शिमला: हिमाचल में नई बनने वाली कांग्रेस की सरकार के सामने चुनौतियों का पहाड़ है. हिमाचल का खजाना खाली है और करीब 70 हजार करोड़ का कर्ज है, हालात यह है कि सरकार के पास कर्मचारियों के नए वेतनमान की अदायगियों देने के लिए पैसे नहीं है. ऐसे में कांग्रेस सरकार के सामने सबसे बड़ी चुनौती अपनी गारंटियों को पूरी करने की रहेगी. कांग्रेस के सामने महिलाओं को हर माह 1500 रुपए देने और ओपीएस लागू करने की एक बड़ी चुनौती रहेगी. (loan on himachal) (loan loan on himachal pradesh)
हिमाचल में अभी कांग्रेस सरकार बनने वाली है, लेकिन चुनौतियां अभी से कम नहीं है. हजारों करोड़ कर्ज में डूबे हिमाचल कांग्रेस सरकार के सामने अपनी बड़ी गारंटियों को पूरी करने की चुनौती रहेगी. कांग्रेस ने अबकी बार दस गारंटियां हिमाचल की जनता को दी है. चुनावों से पहले किए गए इन वादों को पूरा करने का अब समय आ रहा है. कांग्रेस ने वादा किया है कि महिलाओं को हर माह 1500 रूपए देने, ओपीएस बहाली करने का फैसला पहली कैबिनेट में ही लिया जाएगा. इसी तरह एक लाख युवाओं को रोजगार देने का वादा भी कांग्रेस ने अपने घोषणा पत्र में किया है.
गारंटियां पूरा करने के लिए कहां से आएगा नई सरकार के पास पैसा: कांग्रेस द्वारा किए गए वादों को पूरा करने के लिए पैसे की कमी कांग्रेस की नई सरकार को खलेगी. हिमाचल वैसे भी कर्ज लेकर ही काम चला रहा है. कर्मचारियों को संशोधित वेतनमान के लिए सरकार को कर्ज लेकर काम चलाना पड़ा है. हिमाचल सरकार के खजाने पर इस बार नए वेतन आयोग की देनदारी का बोझ पड़ा है. अभी भी एरियर का 8000 करोड़ और डीए का करीबन 2 हजार करोड़ रुपये, कुल मिलाकर 10000 करोड़ की देनदारी कर्मचारियों व पेंशनर्स की है. इससे लिए भी सरकार को कर्ज लेना पड़ेगा.
हिमाचल सरकार की इस वित्त वर्ष की लोन लिमिट 9700 करोड़ रुपए है, इसमें से 7000 करोड़ रुपए का कर्ज लिया जा चुका है. दिसंबर महीने में एक हजार करोड़ रुपए का कर्ज और लेना पड़ेगा. इसके बाद हिमाचल के पास लिमिट के अनुसार कुल 1700 करोड़ रुपए का कर्ज लेना बाकी रह जाएगा. इस तरह अंतिम तिमाही में 1700 करोड़ रुपए से सरकार को काम चलाना पड़ेगा. अन्यथा इस वित्तीय वर्ष की आखिरी तिमाही यानी जनवरी से लेकर मार्च की 31 तारीख तक अलग से एक लिमिट बनेगी.
कर्ज चुकाने के लिए कर्ज लेने की स्थिति में पहुंचा हिमाचल: हालांकि किसी भी राज्य के लिए कर्ज लेना बुरी बात नहीं लेकिन जब प्रिंसिपल अमाउंट चुकाने के लिए भी कर्ज लेना पड़े तो स्थिति चिंताजनक हो जाती है. हिमाचल में ऐसा ही हो रहा है. जयराम सरकार ने इस बार अपना आखिरी बजट 51 हजार करोड़ रुपए का पेश किया था. आंकड़ों पर नजर डालें तो उस बजट में 5136 करोड़ रुपए की रकम तो पुराने लोन का ब्याज चुकाने में खर्च हो गई. फिर 5650 करोड़ रुपए की रकम लोन की री-पेमेंट पर खर्च हुई. इस तरह 10786 करोड़ रुपए का लोन का चुकाया गया, जबकि इस साल अब तक सात हजार करोड़ रूपए का कर्ज लिया जा चुका है और अभी और कर्ज लेने की स्थिति आ गई है.
सेंट्रल ग्रांट न मिलने पर बढ़ेगी मुश्किल: हिमाचल सरकार को वित्त आयोग के रेवेन्यू डेफिसिट ग्रांट के तौर पर 900 करोड़ रुपये हर महीने मिलते हैं. कर्मचारियों के वेतन पर हर महीने 1200 करोड़ रुपये के करीब खर्च होता है, जिसका अधिकांश भार रेवेन्यू डेफिसिट ग्रांट उठा लेता है. आगामी समय में ये रकम निरंतर कम होती जाएगी. फिर जीएसटी कंपनसेशन का घाटा अलग से उठाना पड़ रहा है. करीब 4 हजार करोड़ रुपए सालाना इसकी कमी पड़ रही है. इन परिस्थितियों में कांग्रेस सरकार को 70 हजार करोड़ रुपए के कर्ज के पहाड़ के साथ लोगों से किए वादों को पूरा करना असंभव रहेगा. (Congress government in Himachal) (congress guarantee in himachal) (70 thousand crore debt on Himachal).
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