शिमला: हिमाचल विधानसभा चुनाव की तारीखों का ऐलान हो चुका है. चुनाव में मुद्दे ही सबसे बड़े सियासी हथियार होते हैं. सही मुद्दों का चुनाव तख्ता पलट सकते हैं, चुनावी इतिहास में ऐसे कई उदाहरण हैं. हिमाचल में भी इस बार मुद्दों की भरमार है, हर दल अपने-अपने चुनावी वादों और दावों की ढफली तो बजा रहे हैं. लेकिन कुछ मुद्दे ऐसे हैं जिसके चलते प्रदेश का एक बड़ा वोट बैंक सियासी चलों का समीकरण बिगाड़ सकते हैं. (Issues in Himachal assembly elections 2022) (Himachal Assembly election Schedule)
महंगाई- वैसे तो महंगाई एक राष्ट्रीय मुद्दा है लेकिन सीधे जनता की जेब से जुड़ा होने के कारण ये मुद्दा विधानसभा चुनावों में भी अपनी जगह बना लेता है. हिमाचल के लिहाज से ये इसलिये भी अहम है क्योंकि बीते साल के आखिर में हुए उप चुनाव में बीजेपी को मुंह की खानी पड़ी थी. जिसके बाद मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर हार का ठीकरा महंगाई पर फोड़ा था. दरअसल हिमाचल में एक लोकसभा और तीन विधानसभा सीटों पर उपचुनाव हुआ था और बीजेपी एक सीट भी नहीं जीत पाई थी.
ओल्ड पेंशन स्कीम- ये मौजूदा वक्त में हिमाचल में सबसे ज्वलंत मुद्दा है. वैसे तो देश के कई राज्यों में पुरानी पेंशन की मांग को लेकर कर्मचारियों ने झंडा बुलंद किया है. लेकिन हिमाचल में चुनाव के मद्देनजर इस मुद्दे की गूंज ज्यादा सुनाई दे रही है. सरकारी कर्मचारी कई प्रदर्शन कर चुके हैं और मौजूदा वक्त में भी चल रहे हैं. कांग्रेस ने इस मुद्दे को हाथों हाथ लिया है और सरकार बनने पर ओपीएस लागू करने का ऐलान किया है. कांग्रेस छत्तीसगढ़ और राजस्थान में ओपीएस लागू करने का हवाला दे रही है. इन दोनों राज्यों में कांग्रेस की सरकार है. वहीं बीजेपी ने इस मुद्दे को एक तरह से दरकिनार कर दिया है. हिमाचल में 2,40,640 सरकारी कर्मचारी और 1,90,000 पेंशनर्स हैं. इस लिहाज से ये एक बड़ा वोट बैंक है. (OPS Demand in Himachal Pradesh)
आउटसोर्स कर्मचारी- प्रदेश में कर्मचारी वर्ग सबसे बड़ा वोट बैंक है. जो प्रदेश में सरकार बनाने और समीकरण बनाने की कुव्वत रखता है. ओपीएस के अलावा आउटसोर्स कर्मचारियों के लिए पॉलिसी बनाने को जयराम कैबिनेट ने मंजूरी तो दे दी है. लेकिन ये सिर्फ शुरुआती कदम है. आउटसोर्स कर्मचारी अपने लिए कुछ ठोस आश्वासन चाहते हैं. प्रदेश के अलग-अलग विभागों में 35 हजार से 40 हजार कर्मचारी कार्यरत हैं. (Outsource Employees Demand in Himachal)
हिमाचल पर बढ़ता कर्ज- हिमाचल प्रदेश पर इस वक्त 67,000 करोड़ से अधिक का कर्ज हो चुका है. ये मुद्दा पिछले कुछ चुनावों में गूंजता रहा है. बीजेपी और कांग्रेस एक-दूसरे पर कर्ज का ठीकरा फोड़ते रहे हैं. बीजेपी ने महिलाओं के लिए बस यात्रा में 50 फीसदी की छूट से लेकर, 125 यूनिट तक बिजली बिल माफ और ग्रामीण इलाकों में पानी के बिल माफ किए हैं. तो कांग्रेस ने ओपीएस से लेकर कच्चे कर्मचारियों को पक्का करने और 18 से 60 साल की महिलाओं को हर महीने 1500 रुपये देने का वादा किया है. दिलचस्प बात ये है कर्ज के बढ़ते बोझ के लिए दोनों दल एक दूसरे को जिम्मेदार बता रहे हैं. (Debt on Himachal)
बेरोजगारी- देश में बेरोजगार युवाओं की बढ़ती फौज भी सबसे बड़ा मुद्दा है. हिमाचल में भी ये मुद्दा छाया रहा है. प्रदेश के रोजगार कार्यालयों में लगभग 9 लाख युवा पंजीकृत है, जबकि प्रदेशभर में बेरोजगार युवाओं की संख्या करीब 11 से 12 लाख होने का अनुमान है. हिमाचल में कांग्रेस ने इस मुद्दे को भी प्रमुखता से उठाया है और सरकार बनने पर 5 युवाओं को नौकरी देने का वादा किया है. (Unemployment in Himachal)
अग्निवीर योजना- हिमाचल से हर सेना में कई युवा भर्ती होते हैं लेकिन इस साल केंद्र सरकार ने अग्निपथ योजना शुरू की जिसके तहत सेना में केवल 4 साल के लिए ही भर्ती होगी जबकि सिर्फ 25 फीसदी युवाओं को ही स्थायी काडर में भर्ती किया जाएगा. इसी साल शुरु हुई इस योजना को लेकर देशभर के युवाओं में रोष भी देखने को मिला था. हिमाचल में भी युवाओं ने सड़क पर उतरकर प्रदर्शन किया था. जिसके बाद मुद्दा सियासी बना और हिमाचल चुनाव में भी विपक्ष इस मुद्दे को लेकर सरकार को घेर सकता है. (Agneepath Scheme in Himachal)
ग्रीन फील्ड एयरपोर्ट- हिमाचल एक पर्यटन राज्य है लेकिन यहां एक भी इंटरनेशनल एयरपोर्ट नहीं है. 27 दिसंबर 2017 को सत्ता संभालने के बाद ये मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर का ड्रीम प्रोजेक्ट बन गया. 2018 में एयरपोर्ट अथॉरिटी ने मंडी में हवाई अड्डे को मंजूरी दी थी. जिसके बाद बीजेपी ने इसका श्रेय लेना शुरू किया, लेकिन पिछले करीब 5 साल में इस एयरपोर्ट के निर्माण को लेकर सरकारी तंत्र की चुस्ती नजर ही नहीं आई. जिसे लेकर कांग्रेस लगातार बीजेपी पर हमलावर रहती है. एयरपोर्ट के भूमि अधिग्रहण को लेकर भी कई लोग और विपक्षी सवाल उठा रहे हैं. (Green Field airport in Himachal)
फोरलेन प्रभावित मांग रहे 4 गुना मुआवजा- हिमाचल में विकास की सड़क फोरलेन बनकर कई जिलों से गुजर रही है लेकिन इस फोरलेन के प्रभावितों की मांगे अब तक अनसुनी हैं. फोरलेन प्रभावित भी इस बार चुनाव में अहम भूमिका निभा सकते हैं. आंकड़ों के मुताबिक प्रदेश में करीब 4 से 5 लाख प्रत्यक्ष और करीब 15 लाख अप्रत्यक्ष प्रभावित हैं. जो 4 गुना मुआवजे के साथ पुनर्वास और पुनर्स्थापना की मांग कर रहे हैं. एक अनुमान के मुताबिक हिमाचल के 68 विधानसभा क्षेत्रों में से 48 विधानसभा क्षेत्रों में फोरलेन प्रभावित वोट बैंक हैं.(Four lane affected in Himachal)
भर्तियों में धांधली- इस साल हिमाचल विधानसभा चुनाव में सरकारी भर्तियों में धांधली और अनियमितताओं का मुद्दा भी गर्मा सकता है. इसी साल पुलिस भर्ती पेपर लीक मामले में सरकार की किरकिरी हो चुकी है. इसके अलावा यूजी परीक्षा पेपर ली और जेओए आईटी भर्ती समेत अन्य भर्तियां भी सवालों में रही हैं. जिसे लेकर विरोधी सरकार को घेरते रहे हैं. युवाओं में भी इसको लेकर भारी रोष देखने को मिला था. (Recruitment scam in himachal)
किसान और बागवान- हिमाचल में करीब 10 लाख किसान और बागवान परिवार हैं. जो संभवत: प्रदेश में सबसे बड़ा वोट बैंक है. विपक्षी दल हमेशा सरकार पर इनकी अनदेखी का आरोप लगाते रहे हैं. किसान स्थानीय उत्पादों जैसे सब्जी, शहद, दूध जैसे उत्पादों पर एमएसपी लगाने की मांग करते रहे हैं तो बागवान दूसरे देशों से आने वाले सेब पर एक्साइज ड्यूटी बढ़ाने की मांग करते हैं. ताकि हिमाचल के सेब को बाजार में अच्छे दाम मिल सकें. (Farmer and Growers demand in Himachal)
कुल मिलाकर इस बार के विधानसभा चुनाव में मुद्दों की भरमार है. इस बार बीजेपी और कांग्रेस के अलावा आम आदमी पार्टी भी खुद को तीसरा विकल्प बता रही है. जो दिल्ली और पंजाब की तर्ज पर भ्रष्टाचार, शिक्षा, स्वास्थ्य जैसे मुद्दे लेकर आई है. अब देखना होगा कि इस चुनाव में कौन से मुद्दे हावी रहते हैं.
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