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दुनियाभर में बैन जड़ी बूटियों की उत्तराखंड में हो रही खेती, नेपाल के तस्करों ने उड़ाई नींद, जानिए कैसे

दुनियाभर में जिन जड़ी बूटियों पर बैन है, वो उत्तराखंड के खेतों में संरक्षित की जा रही है. खासकर उच्च हिमालायी क्षेत्रों में मिलने वाली इन जड़ी बूटियों को जंगलों से बाहर किसान सरकार की मदद से उगा रहे हैं. खास बात ये है कि अपने विशेष महत्व और मौजूदा परिस्थियों के चलते इन जड़ी बूटियों के जंगलों से दोहन पर रोक लगाई गई है. जानिए कौन सी हैं ये खास जड़ी बूटियां और दुनियाभर में क्यों है इनके दोहन पर रोक...

Herbs Cultivation in Uttarakhand
उत्तराखंड में जड़ी बूटियों की खेती
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Published : May 28, 2023, 5:47 PM IST

Updated : May 29, 2023, 10:43 PM IST

दुनियाभर में बैन जड़ी बूटियों की उत्तराखंड में हो रही खेती.

देहरादूनः हिमालय में ऐसी कई जड़ी बूटियां है, जो इंसानी उपयोग के लिहाज से बेहद खास मानी जाती हैं. ये जड़ी बूटियां तमाम बीमारियों में अचूक बाण के रूप में भी देखी जाती है. शायद इसीलिए भारत ही नहीं, बल्कि दुनिया भर में इन जड़ी बूटियों की जबरदस्त डिमांड भी है, लेकिन इसके बावजूद अंतरराष्ट्रीय स्तर की संस्था CITES (the Convention on International Trade in Endangered Species of Wild Fauna and Flora) ने ऐसी कई जड़ी बूटियों के दोहन को अपनी सूची में अवैध माना है.

जड़ी बूटी शोधकर्ता डॉ जितेंद्र बुटोला के मुताबिक आयुर्वेद में विभिन्न जड़ी बूटियों का उपयोग किया जाता है. जिससे कई गंभीर बीमारियों का इलाज होता है. आयुर्वेद से जुड़ी तमाम फार्मा कंपनियां भी ऐसी ही जड़ी बूटियों का उपयोग कर करोड़ों अरबों का मुनाफा कमाती हैं, लेकिन हिमालयी क्षेत्र के जंगलों में मिलने वाली इन जड़ी बूटियों के अत्यधिक दोहन और संरक्षण न होने के चलते अब यह जड़ी बूटियां विलुप्त होने की कगार पर आ गई है. जाहिर है कि इतने महत्वपूर्ण जड़ी बूटियों के विलुप्त होने के खतरे को देखते हुए ही दुनियाभर में जंगलों से इसके दोहन पर रोक लगाई गई है.
ये भी पढ़ेंः उत्तरायणी मेले में सजता है जड़ी बूटियों का अनोखा बाजार, टूट पड़ते हैं खरीदार

ऐसी कई संस्थाएं हैं, जो जड़ी बूटी के उपयोग और इनकी मौजूदगी को लेकर समय समय पर आकलन करती है. इसी आकलन के दौरान ऐसी कई जड़ी बूटियां हैं. जिनको संरक्षित करने के दृष्टिकोण से उपयोग पर बैन किया जाता है. इन्हीं में से 26 जड़ी बूटियों पर उत्तराखंड सरकार ने लाइसेंस के माध्यम से किसानों को इसके उत्पादन की इजाजत दी है. जानकार बताते हैं कि ऐसी जड़ी बूटियां जो कभी बहुतायत मिलती थी, आज विलुप्त हो रही हैं.

नेपाल के तस्करों के लिए भारत बड़ा बाजारः देश में फार्मा कंपनियों की जड़ी बूटियों को लेकर भारी डिमांड के चलते नेपाल के तस्करों की नजर भी भारत के बाजार ही होते हैं. भारतीय बाजारों में नेपाल के तस्कर हिमालय क्षेत्र से लाई गई जड़ी बूटी को बेचते हैं. खास बात ये है कि नेपाल में भी इन जड़ी बूटियों को लेकर खेती का कोई सिस्टम नहीं है और वहां सिर्फ जंगलों से अवैध रूप में जड़ी बूटियों को लाया जाता है.

Herbs Cultivation in Uttarakhand
दुनियाभर में बैन जड़ी बूटियों की उत्तराखंड में हो रही खेती
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उत्तराखंड में वैध की गई है जड़ी बूटियों की 26 प्रजातियांः उत्तराखंड में विलुप्त होने की कगार पर पहुंच चुकी ऐसी 26 जड़ी बूटियों की प्रजातियों को किसानों की ओर से खेती किए जाने के लिए वैध किया गया है. जो न केवल मौसम के लिहाज से उत्तराखंड के विभिन्न क्षेत्रों में आसानी से उगाई जा सकती है. बल्कि, उनके जरिए किसानों की आय को भी बेहतर किया जा सकता है.

इन 26 जड़ी बूटियों में मुख्य रूप से उत्तराखंड में कूठ, कुटकी, अतिश, चिरायिक, सतवा और जटामाशी की खेती की जा रही है. इन जड़ी बूटियों का उपयोग फार्मा कंपनियां विभिन्न दवाइयां बनाने के लिए करती हैं. इसमें खास तौर पर लिवर से जुड़ी दवाई बनाने में इसका उपयोग हो रहा है. जिसका बेहद ज्यादा असर मरीजों पर देखा जाता है.

अवैध व्यापार से किसानों की बढ़ रही परेशानीः भारत में नेपाल से हो रहे अवैध कारोबार के कारण उत्तराखंड में जो खेती जड़ी बूटियों की जा रही है, उसमें किसानों को उतना लाभ नहीं मिल पा रहा है. दरअसल, नेपाल से आने वाले तस्कर बाजार में जंगलों से लाई गई जड़ी बूटियों को ओने पौने दाम में बेच देते हैं. इससे मेहनत के बाद उगने वाली जड़ी बूटियों का वो दाम नहीं मिल पाता जो किसानों को दरकार होती है.
ये भी पढ़ेंः जड़ी बूटी से 'अन्नदाता' के आए सुख भरे दिन, परंपरागत खेती से मोह हो रहा भंग

इस तरह अब भी करीब 80% जड़ी बूटियों की आपूर्ति फार्मा कंपनियों को नेपाल के अवैध बाजार से हो रहा है. जबकि, मात्र 20% आपूर्ति ही किसानों से ली जा रही है. उदाहरण के तौर पर कुटकी जिस के दाम किसानों को करीब 1200 रुपए किलो मिलने चाहिए थे. नेपाल से आने वाले तस्कर उसे करीब ₹500 से ₹600 में ही उपलब्ध करा रहे हैं. जबकि, किसान अपने खेतों में करीब ₹800 पर नाली की लागत से इसकी खेती कर रहा है.

उधर फार्मा कंपनियां इस रो मटेरियल को दवाई के रूप में तैयार कर उपभोक्ताओं से कई गुना रकम वसूलती है. इसी तरह कुठ का दुनियाभर में बड़ा बाजार है. सऊदी अरब उसका बड़ा हब है और वहां पर इसकी काफी डिमांड भी है, लेकिन अवैध कारोबार के कारण बाजार में इसे करीब 250 रुपए किलो उपलब्ध करा दिया जाता है. जिसका नुकसान किसानों को हो रहा है. उधर, सरकार की तरफ से इसके लिए कोई दाम तय नहीं की है और एमएसपी निर्धारित न होने से भी किसानों को दिक्कतें आ रही है.

किसानों को नहीं मिल रहा तकनीकी सपोर्ट, सिंगल विंडो सिस्टम कि नहीं बना पाई सरकारः उत्तराखंड जड़ी बूटियों के उत्पादन या उसकी खेती को लेकर सरकार की तरफ से तकनीकी सपोर्ट भी किसानों को नहीं दिया जा रहा. जबकि इससे संबंधित संस्था एचआरडीआई के पास दो ही वैज्ञानिक काम कर रहे हैं. उधर, दावा किया जाता है कि इससे जुड़ी खेती करने वाले किसानों की संख्या करीब 23,000 है. वैसे यह जड़ी बूटियां अधिकतर हिमालई क्षेत्र में ही मिलती है और इसीलिए इसे नेटिव स्पीशीज ऑफ हिमालया भी कहा जाता है.
ये भी पढ़ेंः दावानल और अत्यधिक दोहन से विलुप्ति की कगार पर औषधीय पौधे, संरक्षण की दरकार

अकेले चमोली में ही करीब 300 किसान कुटकी की खेती कर रहे हैं. बड़ी बात ये है कि न तो सरकार अवैध जड़ी बूटियों के तस्करी पर रोक लगा पा रही है और न ही जंगलों और खेती से मिलने वाली जड़ी बूटियों में अंतर करने के लिए कोई सिस्टम तैयार किया जा सका है. बड़ी बात ये है कि इससे जुड़े किसानों को रजिस्टर्ड भी नहीं किया गया है. जिससे अपनी खेती वाली जड़ी बूटियों को बाजार तक लाने में किसानों को कई दिक्कतों का सामना करना पड़ता है.

फिलहाल, इन जड़ी बूटियों को लेकर सिंगल विंडो सिस्टम तैयार करने में भी सरकार चल रही है. इसके चलते एचआरडीआई, भेषज संघ, भेषज विकास इकाई और वन विकास निगम के साथ बायो डायवर्सिटी बोर्ड इसको लेकर स्टेक होल्डर के रूप में सामने आए हैं.

वैसे उद्योगों तक आसानी से जड़ी बूटियों को पहुंचाने और इसके बेहतर उपयोग के लिए उद्योगों से तालमेल करने को लेकर जैव विविधता बोर्ड की तरफ से प्रयास किए जा रहे हैं. इसी को लेकर उद्योगपतियों और इन संस्थाओं के बीच एक एमओयू भी पिछले दिनों किया गया है. जैव विविधता बोर्ड के सचिव एसएस रसायली इसको लेकर गंभीर प्रयास किए जाने की बात कहते हैं.

दुनियाभर में बैन जड़ी बूटियों की उत्तराखंड में हो रही खेती.

देहरादूनः हिमालय में ऐसी कई जड़ी बूटियां है, जो इंसानी उपयोग के लिहाज से बेहद खास मानी जाती हैं. ये जड़ी बूटियां तमाम बीमारियों में अचूक बाण के रूप में भी देखी जाती है. शायद इसीलिए भारत ही नहीं, बल्कि दुनिया भर में इन जड़ी बूटियों की जबरदस्त डिमांड भी है, लेकिन इसके बावजूद अंतरराष्ट्रीय स्तर की संस्था CITES (the Convention on International Trade in Endangered Species of Wild Fauna and Flora) ने ऐसी कई जड़ी बूटियों के दोहन को अपनी सूची में अवैध माना है.

जड़ी बूटी शोधकर्ता डॉ जितेंद्र बुटोला के मुताबिक आयुर्वेद में विभिन्न जड़ी बूटियों का उपयोग किया जाता है. जिससे कई गंभीर बीमारियों का इलाज होता है. आयुर्वेद से जुड़ी तमाम फार्मा कंपनियां भी ऐसी ही जड़ी बूटियों का उपयोग कर करोड़ों अरबों का मुनाफा कमाती हैं, लेकिन हिमालयी क्षेत्र के जंगलों में मिलने वाली इन जड़ी बूटियों के अत्यधिक दोहन और संरक्षण न होने के चलते अब यह जड़ी बूटियां विलुप्त होने की कगार पर आ गई है. जाहिर है कि इतने महत्वपूर्ण जड़ी बूटियों के विलुप्त होने के खतरे को देखते हुए ही दुनियाभर में जंगलों से इसके दोहन पर रोक लगाई गई है.
ये भी पढ़ेंः उत्तरायणी मेले में सजता है जड़ी बूटियों का अनोखा बाजार, टूट पड़ते हैं खरीदार

ऐसी कई संस्थाएं हैं, जो जड़ी बूटी के उपयोग और इनकी मौजूदगी को लेकर समय समय पर आकलन करती है. इसी आकलन के दौरान ऐसी कई जड़ी बूटियां हैं. जिनको संरक्षित करने के दृष्टिकोण से उपयोग पर बैन किया जाता है. इन्हीं में से 26 जड़ी बूटियों पर उत्तराखंड सरकार ने लाइसेंस के माध्यम से किसानों को इसके उत्पादन की इजाजत दी है. जानकार बताते हैं कि ऐसी जड़ी बूटियां जो कभी बहुतायत मिलती थी, आज विलुप्त हो रही हैं.

नेपाल के तस्करों के लिए भारत बड़ा बाजारः देश में फार्मा कंपनियों की जड़ी बूटियों को लेकर भारी डिमांड के चलते नेपाल के तस्करों की नजर भी भारत के बाजार ही होते हैं. भारतीय बाजारों में नेपाल के तस्कर हिमालय क्षेत्र से लाई गई जड़ी बूटी को बेचते हैं. खास बात ये है कि नेपाल में भी इन जड़ी बूटियों को लेकर खेती का कोई सिस्टम नहीं है और वहां सिर्फ जंगलों से अवैध रूप में जड़ी बूटियों को लाया जाता है.

Herbs Cultivation in Uttarakhand
दुनियाभर में बैन जड़ी बूटियों की उत्तराखंड में हो रही खेती
ये भी पढ़ेंः 'हिमालयन वियाग्रा' के दोहन में दूसरे नंबर पर भारत, उपयोग के मामले में पीछे

उत्तराखंड में वैध की गई है जड़ी बूटियों की 26 प्रजातियांः उत्तराखंड में विलुप्त होने की कगार पर पहुंच चुकी ऐसी 26 जड़ी बूटियों की प्रजातियों को किसानों की ओर से खेती किए जाने के लिए वैध किया गया है. जो न केवल मौसम के लिहाज से उत्तराखंड के विभिन्न क्षेत्रों में आसानी से उगाई जा सकती है. बल्कि, उनके जरिए किसानों की आय को भी बेहतर किया जा सकता है.

इन 26 जड़ी बूटियों में मुख्य रूप से उत्तराखंड में कूठ, कुटकी, अतिश, चिरायिक, सतवा और जटामाशी की खेती की जा रही है. इन जड़ी बूटियों का उपयोग फार्मा कंपनियां विभिन्न दवाइयां बनाने के लिए करती हैं. इसमें खास तौर पर लिवर से जुड़ी दवाई बनाने में इसका उपयोग हो रहा है. जिसका बेहद ज्यादा असर मरीजों पर देखा जाता है.

अवैध व्यापार से किसानों की बढ़ रही परेशानीः भारत में नेपाल से हो रहे अवैध कारोबार के कारण उत्तराखंड में जो खेती जड़ी बूटियों की जा रही है, उसमें किसानों को उतना लाभ नहीं मिल पा रहा है. दरअसल, नेपाल से आने वाले तस्कर बाजार में जंगलों से लाई गई जड़ी बूटियों को ओने पौने दाम में बेच देते हैं. इससे मेहनत के बाद उगने वाली जड़ी बूटियों का वो दाम नहीं मिल पाता जो किसानों को दरकार होती है.
ये भी पढ़ेंः जड़ी बूटी से 'अन्नदाता' के आए सुख भरे दिन, परंपरागत खेती से मोह हो रहा भंग

इस तरह अब भी करीब 80% जड़ी बूटियों की आपूर्ति फार्मा कंपनियों को नेपाल के अवैध बाजार से हो रहा है. जबकि, मात्र 20% आपूर्ति ही किसानों से ली जा रही है. उदाहरण के तौर पर कुटकी जिस के दाम किसानों को करीब 1200 रुपए किलो मिलने चाहिए थे. नेपाल से आने वाले तस्कर उसे करीब ₹500 से ₹600 में ही उपलब्ध करा रहे हैं. जबकि, किसान अपने खेतों में करीब ₹800 पर नाली की लागत से इसकी खेती कर रहा है.

उधर फार्मा कंपनियां इस रो मटेरियल को दवाई के रूप में तैयार कर उपभोक्ताओं से कई गुना रकम वसूलती है. इसी तरह कुठ का दुनियाभर में बड़ा बाजार है. सऊदी अरब उसका बड़ा हब है और वहां पर इसकी काफी डिमांड भी है, लेकिन अवैध कारोबार के कारण बाजार में इसे करीब 250 रुपए किलो उपलब्ध करा दिया जाता है. जिसका नुकसान किसानों को हो रहा है. उधर, सरकार की तरफ से इसके लिए कोई दाम तय नहीं की है और एमएसपी निर्धारित न होने से भी किसानों को दिक्कतें आ रही है.

किसानों को नहीं मिल रहा तकनीकी सपोर्ट, सिंगल विंडो सिस्टम कि नहीं बना पाई सरकारः उत्तराखंड जड़ी बूटियों के उत्पादन या उसकी खेती को लेकर सरकार की तरफ से तकनीकी सपोर्ट भी किसानों को नहीं दिया जा रहा. जबकि इससे संबंधित संस्था एचआरडीआई के पास दो ही वैज्ञानिक काम कर रहे हैं. उधर, दावा किया जाता है कि इससे जुड़ी खेती करने वाले किसानों की संख्या करीब 23,000 है. वैसे यह जड़ी बूटियां अधिकतर हिमालई क्षेत्र में ही मिलती है और इसीलिए इसे नेटिव स्पीशीज ऑफ हिमालया भी कहा जाता है.
ये भी पढ़ेंः दावानल और अत्यधिक दोहन से विलुप्ति की कगार पर औषधीय पौधे, संरक्षण की दरकार

अकेले चमोली में ही करीब 300 किसान कुटकी की खेती कर रहे हैं. बड़ी बात ये है कि न तो सरकार अवैध जड़ी बूटियों के तस्करी पर रोक लगा पा रही है और न ही जंगलों और खेती से मिलने वाली जड़ी बूटियों में अंतर करने के लिए कोई सिस्टम तैयार किया जा सका है. बड़ी बात ये है कि इससे जुड़े किसानों को रजिस्टर्ड भी नहीं किया गया है. जिससे अपनी खेती वाली जड़ी बूटियों को बाजार तक लाने में किसानों को कई दिक्कतों का सामना करना पड़ता है.

फिलहाल, इन जड़ी बूटियों को लेकर सिंगल विंडो सिस्टम तैयार करने में भी सरकार चल रही है. इसके चलते एचआरडीआई, भेषज संघ, भेषज विकास इकाई और वन विकास निगम के साथ बायो डायवर्सिटी बोर्ड इसको लेकर स्टेक होल्डर के रूप में सामने आए हैं.

वैसे उद्योगों तक आसानी से जड़ी बूटियों को पहुंचाने और इसके बेहतर उपयोग के लिए उद्योगों से तालमेल करने को लेकर जैव विविधता बोर्ड की तरफ से प्रयास किए जा रहे हैं. इसी को लेकर उद्योगपतियों और इन संस्थाओं के बीच एक एमओयू भी पिछले दिनों किया गया है. जैव विविधता बोर्ड के सचिव एसएस रसायली इसको लेकर गंभीर प्रयास किए जाने की बात कहते हैं.

Last Updated : May 29, 2023, 10:43 PM IST
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