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SC ने नारायण साई को 'फर्लो' दिए जाने के खिलाफ गुजरात सरकार की अपील पर सुनवाई पूरी की, फैसला बाद में

सुप्रीम कोर्ट (Supreme court) ने आसाराम के बेटे और बलात्कार के दोषी नारायण साई को दो सप्ताह की 'फर्लो' दिए जाने के हाई कोर्ट के आदेश के विरुद्ध गुजरात सरकार की याचिका पर सुनवाई पूरी कर ली. अब इस मामले में कोर्ट बाद में निर्णय सुनाएगा.

सुप्रीम कोर्ट
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Published : Oct 1, 2021, 9:29 PM IST

नई दिल्ली : उच्चतम न्यायालय (Supreme court) ने आसाराम के बेटे और बलात्कार के दोषी नारायण साई को दो सप्ताह की 'फर्लो' दिए जाने के उच्च न्यायालय के आदेश के खिलाफ गुजरात सरकार की याचिका पर शुक्रवार को सुनवाई पूरी कर ली. न्यायालय इस पर बाद में फैसला सुनाएगा.

गुजरात सरकार ने न्यायालय से कहा कि साई को 'फर्लो' नहीं दी जानी चाहिए क्योंकि वह जेल के भीतर आपराधिक गतिविधियों में शामिल रहा है. साई ने इस आधार पर 'फर्लो' मांगी है कि उसे पूर्व में कोरोना वायरस से संक्रमित हुए अपने पिता आसाराम की देखरेख करनी है. गुजरात सरकार ने इसका विरोध करते हुए कहा कि आसाराम उपचार के बाद अब फिर से जेल में है.

नारायण साई और उसके पिता आसाराम को बलात्कार के अलग-अलग मामलों में दोषी ठहराया जा चुका है तथा वे आजीवान कारावास की सजा काट रहे हैं. न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति बी वी नागरत्ना की पीठ ने साई को दो सप्ताह की 'फर्लो' देने के उच्च न्यायालय के आदेश के खिलाफ गुजरात सरकार की अपील पर संबंधित पक्षों को सुना और कहा कि इस पर निर्णय बाद में सुनाया जाएगा.

गुजरात सरकार की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि साई ने पुलिस और स्वास्थ्य अधिकारियों को रिश्वत देने की कोशिश की है तथा वह जेल के भीतर मोबाइल फोन का इस्तेमाल करते हुए पाया गया है. उन्होंने कहा कि बलात्कार के मुकदमे के दौरान उससे जुड़े मामलों के कई प्रमुख गवाहों पर हमले हुए और उनकी हत्या कर दी गई.

ये भी पढ़ें - मातृत्व लाभ अधिनियम के प्रावधान को चुनौती देने वाली याचिका पर न्यायालय का केंद्र को नोटिस

मेहता ने कहा, 'इस साल जनवरी में उसे (साई) अपनी बीमार मां की देखरेख करने के लिए अंतरिम जमानत मिल गई थी और उसके बाद उच्च न्यायालय ने अब उसे 'फर्लो' दे दी. वह जेल में बंद रहने के दौरान भी आपराधिक गतिविधियों में शामिल रहा है.' उन्होंने शीर्ष अदालत से आग्रह किया कि साई को 'फर्लो' देने के उच्च न्यायालय के आदेश को दरकिनार किया जाना चाहिए क्योंकि यह दोषी के पूर्ण अधिकार का मामला नहीं है.

वहीं, साई की ओर से पेश अधिवक्ता संजीव पूनालेकर ने कहा कि 'फर्लो' के लिए किसी कारण की जरूरत नहीं है क्योंकि यह कैदी के लिए समाज में अपनी जड़ें बनाए रखने के लिए है. उन्होंने कहा कि साई को यह दूसरी 'फर्लो' है और पहली 'फर्लो' के दौरान उसने सभी शर्तों का पालन किया था. पीठ ने याचिका पर फैसला सुरक्षित रखते हुए कहा कि वह इस पर आदेश पारित करेगी. साई को 'फर्लो' देने के उच्च न्यायालय के आदेश पर शीर्ष अदालत ने 12 अगस्त को रोक लगा दी थी.

(पीटीआई-भाषा)

नई दिल्ली : उच्चतम न्यायालय (Supreme court) ने आसाराम के बेटे और बलात्कार के दोषी नारायण साई को दो सप्ताह की 'फर्लो' दिए जाने के उच्च न्यायालय के आदेश के खिलाफ गुजरात सरकार की याचिका पर शुक्रवार को सुनवाई पूरी कर ली. न्यायालय इस पर बाद में फैसला सुनाएगा.

गुजरात सरकार ने न्यायालय से कहा कि साई को 'फर्लो' नहीं दी जानी चाहिए क्योंकि वह जेल के भीतर आपराधिक गतिविधियों में शामिल रहा है. साई ने इस आधार पर 'फर्लो' मांगी है कि उसे पूर्व में कोरोना वायरस से संक्रमित हुए अपने पिता आसाराम की देखरेख करनी है. गुजरात सरकार ने इसका विरोध करते हुए कहा कि आसाराम उपचार के बाद अब फिर से जेल में है.

नारायण साई और उसके पिता आसाराम को बलात्कार के अलग-अलग मामलों में दोषी ठहराया जा चुका है तथा वे आजीवान कारावास की सजा काट रहे हैं. न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति बी वी नागरत्ना की पीठ ने साई को दो सप्ताह की 'फर्लो' देने के उच्च न्यायालय के आदेश के खिलाफ गुजरात सरकार की अपील पर संबंधित पक्षों को सुना और कहा कि इस पर निर्णय बाद में सुनाया जाएगा.

गुजरात सरकार की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि साई ने पुलिस और स्वास्थ्य अधिकारियों को रिश्वत देने की कोशिश की है तथा वह जेल के भीतर मोबाइल फोन का इस्तेमाल करते हुए पाया गया है. उन्होंने कहा कि बलात्कार के मुकदमे के दौरान उससे जुड़े मामलों के कई प्रमुख गवाहों पर हमले हुए और उनकी हत्या कर दी गई.

ये भी पढ़ें - मातृत्व लाभ अधिनियम के प्रावधान को चुनौती देने वाली याचिका पर न्यायालय का केंद्र को नोटिस

मेहता ने कहा, 'इस साल जनवरी में उसे (साई) अपनी बीमार मां की देखरेख करने के लिए अंतरिम जमानत मिल गई थी और उसके बाद उच्च न्यायालय ने अब उसे 'फर्लो' दे दी. वह जेल में बंद रहने के दौरान भी आपराधिक गतिविधियों में शामिल रहा है.' उन्होंने शीर्ष अदालत से आग्रह किया कि साई को 'फर्लो' देने के उच्च न्यायालय के आदेश को दरकिनार किया जाना चाहिए क्योंकि यह दोषी के पूर्ण अधिकार का मामला नहीं है.

वहीं, साई की ओर से पेश अधिवक्ता संजीव पूनालेकर ने कहा कि 'फर्लो' के लिए किसी कारण की जरूरत नहीं है क्योंकि यह कैदी के लिए समाज में अपनी जड़ें बनाए रखने के लिए है. उन्होंने कहा कि साई को यह दूसरी 'फर्लो' है और पहली 'फर्लो' के दौरान उसने सभी शर्तों का पालन किया था. पीठ ने याचिका पर फैसला सुरक्षित रखते हुए कहा कि वह इस पर आदेश पारित करेगी. साई को 'फर्लो' देने के उच्च न्यायालय के आदेश पर शीर्ष अदालत ने 12 अगस्त को रोक लगा दी थी.

(पीटीआई-भाषा)

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