राजकोट: गुजरात के राजकोट में एक बडा हादसा होने से बचा. एक स्कूल बस के ड्राइवर को उस वक्त दिल का दौरा पड़ा, जब वह ड्राइविंग कर रहा था. दिल का दौरा पड़ने से वह स्टियरिंग व्हील से नियंत्रण खो बैठा और बस आगे चलती चली गई. लेकिन इस दौरान एक छात्रा की चतुराई से एक बड़ा हादसा टल गया. जब बस ड्राइवर को दिल का दौरा पड़ा तो बस में स्कूल के छात्र बैठे हुए थे. राजकोट के गोंडल रोड के पास यह हादसा होने से बचा.
जब दोपहर में बस ड्राइवर को दिल का दौरा पड़ा, तो वह स्टियरिंग व्हील पर गिर पड़ा. बस जाकर एक वीज पोल से टकरा गई, जिसके चलते उसमें थोड़ा नुकसान हुआ है. प्रत्यक्षदर्शियों ने इस घटना के बारे में बताते हुए कहा कि जब ड्राइवर को दिल का दौरा पड़ा, तो बस गलत साइड के ट्रैक पर चली गई थी. इसकी वजह से आगे चल रहे कुछ वाहनों को नुकसान हुआ. लेकिन बस में बैठी एक छात्रा ने जब बस को अनियंत्रित होते देखा तो, उसने स्टियरिंग व्हील संभाल लिया और कहीं जगह न दिखने पर उसने बस को एक वीज पोल से टकरा दिया.
इसकी वजह से एक बड़ा हादसा होने से टल गया. बताया जा रहा है कि इस बहादुर छात्रा का नाम भार्गवी व्यास है, जो राजकोट के भराड स्कूल में पढ़ाई कर रही है. वहीं बस चालक का नाम हारून भाई है, जिसका इलाज अभी भी राजकोट के सिविल हॉस्पिटल में हो रहा है. छात्रा ने बताया है कि 'मैं एस्ट्रोन चोंक से बस में बैठी थी. मैं ड्राइवर के पास की सीट के पास बैठी थी. भक्तिनगर सर्कल के पास से अन्य छात्राओं को बस में बैठना था.'
छात्रा ने आगे बताया कि 'हम दोनों बात कर रहे थे और जब गोंडल रोड के पास पहुंचे, तो हारूनभाई की आवाज बदल गई. उनके शब्द लड़खड़ाने लगे और उनका मुंह एक तरफ खिंचने लगा. मैं अपनी सीट से उठी और हारूनभाई के पास गई, क्योंकि मुझे लगा कि उनकी तबीयत बिगड़ रही है. उनकी नाक से खून निकलने लगा. जैसे ही मैंने उनका हाथ पकड़ा वह एक तरफ गिर गए. उधर बस ने डिवाइडर लांघ कर दो खड़े स्कूटर और एक कार को टक्कर मार दी थी.'
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छात्रा ने बताया कि 'विपरीत दिशा से कई वाहन आ रहे थे. मुझे लग रहा था कि बस कई वाहनों को टक्कर मार देगी. तभी मैंने बस को पास की दीवार या किसी और चीज से टकराने का सोचा और मैंने वही किया. मैंने बस को एक वीज पोल से टकरा दिया.' इस मामले में राजकोट स्व-नियोजित स्कूल बोर्ड के अध्यक्ष डी.वी.मेहता ने कहा, 'यदि किसी चालक को हृदय रोग का पता चलता है, तो उसका इलाज किया जाना चाहिए. यदि स्थिति गंभीर है तो उसे चालक की ड्यूटी के बजाय दूसरी ड्यूटी सौंपी जानी चाहिए. स्कूलों में हर तीन महीने में ड्राइवरों के स्वास्थ्य की जांच की जानी चाहिए.