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जम्मू-कश्मीर : हाउसबोट को नुकसान, बेघर हुआ परिवार, सरकार से मदद की अपील

जम्मू-कश्मीर में सर्दियों का मौसम आते ही आम जनजीवन कई स्तरों पर प्रभावित होता है. कुछ ऐसा ही हुआ है एक हाउस बोट संचालक के साथ. हाउस बोट को हुए नुकसान के चलते इसके संचालक परिवार समेत बेघर हो गए हैं. इनका कहना है कि जान तो बच गई, लेकिन घर का सारा सामान बह गया.

मुजफ्फर अहमद गस्सी
मुजफ्फर अहमद गस्सी
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Published : Oct 26, 2021, 10:12 AM IST

Updated : Oct 26, 2021, 3:16 PM IST

श्रीनगर : मुजफ्फर अहमद गस्सी (Zafar Ahmed Gassi) और उनका परिवार बेघर हो गया है. मुजफ्फर का परिवार हाउसबोट (Zafar house boat) में खुशी-खुशी रह रहा था, लेकिन उन्हें नहीं पता था कि पानी उनके हाउस बोट को नष्ट कर देगा. दरअसल, पिछले बुधवार अचानक गस्सी के हाउसबोट में पानी घुसने लगा. हाउस बोट ने पानी भरने पर गस्सी ने खुद को और परिवार के सदस्यों की जान तो बचा ली, लेकिन घर का सारा सामान बह गया.

श्रीनगर में झेलम नदी के तट पर स्थित गस्सी का हाउसबोट (Zafar Ahmed Gassi house boat) अब उपयोग करने लायक नहीं बचा. गरीब परिवार अपने रिश्तेदारों के साथ रहने को मजबूर है. विडंबना यह है कि मुजफ्फर गस्सी के पास अपनी हाउसबोट की मरम्मत कराने के पैसे भी नहीं हैं.

वीडियो

अपनी कम आय के कारण संघर्ष कर रहे मुजफ्फर का कहना है कि उनके पास सर्दियों में रहने के लिए और कोई जगह नहीं है. वह अस्थायी कमरे का मासिक किराया नहीं दे सकते. गस्सी बताते हैं कि जलमग्न हाउसबोट की मरम्मत में कम से कम एक लाख रुपए खर्च होने का अनुमान है. वे बताते हैं कि हाउसबोट की मरम्मत में प्रयुक्त विशेष लकड़ी की कीमत भी काफी अधिक है.

बेघर हुआ गस्सी का परिवार सरकार से मदद की अपील कर रहा है. जानकारी के मुताबिक पिछले साल से अब तक डल झील, नागिन और झेलम नदी में एक दर्जन से ज्यादा हाउसबोट डूब चुके हैं.

हाउस ओनर्स एसोसिएशन के प्रवक्ता गुलाम कादिर बताते हैं कि 2014 की बाढ़ के कारण ज्यादातर हाउसबोट खराब हो गई थीं. मरम्मत पर रोक के चलते हाउसबोट में धीरे-धीरे जलभराव होता जा रहा है. उन्होंने कहा कि मरम्मत के लिए इस्तेमाल की जाने वाली लकड़ी इस समय आसमान छू रही है और इसे खरीदना हर हाउसबोट मालिक के हाथ में नहीं है.

बहरहाल, प्राकृतिक आपदा और आर्थिक संकट को लेकर हालात से जूझ रहे लोगों में शामिल मुजफ्फर अहमद गस्सी (Zafar Ahmed Gassi) मदद की बाट जोह रहे हैं. गस्सी को तत्काल मदद की जरूरत है, जिससे भीषण ठंड शुरू होने से पहले पूरे परिवार को एक अदद छत नसीब हो सके. मदद के लिए गस्सी के जीर्ण-शीर्ण हाउसबोट की मरम्मत कराई जा सकती है.

गौरतलब है कि एक समय डल झील (Dal Lake), नागिन (Nagin) और झेलम (Jhelum) नदी में हजारों हाउसबोट थे लेकिन पिछले कुछ दशकों में इनकी संख्या में गिरावट देखी गई है. लगभग 2,500 इन-हाउस नावें थीं, अब इनकी संख्या घटकर मात्र 911 रह गई है. इस साल इनमें से करीब 23 हाउसबोट अंदर से पूरी तरह खराब हो चुकी हैं, जबकि करीब 700 हाउसबोट आंशिक रूप से क्षतिग्रस्त हैं.

यह भी पढ़ें- जम्मू-कश्मीर : हाउसबोट जर्जर होने से पर्यटन उद्योग पर पड़ रहा असर

2010 में तत्कालीन सरकार ने क्षतिग्रस्त हाउसबोट की मरम्मत के लिए डल झील में डॉकयार्ड स्थापित किया था, लेकिन समय बीतने और उस पर बहुत पैसा खर्च करने के बावजूद, अब तक वहां एक भी हाउसबोट की मरम्मत नहीं की गई है. नतीजा जहां हाउसबोटों की हालत खराब है वहीं डॉकयार्ड (dockyard) भी अपनी जर्जर हालत की कहानी बयां कर रहा है.

श्रीनगर : मुजफ्फर अहमद गस्सी (Zafar Ahmed Gassi) और उनका परिवार बेघर हो गया है. मुजफ्फर का परिवार हाउसबोट (Zafar house boat) में खुशी-खुशी रह रहा था, लेकिन उन्हें नहीं पता था कि पानी उनके हाउस बोट को नष्ट कर देगा. दरअसल, पिछले बुधवार अचानक गस्सी के हाउसबोट में पानी घुसने लगा. हाउस बोट ने पानी भरने पर गस्सी ने खुद को और परिवार के सदस्यों की जान तो बचा ली, लेकिन घर का सारा सामान बह गया.

श्रीनगर में झेलम नदी के तट पर स्थित गस्सी का हाउसबोट (Zafar Ahmed Gassi house boat) अब उपयोग करने लायक नहीं बचा. गरीब परिवार अपने रिश्तेदारों के साथ रहने को मजबूर है. विडंबना यह है कि मुजफ्फर गस्सी के पास अपनी हाउसबोट की मरम्मत कराने के पैसे भी नहीं हैं.

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अपनी कम आय के कारण संघर्ष कर रहे मुजफ्फर का कहना है कि उनके पास सर्दियों में रहने के लिए और कोई जगह नहीं है. वह अस्थायी कमरे का मासिक किराया नहीं दे सकते. गस्सी बताते हैं कि जलमग्न हाउसबोट की मरम्मत में कम से कम एक लाख रुपए खर्च होने का अनुमान है. वे बताते हैं कि हाउसबोट की मरम्मत में प्रयुक्त विशेष लकड़ी की कीमत भी काफी अधिक है.

बेघर हुआ गस्सी का परिवार सरकार से मदद की अपील कर रहा है. जानकारी के मुताबिक पिछले साल से अब तक डल झील, नागिन और झेलम नदी में एक दर्जन से ज्यादा हाउसबोट डूब चुके हैं.

हाउस ओनर्स एसोसिएशन के प्रवक्ता गुलाम कादिर बताते हैं कि 2014 की बाढ़ के कारण ज्यादातर हाउसबोट खराब हो गई थीं. मरम्मत पर रोक के चलते हाउसबोट में धीरे-धीरे जलभराव होता जा रहा है. उन्होंने कहा कि मरम्मत के लिए इस्तेमाल की जाने वाली लकड़ी इस समय आसमान छू रही है और इसे खरीदना हर हाउसबोट मालिक के हाथ में नहीं है.

बहरहाल, प्राकृतिक आपदा और आर्थिक संकट को लेकर हालात से जूझ रहे लोगों में शामिल मुजफ्फर अहमद गस्सी (Zafar Ahmed Gassi) मदद की बाट जोह रहे हैं. गस्सी को तत्काल मदद की जरूरत है, जिससे भीषण ठंड शुरू होने से पहले पूरे परिवार को एक अदद छत नसीब हो सके. मदद के लिए गस्सी के जीर्ण-शीर्ण हाउसबोट की मरम्मत कराई जा सकती है.

गौरतलब है कि एक समय डल झील (Dal Lake), नागिन (Nagin) और झेलम (Jhelum) नदी में हजारों हाउसबोट थे लेकिन पिछले कुछ दशकों में इनकी संख्या में गिरावट देखी गई है. लगभग 2,500 इन-हाउस नावें थीं, अब इनकी संख्या घटकर मात्र 911 रह गई है. इस साल इनमें से करीब 23 हाउसबोट अंदर से पूरी तरह खराब हो चुकी हैं, जबकि करीब 700 हाउसबोट आंशिक रूप से क्षतिग्रस्त हैं.

यह भी पढ़ें- जम्मू-कश्मीर : हाउसबोट जर्जर होने से पर्यटन उद्योग पर पड़ रहा असर

2010 में तत्कालीन सरकार ने क्षतिग्रस्त हाउसबोट की मरम्मत के लिए डल झील में डॉकयार्ड स्थापित किया था, लेकिन समय बीतने और उस पर बहुत पैसा खर्च करने के बावजूद, अब तक वहां एक भी हाउसबोट की मरम्मत नहीं की गई है. नतीजा जहां हाउसबोटों की हालत खराब है वहीं डॉकयार्ड (dockyard) भी अपनी जर्जर हालत की कहानी बयां कर रहा है.

Last Updated : Oct 26, 2021, 3:16 PM IST
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