मुंबई: शिवसेना (उद्धव बालासाहेब ठाकरे) के नेता संजय राउत ने शुक्रवार को कहा कि उनकी पार्टी कर्नाटक के सीमावर्ती क्षेत्रों के लिए केंद्रशासित प्रदेश के दर्जे की मांग नहीं करेगी यदि उस राज्य की सरकार स्थानीय मराठी भाषी लोगों के साथ निष्पक्ष व्यवहार करती है. शिवसेना नेता उद्धव ठाकरे ने मांग की थी कि उच्चतम न्यायालय में इस मामले के लंबित रहने के दौरान कर्नाटक के सीमावर्ती क्षेत्र, जिस पर महाराष्ट्र दावा कर रहा है, को केंद्रशासित प्रदेश घोषित कर दिया जाए. इस पर कर्नाटक के कुछ नेताओं ने यह कहते हुए पलटवार किया था कि मुंबई को केंद्रशासित प्रदेश बना दिया जाए.
राउत ने यहां संवाददाताओं से कहा कि हम कर्नाटक में बेलगावी और आसपास के मराठी भाषी क्षेत्रों को केंद्र शासित प्रदेश घोषित करने की मांग इसलिए करते हैं क्योंकि मराठी लोगों, उनकी भाषा एवं उनकी संस्कृति के साथ भेदभाव किया जाता है. राज्यसभा के सदस्य राउत ने कहा कि यदि कर्नाटक सरकार एवं स्थानीय संगठन नाइंसाफी रोक देते हैं तो हम अपनी मांग वापस ले लेंगे.
1956 में विवाद की हुई शुरुआत: दरअसल इस विवाद की शुरुआत 1956 में हुई थी. 1956 में राज्य पुनर्गठन एक्ट (State Reorganisation Act, 1956) पारित किया गया था. इसके जरिए देश को 14 राज्यों और 6 केंद्र शासित प्रदेशों में बांटा गया था. दिसंबर 1953 में फजल अली की अध्यक्षता में एक तीन सदस्यीय राज्य पुनर्गठन आयोग बनाया गया. इसमें फजल अली के साथ ही के एम पणिक्कर और एच एन कुंजरू सदस्य थे.
आयोग ने 1955 में अपनी रिपोर्ट पेश की. आयोग ने रिपोर्ट में ये बात मानी कि राज्यों के पुनर्गठन में भाषा को मुख्य आधार बनाया जाना चाहिए, लेकिन 'एक राज्य एक भाषा' के सिद्धांत को अस्वीकार कर दिया. इससे साफ था कि सिर्फ भाषाई आधार पर राज्यों का पुनर्गठन नहीं होना चाहिए. इन सिफारिशों को मानते हुए राज्य पुनर्गठन एक्ट 1956 पारित किया गया और 1 नवंबर 1956 को 14 राज्य और 6 केंद्र शासित प्रदेशों का गठन किया गया.
1956 में बॉम्बे और मैसूर के नाम से था प्रांत: राज्य पुनर्गठन एक्ट 1956 के तहत बॉम्बे ( मौजूदा महाराष्ट्र) और मैसूर ( मौजूदा कर्नाटक) राज्य बनाए गए. एक मई 1960 को बॉम्बे (Bombay) को बांटकर दो राज्य महाराष्ट्र और गुजरात बनाया गया. मराठी भाषा को आधार बनाकर महाराष्ट्र और गुजराती भाषा को आधार बनाकर गुजरात बनाया गया. वहीं एक नवंबर 1973 को मैसूर (Mysore) प्रांत का नाम बदलकर कर्नाटक कर दिया गया.
संसद में भी दोनों राज्यों ने दिए थे तर्क: महाराष्ट्र-कर्नाटक के बीच सीमा विवाद की नींव राज्य पुनर्गठन एक्ट 1956 से ही पड़ गई थी. उस वक्त बॉम्बे और मैसूर के बीच सीमा निर्धारण के बाद से ही विवाद शुरू हो गया. विवादित क्षेत्र में मराठी और कन्नड भाषी दोनों लोग शामिल हैं. इस वजह से सिर्फ भाषायी आधार पर विवाद को समझना थोड़ा मुश्किल है. 1956 में बॉम्बे (मौजूदा महाराष्ट्र) और मैसूर ( मौजूदा कर्नाटक) दोनों ने ही सीमा पर लगे कई शहरों और गांवों को अपने-अपने राज्य में मिलाने के लिए संसद में तर्क दिया.
महाराष्ट्र मराठी भाषा को बनाता है आधार: बॉम्बे का दावा था कि मैसूर के उत्तर पश्चिम जिला बेलगाम (बेलगावी) को मराठी भाषा होने की वजह से बॉम्बे का हिस्सा होना चाहिए. इस विश्वास की वजह से ही महाराष्ट्र हमेशा से कर्नाटक के इस इलाके पर अपना दावा करते रहा है. 1957 में ही बॉम्बे राज्य ने राज्य पुनर्गठन एक्ट के सेक्शन 21 (2) (b) को लागू करके मैसूर के साथ अपने सीमा को फिर से निर्धारित करने की मांग की. बॉम्बे प्रांत ने केंद्रीय गृह मंत्रालय को इससे जुड़ा ज्ञापन सौंपते हुए मराठी भाषा क्षेत्रों को कर्नाटक के साथ जोड़े जाने पर आपत्ति जताया.
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(पीटीआई-भाषा)