वाराणसी: अखिल भारतीय हिंदी राजभाषा सम्मेलन में शिरकत करने गृह मंत्री अमित शाह के साथ सूबे के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ पहुंचे हैं. कार्यक्रम की शुरुआत गृह मंत्री और मुख्यमंत्री ने दीप प्रज्वलन के साथ की है. उनके साथ इस कार्यक्रम में भारतीय जनता पार्टी के कई बड़े नेता भी शामिल हुए हैं.
बता दें कि इसके पहले शुक्रवार देर रात गृह मंत्री ने बाबा काल भैरव के मंदिर में दर्शन पूजन किया था. मंदिर के पुजारी ने केंद्रीय गृहमंत्री को अंगवस्त्रम भेंट किया था. अमित शाह के पहुंचने की सूचना पर मंदिर के बाहर भाजपा कार्यकर्ताओं और स्थानीय लोगों की भीड़ लगी रही.
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कालभैरव दर्शन के बाद गृहमंत्री रात्रि विश्राम के लिए निकल गए. इस दौरान भाजपा के वरिष्ठ नेता भी उनके साथ मौजूद रहे. दरअसल, अमित शाह दो दिवसीय उत्तर प्रदेश के पूर्वांचल दौरे पर हैं. जिसमें अमित शाह महत्वपूर्ण संगठनात्मक बैठकों के साथ ही पार्टी के कार्यकर्ताओं को उत्तर प्रदेश में चुनाव के लिए जीत का मंत्र देंगे. गृह मंत्री आज आजमगढ़ में यशपालपुर आजमबांध, आजमगढ़ में एक जनसभा को संबोधित करते हुए, इस जिले को स्टेट यूनिवर्सिटी की सौगात देंगे.
बता दें कि गृह मंत्री अमित शाह वाराणसी के दीनदयाल हस्तकला संकुल पहुंचे हैं, जहां उन्होंने राजभाषा सम्मेलन में शिरकत की. राजभाषा सम्मेलन को संबोधित करते हुए केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने काशी को भाषाओं का गोमुख करार दिया. साथ ही कहा कि बिना काशी के देश का इतिहास ही पूरा ही नहीं होता. बाबा विश्वनाथ के इस नगर ने देश को ही नहीं, बल्कि दुनिया को शिक्षा की लौ से प्रज्ज्वलित करने का काम किया है. उन्होंने कहा कि अमृत महोत्सव हमारे लिए आजादी दिलाने के लिए जो हमारे पुरखों ने यातनाएं सहन की, सर्वोच्य बलिदान दिए, संघर्ष किए उसको स्मृति में जीवंत करके युवा पीढ़ी को प्रेरणा देना को तो मौका तो है ही, साथ ही आजादी का अमृत महोत्सव हमारे लिए संकल्प का भी वर्ष है.
'हमे देश के लिए अब संकल्प लेना होगा'
उन्होंने कहा कि इसी वर्ष में 130 करोड़ भारतीयों को तय करना है कि जब आजादी के 100 साल होंगे तो भारत कैसा होगा, कहां होगा. दुनिया में भारत का स्थान कहां होगा. चाहे शिक्षा की बात हो, चाहे संस्कार की बात हो, चाहे सुरक्षा की बात हो, चाहे आर्थिक उन्नति की बात हो, चाहे उत्पादन बढ़ाने की बात हो, भारत कहा खड़ा है और हर क्षेत्र में भारत कहां खड़ा होगा. इसका भी संकल्प लेना होगा.
'स्वराज तो मिल गया, लेकिन स्वदेशी पीछे छूट गया'
हम सभी हिंदी प्रेमियों के लिए भी ये वर्ष संकल्प का रहना चाहिए. जब 100 साल आजादी के हो तो इस देश में राजभाषा और सभी स्थानीय भाषाओं का दबदबा इतना बुलंद हो कि किसी भी विदेशी भाषा का सहयोग लेने की आवश्यकता न हो. मैं मानता हूं कि ये काम आजादी के तुरंत बाद होना चाहिए था. क्योंकि आजादी के तीन स्तंभ थे, स्वराज, स्वदेशी और स्वभाषा. स्वराज तो मिल गया, लेकिन स्वदेशी भी पीछे छूट गया और स्वभाषा भी पीछे छूट गई.
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मैं भी हिंदी भाषी नहीं हूं, गुजरात से आता हूं. मेरी मातृभाषा गुजराती है. मुझे गुजराती बोलने में कोई परहेज नहीं है. लेकिन मैं गुजराती ही जितना बल्कि उससे अधिक हिंदी का प्रयोग करता हूं. हिंदी और सभी स्थानीय भाषाओं के बीच कोई अंतर्विरोध नहीं है. हिंदी सभी स्थानीय भाषाओं की सहेली है. इसके इतर उन्होंने काशी को भाषा का गौमुख करार देते हुए कहा कि यह स्थान भाषाओं का उद्भव स्थान है. भाषाओं का शुद्धिकरण, व्याकरण को शुद्ध करना, चाहे कोई भी भाषा हो, काशी का बड़ा योगदान है.