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प. बंगाल चुनाव : शुरू हुई पहचान की राजनीति, उड़ने लगा सांप्रदायिकता का रंग - संतुलन बनाने में सरकार फेल

केंद्रीय गृह मंत्रालय द्वारा 2018 में जारी आंकड़ों के मुताबिक पश्चिम बंगाल में 2015 से सांप्रदायिक हिंसा तेजी से बढ़ी है. कांग्रेस के वरिष्ठ नेता अब्दुल मन्नान ने कहा कि 70 के दशक तक आईयूएमएल, पीएमएल और भारतीय जन संघ जैसे दल कुछ सीटें जीतने में कामयाब रहे, लेकिन चुनावी अभियान सांप्रदायिक विमर्श पर केंद्रित नहीं थे. विकास संबंधी मुद्दे, राज्य और केंद्र सरकार विरोधी मुद्दे ही हावी रहे.

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Published : Mar 2, 2021, 5:50 PM IST

कोलकाता : पश्चिम बंगाल में आठ चरणों में होने जा रहे विधानसभा चुनाव के बारे में विभिन्न दलों के नेताओं का मानना है कि इस बार चुनाव में सांप्रदायिकता का छौंक लगेगा और पहचान आधारित राजनीति होगी. बंगाल में आमतौर पर चुनावी विमर्श विभाजनकारी एजेंडे से परे रहा है.

तृणमूल कांग्रेस और भाजपा द्वारा चुनाव से पहले एक-दूसरे पर सांप्रदायिक भावनाओं को भड़काने के आरोपों के बीच इस बार के चुनाव सांप्रदायिक रंग में रंगते दिख रहे हैं. पश्चिम बंगाल की राजनीति में आने वाले पहले धार्मिक नेता अब्बास सिद्दिकी की अगुआई में नवगठित इंडियन सेक्युलर फ्रंट के चुनावी मैदान में उतरने के साथ कई राजनीतिक समीकरण बदल गए हैं. राज्य में धार्मिक पहचान आधारित सियासत की शुरुआत हो चुकी है.

तुष्टिकरण की राजनीतिक

तृणमूल कांग्रेस के वरिष्ठ नेता एवं सांसद सौगत रॉय ने कहा कि आजादी के बाद से जितने भी विधानसभा चुनाव हुए, उनके मुकाबले इस बार के चुनाव काफी अलग होंगे. भाजपा समुदायों के बीच विभाजन की लंबे समय से कोशिश कर रही है. लेकिन हम इसके खिलाफ लड़ेंगे और लोगों को एकजुट रखने के लिए काम करेंगे. भाजपा नेतृत्व ने भी यह स्वीकारा है कि राज्य में सांप्रदायिक धुव्रीकरण बढ़ रहा है, लेकिन इसका दोषी उन्होंने तृणमूल और उसकी तुष्टिकरण की राजनीतिक को ठहराया.

सांप्रदायिक विभाजन गहराया

भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष दिलीप घोष ने कहा कि हमारे लिए, तो चुनाव 'सभी के लिए विकास' है. तृणमूल कांग्रेस सरकार की तुष्टिकरण की राजनीति और राज्य के बहुसंख्यक समुदाय के प्रति उसके द्वारा किए जा रहे अन्याय से बंगाल में निश्चित ही सांप्रदायिक ध्रुवीकरण हुआ है. भाजपा नेता तथागत रॉय ने कहा कि बंटवारे के दाग और बंगाल में मुस्लिम पहचान वाली राजनीति के बढ़ने से सांप्रदायिक विभाजन गहरा गया है. माकपा के पोलित ब्यूरो सदस्य मोहम्मद सलीम ने कहा, 'पहले (माकपा शासन के दौरान) यदि सांप्रदायिक विमर्श हावी होता, तो भगवा दलों और अन्य चरमपंथी दलों ने अपना आधार बना लिया होता. लेकिन ऐसा नहीं हुआ.

सांप्रदायिक दंगों पर काबू पाने में विफल

यह सच है कि इस बार दल सांप्रदायिक कार्ड खेल रहे हैं, लेकिन आम लोगों से जुड़े विषय जैसे कि ईंधन की कीमतों में बढ़ोतरी, भ्रष्टाचार और बेरोजगारी आदि का भी बहुत हद तक प्रभाव रहेगा. बंगाल में 27 मार्च से शुरू होकर आठ चरणों में चुनाव होने हैं. भाजपा के सूत्रों का कहना है कि बीते छह साल में तृणमूल की सरकार सांप्रदायिक दंगों पर काबू पाने में विफल रही है, जिससे न केवल अल्पसंख्यकों का एक वर्ग नाराज है, बल्कि बहुसंख्यक समुदाय के लोगों में भी रोष है.

यह भी पढ़ें-पश्चिम बंगाल में गरजे सीएम योगी, कहा- बंगाल हमेशा से परिवर्तन की धरती रही

चुनावी पयर्वेक्षकों का मानना है कि वाम दल ने समुदायों के बीच एक संतुलन कायम रखा था, लेकिन तृणमूल इसे कायम नहीं रख सकी.

कोलकाता : पश्चिम बंगाल में आठ चरणों में होने जा रहे विधानसभा चुनाव के बारे में विभिन्न दलों के नेताओं का मानना है कि इस बार चुनाव में सांप्रदायिकता का छौंक लगेगा और पहचान आधारित राजनीति होगी. बंगाल में आमतौर पर चुनावी विमर्श विभाजनकारी एजेंडे से परे रहा है.

तृणमूल कांग्रेस और भाजपा द्वारा चुनाव से पहले एक-दूसरे पर सांप्रदायिक भावनाओं को भड़काने के आरोपों के बीच इस बार के चुनाव सांप्रदायिक रंग में रंगते दिख रहे हैं. पश्चिम बंगाल की राजनीति में आने वाले पहले धार्मिक नेता अब्बास सिद्दिकी की अगुआई में नवगठित इंडियन सेक्युलर फ्रंट के चुनावी मैदान में उतरने के साथ कई राजनीतिक समीकरण बदल गए हैं. राज्य में धार्मिक पहचान आधारित सियासत की शुरुआत हो चुकी है.

तुष्टिकरण की राजनीतिक

तृणमूल कांग्रेस के वरिष्ठ नेता एवं सांसद सौगत रॉय ने कहा कि आजादी के बाद से जितने भी विधानसभा चुनाव हुए, उनके मुकाबले इस बार के चुनाव काफी अलग होंगे. भाजपा समुदायों के बीच विभाजन की लंबे समय से कोशिश कर रही है. लेकिन हम इसके खिलाफ लड़ेंगे और लोगों को एकजुट रखने के लिए काम करेंगे. भाजपा नेतृत्व ने भी यह स्वीकारा है कि राज्य में सांप्रदायिक धुव्रीकरण बढ़ रहा है, लेकिन इसका दोषी उन्होंने तृणमूल और उसकी तुष्टिकरण की राजनीतिक को ठहराया.

सांप्रदायिक विभाजन गहराया

भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष दिलीप घोष ने कहा कि हमारे लिए, तो चुनाव 'सभी के लिए विकास' है. तृणमूल कांग्रेस सरकार की तुष्टिकरण की राजनीति और राज्य के बहुसंख्यक समुदाय के प्रति उसके द्वारा किए जा रहे अन्याय से बंगाल में निश्चित ही सांप्रदायिक ध्रुवीकरण हुआ है. भाजपा नेता तथागत रॉय ने कहा कि बंटवारे के दाग और बंगाल में मुस्लिम पहचान वाली राजनीति के बढ़ने से सांप्रदायिक विभाजन गहरा गया है. माकपा के पोलित ब्यूरो सदस्य मोहम्मद सलीम ने कहा, 'पहले (माकपा शासन के दौरान) यदि सांप्रदायिक विमर्श हावी होता, तो भगवा दलों और अन्य चरमपंथी दलों ने अपना आधार बना लिया होता. लेकिन ऐसा नहीं हुआ.

सांप्रदायिक दंगों पर काबू पाने में विफल

यह सच है कि इस बार दल सांप्रदायिक कार्ड खेल रहे हैं, लेकिन आम लोगों से जुड़े विषय जैसे कि ईंधन की कीमतों में बढ़ोतरी, भ्रष्टाचार और बेरोजगारी आदि का भी बहुत हद तक प्रभाव रहेगा. बंगाल में 27 मार्च से शुरू होकर आठ चरणों में चुनाव होने हैं. भाजपा के सूत्रों का कहना है कि बीते छह साल में तृणमूल की सरकार सांप्रदायिक दंगों पर काबू पाने में विफल रही है, जिससे न केवल अल्पसंख्यकों का एक वर्ग नाराज है, बल्कि बहुसंख्यक समुदाय के लोगों में भी रोष है.

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चुनावी पयर्वेक्षकों का मानना है कि वाम दल ने समुदायों के बीच एक संतुलन कायम रखा था, लेकिन तृणमूल इसे कायम नहीं रख सकी.

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