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कोरोना महामारी : हॉस्पिटल नहीं, 'कैश'पिटल कहिए जनाब

कोरोना महामारी के दौरान निजी अस्पतालों में लूट मची हुई है. इलाज के नाम पर आपको लंबे-लंबे बिल थमाए जा रहे हैं. बीमा कंपनियां पैसे देने से इनकार कर रहीं हैं. सरकार नेक इरादे का दावा करती है, लेकिन आम लोगों को इसका फायदा नहीं मिल रहा है. कुछ उम्मीदें न्यायालयों ने जरूर जगाई हैं. पर अंतिम समाधान केंद्र, राज्य और अस्पताल संगठन ही दे सकते हैं.

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Published : May 20, 2021, 10:06 PM IST

हैदराबाद : जब से कोरोना वायरस का संक्रमण बढ़ा है, अस्पतालों का व्यवहार 'कैशपिटल' की तरह हो गया है. ऐसे समय में जबकि जनता कोविड संक्रमण का सामना कर रही है, आप गरीब हों या अमीर, निजी अस्पताल आपकी स्थितियों का पूरा दोहन कर रहा है. पिछले साल जुलाई में सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को सबके लिए उपचार और दवा की उपलब्धता सुनिश्चित करवाने के लिए आपदा प्रबंधन कानून के तहत दिशा-निर्देश जारी करने का आदेश दिया था. अलग-अलग उच्च न्यायालयों के हस्तक्षेप के बाद राज्य सरकारों ने फी नियमन की घोषणा कर दी. निजी अस्पतालों द्वारा निर्धारित दर से अधिक वूसली करने वाली कई याचिकाओं पर कोर्ट ने जनता के हक में फैसले भी दिए. पिछले साल जुलाई में तेलंगाना हाईकोर्ट ने आदेश नहीं मानने वाले अस्पतालों पर सरकार को कार्रवाई के भी आदेश दिए थे. इसके बावजूद इस दिशा में बहुत कुछ नहीं हो सका.

निजी अस्पतालों की मनमानी जारी रहने पर तेलंगाना हाईकोर्ट ने राज्य सरकार को तेलंगाना सुपर स्पेश्यिलिटी हॉस्पिटल एसोसिएशन से परामर्श कर नियमन जारी करने का आदेश दिया. आंध्र प्रदेश की सरकार ने अस्पताल में बेड न देने पर कार्रवाई की बात कही है. तेलंगाना हाईकोर्ट ने अस्पतालों में शिकायत कमेटी की फिर से बहाली का आदेश दिया है.

दरअसल, इलाज की शुरुआत करने से पहले ही निजी अस्पताल एक लाख रु. जमा करवा लेते हैं. इलाज के दौरान हरेक रोगी से अस्पताल दो लाख से 20 लाख रुपये तक का चार्ज कर रहा है.

ऐसे लोग जिनके पास साधन नहीं है, वे भी निजी अस्पताल में ही इलाज करवाना चाहते हैं. उन्हें बेहतर ट्रीटमेंट की उम्मीद रहती है. निजी अस्पताल इसका फायदा उठा रहे हैं. दलालों से सांठगांठ कर उन्होंने सिंडिकेट बना लिया है. कुछ मामलों में तो वे कुख्यात हो चुके हैं. जैसे स्वास्थ्य बीमा को स्वीकार नहीं करना. मृतक के शरीर को सौंपने से पहले बड़ी राशि की मांग कर देना. अन्य सुविधाओं को लागू नहीं होने देते हैं. पैसा कमाने के लिए वे नंगा नाच करते दिखते हैं.

चिकित्सा सेवा लाभ कमाने वाला व्यवसाय नहीं है. वहन योग्य इलाज पाना भी स्वास्थ्य के अधिकार के तहत ही आता है. सुप्रीम कोर्ट भी इस बाबत निजी अस्पतालों पर नियंत्रण लगाने की बात कह चुका है. इसके बावजूद निजी अस्पतालों के प्रबंधकों ने राज्य सरकारों द्वारा निर्धारित दरों को लागू करने से मना कर दिया है. केरल हाईकोर्ट ने निजी अस्पतालों द्वारा अधिक वसूली पर नियंत्रण लगाने को लेकर सरकार के प्रयास की तारीफ की है. हालांकि, केरल निजी अस्पताल संगठन ने इस पर आपत्ति दर्ज कराई है. संगठन ने कहा है कि अगर बेहतर कमरा, बेहतर सुविधा देने की स्थिति में अधिक खर्च होता है, इसलिए सरकार को इस पर अपनी स्थिति साफ करनी चाहिए.

प्रमुख शहरों में आईसीयू में भर्ती किए जाने पर प्रतिदिन एक लाख से अधिक की वसूली करते हैं. बीमा कंपनियां कह रहीं हैं कि वे 18 हजार प्रतिदिन अधिकतम भुगतान कर सकती हैं. ऐसे में केंद्र, निजी अस्पताल प्रबंधकों और बीमा कंपनियों की बैठक से ही कुछ समाधान निकलने की संभावना है. इस पर एक राष्ट्रीय नीति बनाए जाने की आवश्यकता है. अस्पताल प्रबंधक यदि मानवीय दृष्टकोण अपनाएंगे, तभी करोड़ों जरूरतमंदों तक चिकित्सा सेवा का असली लाभ मिल सकेगा.

हैदराबाद : जब से कोरोना वायरस का संक्रमण बढ़ा है, अस्पतालों का व्यवहार 'कैशपिटल' की तरह हो गया है. ऐसे समय में जबकि जनता कोविड संक्रमण का सामना कर रही है, आप गरीब हों या अमीर, निजी अस्पताल आपकी स्थितियों का पूरा दोहन कर रहा है. पिछले साल जुलाई में सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को सबके लिए उपचार और दवा की उपलब्धता सुनिश्चित करवाने के लिए आपदा प्रबंधन कानून के तहत दिशा-निर्देश जारी करने का आदेश दिया था. अलग-अलग उच्च न्यायालयों के हस्तक्षेप के बाद राज्य सरकारों ने फी नियमन की घोषणा कर दी. निजी अस्पतालों द्वारा निर्धारित दर से अधिक वूसली करने वाली कई याचिकाओं पर कोर्ट ने जनता के हक में फैसले भी दिए. पिछले साल जुलाई में तेलंगाना हाईकोर्ट ने आदेश नहीं मानने वाले अस्पतालों पर सरकार को कार्रवाई के भी आदेश दिए थे. इसके बावजूद इस दिशा में बहुत कुछ नहीं हो सका.

निजी अस्पतालों की मनमानी जारी रहने पर तेलंगाना हाईकोर्ट ने राज्य सरकार को तेलंगाना सुपर स्पेश्यिलिटी हॉस्पिटल एसोसिएशन से परामर्श कर नियमन जारी करने का आदेश दिया. आंध्र प्रदेश की सरकार ने अस्पताल में बेड न देने पर कार्रवाई की बात कही है. तेलंगाना हाईकोर्ट ने अस्पतालों में शिकायत कमेटी की फिर से बहाली का आदेश दिया है.

दरअसल, इलाज की शुरुआत करने से पहले ही निजी अस्पताल एक लाख रु. जमा करवा लेते हैं. इलाज के दौरान हरेक रोगी से अस्पताल दो लाख से 20 लाख रुपये तक का चार्ज कर रहा है.

ऐसे लोग जिनके पास साधन नहीं है, वे भी निजी अस्पताल में ही इलाज करवाना चाहते हैं. उन्हें बेहतर ट्रीटमेंट की उम्मीद रहती है. निजी अस्पताल इसका फायदा उठा रहे हैं. दलालों से सांठगांठ कर उन्होंने सिंडिकेट बना लिया है. कुछ मामलों में तो वे कुख्यात हो चुके हैं. जैसे स्वास्थ्य बीमा को स्वीकार नहीं करना. मृतक के शरीर को सौंपने से पहले बड़ी राशि की मांग कर देना. अन्य सुविधाओं को लागू नहीं होने देते हैं. पैसा कमाने के लिए वे नंगा नाच करते दिखते हैं.

चिकित्सा सेवा लाभ कमाने वाला व्यवसाय नहीं है. वहन योग्य इलाज पाना भी स्वास्थ्य के अधिकार के तहत ही आता है. सुप्रीम कोर्ट भी इस बाबत निजी अस्पतालों पर नियंत्रण लगाने की बात कह चुका है. इसके बावजूद निजी अस्पतालों के प्रबंधकों ने राज्य सरकारों द्वारा निर्धारित दरों को लागू करने से मना कर दिया है. केरल हाईकोर्ट ने निजी अस्पतालों द्वारा अधिक वसूली पर नियंत्रण लगाने को लेकर सरकार के प्रयास की तारीफ की है. हालांकि, केरल निजी अस्पताल संगठन ने इस पर आपत्ति दर्ज कराई है. संगठन ने कहा है कि अगर बेहतर कमरा, बेहतर सुविधा देने की स्थिति में अधिक खर्च होता है, इसलिए सरकार को इस पर अपनी स्थिति साफ करनी चाहिए.

प्रमुख शहरों में आईसीयू में भर्ती किए जाने पर प्रतिदिन एक लाख से अधिक की वसूली करते हैं. बीमा कंपनियां कह रहीं हैं कि वे 18 हजार प्रतिदिन अधिकतम भुगतान कर सकती हैं. ऐसे में केंद्र, निजी अस्पताल प्रबंधकों और बीमा कंपनियों की बैठक से ही कुछ समाधान निकलने की संभावना है. इस पर एक राष्ट्रीय नीति बनाए जाने की आवश्यकता है. अस्पताल प्रबंधक यदि मानवीय दृष्टकोण अपनाएंगे, तभी करोड़ों जरूरतमंदों तक चिकित्सा सेवा का असली लाभ मिल सकेगा.

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