकनीकी मदद से कम मात्रा में कार्बन वाली ईंटों और ब्लॉकों का निर्माण किया जाएगा. जो छह-नौ महीनों के भीतर काम करने लगेगा.

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