हैदराबाद: ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (AIMIM) के प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी ने 2022 के यूपी विधानसभा चुनाव में दो-दो हाथ करने के लिए कमर कस ली है. इसके लिए ओवैसी ने खुद ही मोर्चा संभाला है और पूरे प्रान्त के अलग-अलग हिस्सों में सम्मेलनों की शुरुआत भी कर दी है. यूं तो ओवैसी का ये तीसरा चुनावी दौरा है लेकिन अयोध्या से शुरू किया गया तीन शहरों (अयोध्या, सुल्तानपुर और बाराबंकी ) का ये अभियान थोड़ा अलग है. इसकी रणनीति थोड़ी सटीक बैठती नज़र आ रही है. या यूँ कहें की उनके "यूपी मिशन" ने अब असर दिखाना शुरू कर दिया है.
यूपी की नब्ज़ टटोलने निकले हैं ओवैसी
अयोध्या पहुंचने से पहले ही ओवैसी का विरोध शुरू हो गया है. वजह अयोध्या को फैजाबाद लिखा जाना है. संत समाज ने ओवैसी के दौरे पर रोक लगाने की मांग की है. बाबरी मस्जिद के मुख्य पक्षकार रहे इकबाल अंसारी ने मुखर होकर असदुद्दीन ओवैसी के अयोध्या दौरे का विरोध किया है. इकबाल अंसारी ने भारत के मुसलमानों से अपील की है कि वो ओवैसी के बहकावे में ना आएं. अयोध्या के रूदौली गांव में सम्मलेन को समाज का "शोषित वंचित समाज का सम्मेलन" नाम दिया गया है. जिसमें मुसलमानों, दलितों, पिछड़ों और अन्य वर्गों के लोगों को बुलाया गया है. ऐसा ही सम्मलेन 8 तारीख को सुल्तानपुर में और 9 सितंबर को बाराबंकी में आयोजित कर जनता की नब्ज टटोलने की कोशिश की जाएगी.
रूदौली रवाना होने से ठीक पहले ओवैसी ने मीडिया के सामने अपनी पार्टी की मंशा साफ़ कर दी. उन्होंने कहा कि आज़ाद भारत में पिछले साठ साल से मुसलमान सिर्फ दूसरों को जिताते आये है, लेकिन अब हम (मुसलमान ) अपना वोट खुद को देना चाहते है. मंशा साफ़ है कि ओवैसी अपनी पार्टी AIMIM को मुसलमानों की सदारत पार्टी बनाना चाहते है , यानि कि मुस्लिम लीडरशिप हथियाना चाहते है जो अभी तक कांग्रेस, सपा या बसपा के पास हुआ करती थी.
ओवैसी ने अयोध्या को क्यों चुना?
भाजपा ने सिर्फ राम मंदिर निर्माण की आधारशिला नहीं रखी बल्कि पार्टी को आगामी चुनाव जिताने की भी बुनियाद रख दी. यही वजह है कि सभी राजनीतिक दलों को अब अयोध्या याद आ रहा है. ओवैसी ने आज यहाँ से "शोषित वंचित समाज सम्मेलन" की शुरुआत की है. रुदौली विधानसभा अयोध्या जनपद की इकलौती ऐसी सीट है, जहां मुस्लिम मतदाताओं की संख्या सबसे अधिक है. AIMIM यहां से शेर अफगन के रूप में अपना प्रत्याशी भी घोषित कर चुकी है. बहुजन समाज पार्टी प्रबुद्ध समाज सम्मेलन के नाम से अयोध्या आ चुकी है. आम आदमी पार्टी भी नोएडा और आगरा के बाद अयोध्या का रुख करने जा रही है. यहां से "आप" 14 सितंबर को अयोध्या में तिरंगा संकल्प यात्रा निकालने जा रही है. भाजपा भी उत्तर प्रदेश की 403 विधानसभाओं में पिछड़ा वर्ग जन जागरण अभियान चलाने का ऐलान कर चुकी है. इसके लिए भी भाजपा अयोध्या में पिछड़ा वर्ग के 14 जनपदों के पदाधिकारियों के साथ बैठक कर चुकी है.
निगाहें और निशाना एक ही जगह
यूपी में तकरीबन बीस फीसदी मुस्लिम हैं. जिनका पूरे प्रदेश की लगभग 140 से 150 सीटों पर परोक्ष या अपरोक्ष रूप से असर है. ओवैसी इन्हीं सीटों को साधने के लिए यूपी के चुनावी समर में कूद पड़े हैं. उनका मानना है कि 70 फीसदी मुस्लिम वोटों के दम पर कांग्रेस, सपा और बसपा उत्तर प्रदेश में हमेशा से राज करते आये हैं. तो एक मुस्लिम पार्टी खुद सत्ता में क्यों नहीं आ सकती. दरअसल ओवैसी एक और रणनीति पर काम कर रहे है, वो है बीस फीसदी दलित वोटों में सेंध लगाने की, यदि बीस फीसद दलित और उन्नीस फीसद मुस्लिम एक हो जाएं तो भाजपा को पटखनी दी जा सकती है. ऐसे में ओवैसी उत्तर प्रदेश की राजनीति के कर्णधार बन जाएंगे.
इसी के चलते उन्होंने ओम प्रकाश राजभर की पार्टी सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी के साथ मिलकर अपनी तैयारी शुरू की है. चर्चा ये भी है कि इस गठबंधन को विस्तार देने के लिए भीम आर्मी भी ओवैसी के साथ आ सकती है. पिछले दिनों (27 अगस्त) तीनों पार्टियों के मुखियाओं की लखनऊ में मुलाकात हुई थी. इसके अलावा AIMIM ने सपा को भी जोड़ने के लिए खुला ऑफर दे रखा है कि सत्ता में आने पर उपमुख्यमत्री पद किसी मुस्लिम को देना होगा.
एक तीर से कई शिकार
यूपी के बाहुबली और पूर्व सांसद अतीक अहमद की पत्नी शाइस्ता परवीन भी AIMIM से जुड़ गयीं. उनके पति अतीक अहमद फिलहाल जेल में बंद हैं. माना जा रहा है कि प्रयागराज पश्चिमी सीट से विधानसभा चुनाव लड़ने के लिए AIMIM शाइस्ता को टिकट दे सकती है. 5 बार विधायक और साल 2004 में सांसद रह चुके उनके पति अतीक अहमद जेल में रहकर ओवैसी की पार्टी की कितनी मदद कर पाएंगे ये तो भविष्य की गर्त में दबा प्रश्न है. लेकिन अतीक के इस दांव ने सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव के माथे पर ज़रूर शिकन ला दी होगी ? क्योंकि अतीक अहमद को अखिलेश ने पार्टी से बाहर का रास्ता दिखा दिया था. प्रयागराज में अतीक अहमद की गहरी पैठ है ,जहाँ से वह सपा के टिकट पर ही लोकसभा जा चुके हैं.
जानकारों की मानें तो यूपी में अगर भाजपा को रोकना है तो सपा-बसपा के साथ हमारा भागीदारी संकल्प मोर्चा को मिलकर लड़ना होगा. इससे मुसलमानों का बीस प्रतिशत वोट बिखरने से बच जाएगा, लेकिन ओवैसी के साथ समझौता करके समाजवादी पार्टी, अपने पैरों पर कभी कुल्हाड़ी नहीं मारेगी. अगर ओवैसी ने यूपी में पैर जमा लिए तो फिर समाजवादी पार्टी का अस्तित्व भगवान भरोसे ही रह जाएगा. उधर बसपा प्रमुख मायावती भी मुसलमानों को रिझाने में लगी हैं वह दलितों ब्राह्मणों और मुसलमानों को मिलाकर एक बड़ा वोट बैंक तैयार करना चाहती हैं.
बिहार और बंगाल के बाद यूपी पर नजर
एआईएमआईएम ने उत्तर प्रदेश की 100 विधान सभा सीटों पर उम्मीदवार उतारने का ऐलान किया है. बता दें कि हाल के पश्चिम बंगाल के हुए विधानसभा चुनाव में ओवैसी की पार्टी को कुछ ज्यादा हाथ नहीं लगा था. लेकिन इससे पहले बिहार के विधानसभा चुनावों में पांच सीटें जीतकर AIMIM अपना लोहा मनवा चुकी है. ओवैसी भले ही अपने आप को मुस्लिमों का रहनुमा मानते हों और इसके सहारे उन्होंने बिहार में कुछ विधान सभा की सीटें भी जीत ली हैं, लेकिन उत्तर प्रदेश में हालात दूसरे हैं, यहां मुसलमान पहले कांग्रेस को अपना रहनुमा मानते थे और उससे मोह भांग होने के बाद सपा को ही अपना सबसे बड़ा रहनुमा मानती है.
हाल के पश्चिम बंगाल के हुए विधानसभा चुनाव में ओवैसी की पार्टी को कुछ ज्यादा हाथ नहीं लगा था. तो क्या ओवैसी उत्तर प्रदेश में अपनी जड़ें जमाने में कामयाब हो पाएंगे ? यूपी में कई मुस्लिम बाहुबली नेताओं को योगी सरकार ने जेल की सलाखों के पीछे डाल दिया है. सबसे ताक़तवर आज़म खान भी अपनी ज़िंदगी के बुरे दिनों से गुज़र रहे हैं, आगामी चुनाव में आज़म खान या उनकी परिवार का क्या रोले रहेगा ये भी साफ़ नहीं है. आज ओवैसी ने भी पत्रकारों के सवालों के जवाब में आजम खान पर चुप्पी साध ली लेकिन अखिलेश पर जमकर बरसे. मुस्लिम राजनीति आगामी यूपी विधानसभा चुनाव में बेहद रणनीतिक रहने वाली है. ओवैसी इन्ही सारे हालातों का फायदा उठाकर राष्ट्रीय राजनीति की धुरी बनना चाहते है.
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