शिमला : हिमाचल प्रदेश में सूखे को दूर करने के लिए स्नो हार्वेस्टिंग प्रोजेक्ट पर काम होगा. हिमाचल में जनजातीय जिलों की चोटियां करीब-करीब साल भर बर्फ से ढकी रहती हैं. कोल्ड डेजर्ट कहे जाने वाले हिमाचल के जनजातीय जिले लाहौल स्पीति सहित किन्नौर व अन्य ट्राइबल बेल्ट में स्नो हार्वेस्टिंग के कॉन्सेप्ट को जमीन पर उतारा जाएगा. इसके लिए हिमाचल सरकार केंद्र की मदद लेगी. शुरुआत में पायलट आधार पर प्रोजेक्ट संचालित किया जाएगा. हिमाचल के पहाड़ों पर बर्फ (snow on the mountains of himachal) के रूप में अनमोल दौलत है इस दौलत की एक-एक बूंद को सहेजने के लिए ही इस परियोजना पर काम किया जाएगा.
बड़ी बात यह है कि हिमाचल में स्नो हार्वेस्टिंग के प्रोजेक्ट को लेकर पुरखों का ज्ञान भी शामिल किया जाएगा. उल्लेखनीय है कि हिमाचल में कुछ दशक पहले तक बर्फ के पानी को अपनी जरूरतों के हिसाब से उपयोग में लाया जाता रहा है. राज्य सरकार के जल शक्ति मंत्री महेंद्र सिंह ठाकुर के अनुसार प्रदेश के कुछ इलाकों में सूखे से निपटने के लिए यह परियोजना कारगर साबित होगी. इसके लिए ग्लेशियर्स के पिघलने की प्रक्रिया को धीमा करने पर जोर रहेगा. पहले चरण में हिमाचल के जनजातीय जिलों लाहौल स्पीति व किन्नौर के ग्लेशियर्स पर काम होगा.
गौरतलब है की लद्दाख क्षेत्र में कृत्रिम ग्लेशियर (artificial glacier) बनाकर जरूरत के अनुसार पानी से बर्फ और बर्फ से पानी तैयार किया जाता है. हिमाचल में पर्यावरण विज्ञान और तकनीकी विभाग इसमें सहयोग करेगा. ईटीवी से बातचीत में उपरोक्त विभाग के सीनियर साइंटिस्ट एसएस रंधावा (Senior Scientist SS Randhawa) ने कहा कि इस परियोजना पर काम किया जा रहा है. प्रदेश में स्नो हार्वेस्टिंग की बहुत संभावनाएं हैं और प्रदेश की ऊंची चोटियों से इसे शुरू किया जाएगा. इसके लिए प्रारंभिक तौर पर एक करोड़ रुपए का प्रावधान भी किया गया है. केंद्र की मंजूरी और अन्य औपचारिकताओं के पूरा होने के बाद ऐसा विचार है कि इसे किन्नौर के पूह से आरंभ किया जाएगा. इसमें स्नो एंड एवलॉन्च स्टडी एस्टेबलिशमेंट चंडीगढ़ (Snow and Avalaunch Study Establishment Chandigarh) का तकनीकी सहयोग लिया जाएगा.
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हिमाचल की भाौगोलिक परिस्थितियों को देखें तो जनजातीय जिलों में कम बारिश (Less rain in tribal districts) होने के कारण सूखे की स्थिति रहती है. वहां खेती और बागवानी के लिए पानी की जरूरत है यह स्नो हार्वेस्टिंग के जरिए पूरी की जा सकती है. पिछले कुछ वर्षों से जनजातीय जिलों में खेती और बागवानी में तरक्की हुई है ऐसे में सिंचाई के लिए बर्फ के पानी के उपयोग की जरूरत महसूस हो रही है. यदि बर्फ के पिघलने की प्रक्रिया को धीमा किया जाए तो समर सीजन में पेयजल की कमी (Lack of drinking water in summer season) पूरी हो सकती है. इसके लिए वैज्ञानिक तरीके से बर्फ के पिघलने की गति को धीमा करना होगा. हिमाचल सरकार ने प्रोजेक्ट के सभी महत्वपूर्ण बिंदुओं को दस्तावेज के रूप में केंद्र को भेजा है.
क्या है स्नो हार्वेस्टिंग और किन तरीकों पर होगा काम : जल शक्ति मंत्री महेंद्र सिंह ठाकुर (Jal Shakti Minister Mahender Singh Thakur) ने कहा कि हिमाचल प्रदेश में पर्वतीय इलाकों (Hilly areas in Himachal Pradesh) में पंद्रह हजार फीट से अधिक ऊंचाई पर स्नो हार्वेस्टिंग होगी. पहाड़ों के ऊपरी स्थानों पर ही बर्फ को इकट्ठा किया जाएगा. आधुनिक तकनीक के जरिए यह सुनिश्चित किया जाएगा कि पहाड़ों पर इकट्ठा की गई बर्फ अपने स्थान से खिसक न सके. इसे प्रधानमंत्री के जलशक्ति अभियान के तहत ही क्रियान्वित किया जाएगा. अमूमन स्नो हार्वेस्टिंग में सर्दियों के दौरान बर्फ को इकट्ठा किया जाता है और फिर गर्मियों में पानी की कमी के समय इसका उपयोग किया जाता है.
त्रिलोकीनाथ गांव और लपशक इलाके में स्नो हार्वेस्टिंग कॉन्सेप्ट पर काम : लाहौल स्पीति में साल में छह महीने बर्फ रहती है. यहां त्रिलोकीनाथ गांव व लपशक इलाके में स्नो हार्वेस्टिंग कॉन्सेप्ट पर काम होगा. इसमें बर्फ की कलेक्शन, कंसंट्रेशन और स्टोरेज पर काम होता है. जलशक्ति मंत्री के अनुसार अधिक उंचाई वाले क्षेत्रों में जहां बर्फ अधिक मात्रा में गिरती है, वहां पहाड़ों पर सीढ़ीनुमा तरीके से पहाड़ों पर कृत्रिम दीवारें बनाई जाएंगी ताकि बर्फ पहाड़ों से नीचे न फिसले. इस प्रकार छोटी-छोटी दीवारों के सहारे बर्फ को पहाड़ों पर ही रोका जाएगा. इससे ग्राउंड वाटर का लेवल बढ़ाने में मदद मिलेगी. उन्होंने कहा कि सर्दियों के दिनों में एवलॉन्च की समस्या से निपटने में यह तकनीक कारगर होगी.