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किसान आंदोलन पर SC सख्त, कहा-राजमार्गों को हमेशा के लिए कैसे किया जा सकता है अवरुद्ध - executive's duty to implement law

सुप्रीम कोर्ट ने पिछले साल पारित तीन विवादास्पद कृषि कानूनों के खिलाफ किसानों द्वारा किए गए विरोध के हिस्से के रूप में दिल्ली-एनसीआर क्षेत्र में सड़क नाकाबंदी को अस्वीकार करते हुए सख्त टिप्पणी की है. कोर्ट ने कहा कि राजमार्गों को हमेशा के लिए कैसे अवरुद्ध किया जा सकता है.

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Published : Sep 30, 2021, 3:55 PM IST

Updated : Sep 30, 2021, 4:51 PM IST

नई दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट ने पिछले साल पारित तीन विवादास्पद कृषि कानूनों के खिलाफ किसानों द्वारा किए गए विरोध के हिस्से के रूप में दिल्ली-एनसीआर क्षेत्र में सड़क नाकाबंदी को अस्वीकार करते हुए सख्त टिप्पणी की है. कोर्ट ने कहा कि राजमार्गों को हमेशा के लिए कैसे अवरुद्ध किया जा सकता है.

अदालत ने कहा कि अदालत द्वारा निर्धारित कानून को लागू करना कार्यपालिका का कर्तव्य है. न्यायमूर्ति संजय किशन कौल की अध्यक्षता वाली पीठ ने नोएडा निवासी मोनिका अग्रवाल द्वारा सड़क-अवरोध के कारण दैनिक आवागमन में देरी की शिकायत करते हुए एक जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए यह सख्त टिपण्णी की है.

कोर्ट ने कहा कि निवारण न्यायिक मंच आंदोलन या संसदीय बहस के माध्यम से हो सकता है लेकिन राजमार्गों को कैसे अवरुद्ध किया जा सकता है और यह एक स्थायी समस्या नहीं हो सकती. जस्टिस कौल ने केद्र सरकार, हरियाणा, यूपी और दिल्ली सरकारों से कहा कि सुप्रीम कोर्ट पहले ही कानून बना चुका है और इसे लागू करना कार्यपालिका का कर्तव्य है.

जस्टिस संजय किशन कौल और जस्टिस एम एम सुंदरेश की पीठ ने कहा कि समस्याओं का समाधान न्यायिक मंच, आंदोलन या संसदीय बहस के माध्यम से हो सकता है, लेकिन राजमार्गों को कैसे अवरुद्ध किया जा सकता है और यह हमेशा के लिए हो रहा है. इसका अंत कहां हो रहा है?

मामले की सुनवाई की शुरुआत में पीठ ने अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल के एम नटराज से पूछा कि सरकार इस मामले में क्या कर रही है. इसके बाद नटराज ने कहा कि उन्होंने प्रदर्शनकारी किसानों के साथ एक बैठक की और इसकी जानकारी शपथपत्र में दी गई है. पीठ ने कहा कि हम कानून बना सकते हैं, लेकिन कानून को लागू करना आपका काम हैय न्यायालय इसे लागू नहीं कर सकता. कार्यपालिका को ही इसे लागू करना होगा.

सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि इसे लागू करना कार्यपालिका का कर्तव्य है. पीठ ने कहा, 'जब हम कानून बनाते हैं, तो आप कहेंगे कि यह कार्यपालिका के अधिकार क्षेत्र का अतिक्रमण है. इसके अपने परिणाम हो सकते हैं, लेकिन ऐसी शिकायतें भी हैं, जिनसे निपटे जाने की आवश्यकता है. यह स्थायी समस्या नहीं बन सकती.'

मेहता ने कहा कि जब न्यायालय से आग्रह किया जाता है, तो यह अतिक्रमण नहीं होगा. उन्होंने कहा कि शिकायतों का निपटारा करने के लिए उच्चतम स्तर पर तीन सदस्यीय एक समिति का गठन किया गया था, लेकिन इसके लिए आमंत्रित किसानों के प्रतिनिधियों ने चर्चा में भाग लेने से इनकार कर दिया.

उन्होंने कहा कि न्यायालय को याचिका में किसान संगठनों को भी पक्षकार बनाने की याचिकाकर्ता को अनुमति दी जानी चाहिए, ताकि बाद में वे यह न कहें कि उन्हें इस मामले में पक्षकार नहीं बनया गया.

पीठ ने मेहता से कहा कि किसानों के प्रतिनिधियों को पक्षकार बनाने के लिए उन्हें ही अर्जी दायर करनी चाहिए, क्योंकि याचिककर्ता को संभवत: उन नेताओं के बारे में जानकारी नहीं होगी.

न्यायालय ने कहा, 'यदि आपको लगता है कि किसी को पक्षकार बनाया जाना चाहिए, तो आपको अनुरोध करना होगा. आप उनकी शिकायतों को सुलझाने के लिए उठाए गए कदमों की जानकारी देते हुए औपचारिक अर्जी दायर करें और आप यह बताएं कि किसानों के प्रतिनिधियों का पक्ष विवाद के समाधान में कैसे मदद करेगा.'

पीठ ने मामले की आगे की सुनवाई के लिए चार अक्टूबर की तारीख तय की. मेहता ने कहा कि वह शुक्रवार को अर्जी दायर करेंगे.

यह भी पढ़ें- SC ने 'त्रुटिपूर्ण' अनुष्ठान करने के आरोप वाली याचिका पर तिरुपति तिरुमला देवस्थानम से जवाब मांगा

कोर्ट कहा, जब हम कानून बनाएंगे तो आप कहेंगे कि यह अतिक्रमण है और हमने कार्यपालिका के अधिकार क्षेत्र में अतिक्रमण किया है. इसके प्रभाव हैं लेकिन ऐसी शिकायतें भी हैं, जिनका समाधान किए जाने की आवश्यकता है. यह स्थायी समस्या नहीं हो सकती.

जनहित याचिका नोएडा की रहने वाली मोनिका अग्रवाल ने दायर की थी. उन्होंने आरोप लगाया था कि अपनी मार्केटिंग नौकरी के लिए नोएडा से दिल्ली की यात्रा करना उनके लिए एक बुरा सपना बन गया है, क्योंकि इसमें एक तरफ की यात्रा 20 मिनट के बजाय 2 घंटे लगते हैं.

न्यायालय ने 23 अगस्त को कहा था कि नए कृषि कानूनों के खिलाफ दिल्ली की सीमाओं पर किसानों के धरना-प्रदर्शन के कारण सड़क अवरुद्ध होने का समाधान केंद्र और दिल्ली के पड़ोसी राज्यों को तलाशना चाहिए.

इसने केंद्र से कहा था, 'आप समाधान क्यों नहीं खोज सकते? आपको इस समस्या का समाधान तलाशना होगा. उन्हें (किसानों को) विरोध करने का अधिकार है लेकिन निर्धारित स्थानों पर. विरोध के कारण यातायात की आवाजाही बाधित नहीं की जा सकती.'

पीठ ने कहा था कि इससे टोल वसूली पर भी असर पड़ेगा क्योंकि अवरोध के कारण वाहन वहां से नहीं गुजर पाएंगे.

इसने कहा था, 'समाधान करने की जिम्मेदारी केंद्र सरकार और संबंधित राज्य सरकारों की है. उन्हें कोई समाधान खोजने के लिए समन्वय करना होगा ताकि किसी भी विरोध-प्रदर्शन के कारण सड़कों को अवरुद्ध न किया जाए और यातायात बाधित नहीं हो.'

मेहता ने कहा था कि अगर अदालत कोई आदेश पारित करने की इच्छुक है तो दो किसान संगठनों को पक्षकार बनाया जा सकता है और वह उनके नाम दे सकते हैं. इस पर, पीठ ने कहा कि कल दो और संगठन आगे आएंगे तथा कहेंगे कि वे किसानों का प्रतिनिधित्व करते हैं और यह जारी रहेगा.

शीर्ष अदालत ने इस याचिका पर 26 मार्च को उत्तर प्रदेश और हरियाणा को भी नोटिस जारी किया था.

(पीटीआई)

नई दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट ने पिछले साल पारित तीन विवादास्पद कृषि कानूनों के खिलाफ किसानों द्वारा किए गए विरोध के हिस्से के रूप में दिल्ली-एनसीआर क्षेत्र में सड़क नाकाबंदी को अस्वीकार करते हुए सख्त टिप्पणी की है. कोर्ट ने कहा कि राजमार्गों को हमेशा के लिए कैसे अवरुद्ध किया जा सकता है.

अदालत ने कहा कि अदालत द्वारा निर्धारित कानून को लागू करना कार्यपालिका का कर्तव्य है. न्यायमूर्ति संजय किशन कौल की अध्यक्षता वाली पीठ ने नोएडा निवासी मोनिका अग्रवाल द्वारा सड़क-अवरोध के कारण दैनिक आवागमन में देरी की शिकायत करते हुए एक जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए यह सख्त टिपण्णी की है.

कोर्ट ने कहा कि निवारण न्यायिक मंच आंदोलन या संसदीय बहस के माध्यम से हो सकता है लेकिन राजमार्गों को कैसे अवरुद्ध किया जा सकता है और यह एक स्थायी समस्या नहीं हो सकती. जस्टिस कौल ने केद्र सरकार, हरियाणा, यूपी और दिल्ली सरकारों से कहा कि सुप्रीम कोर्ट पहले ही कानून बना चुका है और इसे लागू करना कार्यपालिका का कर्तव्य है.

जस्टिस संजय किशन कौल और जस्टिस एम एम सुंदरेश की पीठ ने कहा कि समस्याओं का समाधान न्यायिक मंच, आंदोलन या संसदीय बहस के माध्यम से हो सकता है, लेकिन राजमार्गों को कैसे अवरुद्ध किया जा सकता है और यह हमेशा के लिए हो रहा है. इसका अंत कहां हो रहा है?

मामले की सुनवाई की शुरुआत में पीठ ने अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल के एम नटराज से पूछा कि सरकार इस मामले में क्या कर रही है. इसके बाद नटराज ने कहा कि उन्होंने प्रदर्शनकारी किसानों के साथ एक बैठक की और इसकी जानकारी शपथपत्र में दी गई है. पीठ ने कहा कि हम कानून बना सकते हैं, लेकिन कानून को लागू करना आपका काम हैय न्यायालय इसे लागू नहीं कर सकता. कार्यपालिका को ही इसे लागू करना होगा.

सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि इसे लागू करना कार्यपालिका का कर्तव्य है. पीठ ने कहा, 'जब हम कानून बनाते हैं, तो आप कहेंगे कि यह कार्यपालिका के अधिकार क्षेत्र का अतिक्रमण है. इसके अपने परिणाम हो सकते हैं, लेकिन ऐसी शिकायतें भी हैं, जिनसे निपटे जाने की आवश्यकता है. यह स्थायी समस्या नहीं बन सकती.'

मेहता ने कहा कि जब न्यायालय से आग्रह किया जाता है, तो यह अतिक्रमण नहीं होगा. उन्होंने कहा कि शिकायतों का निपटारा करने के लिए उच्चतम स्तर पर तीन सदस्यीय एक समिति का गठन किया गया था, लेकिन इसके लिए आमंत्रित किसानों के प्रतिनिधियों ने चर्चा में भाग लेने से इनकार कर दिया.

उन्होंने कहा कि न्यायालय को याचिका में किसान संगठनों को भी पक्षकार बनाने की याचिकाकर्ता को अनुमति दी जानी चाहिए, ताकि बाद में वे यह न कहें कि उन्हें इस मामले में पक्षकार नहीं बनया गया.

पीठ ने मेहता से कहा कि किसानों के प्रतिनिधियों को पक्षकार बनाने के लिए उन्हें ही अर्जी दायर करनी चाहिए, क्योंकि याचिककर्ता को संभवत: उन नेताओं के बारे में जानकारी नहीं होगी.

न्यायालय ने कहा, 'यदि आपको लगता है कि किसी को पक्षकार बनाया जाना चाहिए, तो आपको अनुरोध करना होगा. आप उनकी शिकायतों को सुलझाने के लिए उठाए गए कदमों की जानकारी देते हुए औपचारिक अर्जी दायर करें और आप यह बताएं कि किसानों के प्रतिनिधियों का पक्ष विवाद के समाधान में कैसे मदद करेगा.'

पीठ ने मामले की आगे की सुनवाई के लिए चार अक्टूबर की तारीख तय की. मेहता ने कहा कि वह शुक्रवार को अर्जी दायर करेंगे.

यह भी पढ़ें- SC ने 'त्रुटिपूर्ण' अनुष्ठान करने के आरोप वाली याचिका पर तिरुपति तिरुमला देवस्थानम से जवाब मांगा

कोर्ट कहा, जब हम कानून बनाएंगे तो आप कहेंगे कि यह अतिक्रमण है और हमने कार्यपालिका के अधिकार क्षेत्र में अतिक्रमण किया है. इसके प्रभाव हैं लेकिन ऐसी शिकायतें भी हैं, जिनका समाधान किए जाने की आवश्यकता है. यह स्थायी समस्या नहीं हो सकती.

जनहित याचिका नोएडा की रहने वाली मोनिका अग्रवाल ने दायर की थी. उन्होंने आरोप लगाया था कि अपनी मार्केटिंग नौकरी के लिए नोएडा से दिल्ली की यात्रा करना उनके लिए एक बुरा सपना बन गया है, क्योंकि इसमें एक तरफ की यात्रा 20 मिनट के बजाय 2 घंटे लगते हैं.

न्यायालय ने 23 अगस्त को कहा था कि नए कृषि कानूनों के खिलाफ दिल्ली की सीमाओं पर किसानों के धरना-प्रदर्शन के कारण सड़क अवरुद्ध होने का समाधान केंद्र और दिल्ली के पड़ोसी राज्यों को तलाशना चाहिए.

इसने केंद्र से कहा था, 'आप समाधान क्यों नहीं खोज सकते? आपको इस समस्या का समाधान तलाशना होगा. उन्हें (किसानों को) विरोध करने का अधिकार है लेकिन निर्धारित स्थानों पर. विरोध के कारण यातायात की आवाजाही बाधित नहीं की जा सकती.'

पीठ ने कहा था कि इससे टोल वसूली पर भी असर पड़ेगा क्योंकि अवरोध के कारण वाहन वहां से नहीं गुजर पाएंगे.

इसने कहा था, 'समाधान करने की जिम्मेदारी केंद्र सरकार और संबंधित राज्य सरकारों की है. उन्हें कोई समाधान खोजने के लिए समन्वय करना होगा ताकि किसी भी विरोध-प्रदर्शन के कारण सड़कों को अवरुद्ध न किया जाए और यातायात बाधित नहीं हो.'

मेहता ने कहा था कि अगर अदालत कोई आदेश पारित करने की इच्छुक है तो दो किसान संगठनों को पक्षकार बनाया जा सकता है और वह उनके नाम दे सकते हैं. इस पर, पीठ ने कहा कि कल दो और संगठन आगे आएंगे तथा कहेंगे कि वे किसानों का प्रतिनिधित्व करते हैं और यह जारी रहेगा.

शीर्ष अदालत ने इस याचिका पर 26 मार्च को उत्तर प्रदेश और हरियाणा को भी नोटिस जारी किया था.

(पीटीआई)

Last Updated : Sep 30, 2021, 4:51 PM IST
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