नई दिल्ली: पद्म श्री एवं खेल रत्न अर्जुन पुरस्कार से सम्मानित भारत की पहली महिला पैरालंपिक पदक विजेता तथा भारत की पैरालंपिक समिति की अध्यक्ष, डॉ. (एचसी) दीपा मलिक ने क्षयरोग (टीबी) मुक्त भारत अभियान की राष्ट्रीय दूत और नि-क्षय मित्र बनकर इस अभियान को अपना समर्थन देने का संकल्प लिया है. डॉ. (एचसी) दीपा मलिक ने मार्च 2018 में माननीय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा शुरू किए गए क्षयरोग (टीबी) मुक्त भारत अभियान के प्रति अपनी प्रतिबद्धता उस समय व्यक्त की, जब उन्होंने प्रगति मैदान, नई दिल्ली में चल रहे 41वें भारत अंतर्राष्ट्रीय व्यापार मेला में स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय के मंडप में टीबी जागरूकता गतिविधियों में भाग लिया.
साथ ही उन्होंने भारत की माननीय राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु जो टीबी पीड़ित रोगियों को पोषण, अतिरिक्त निदान और व्यावसायिक सहायता के तीन स्तरों पर सहायता प्रदान करने का प्रयास करती हैं, द्वारा शुरू की गई एक पहल में नि-क्षय मित्र बनकर अभियान को अपना समर्थन दिया. उन्होंने नि-क्षय मित्र के रूप में स्वयं 5 क्षय रोगियों को गोद लिया है और इस बात पर प्रकाश डालते हुए कि यदि हर कोई इस कलंक को दूर करके, जागरूकता फैलाकर और सहायता प्रदान करके अपनी क्षमता से भाग लेता है, तो भारत बहुत जल्द टीबी पर विजय प्राप्त कर लेगा, लोगों को इस योजना में नामांकन करने के लिए प्रोत्साहित किया है.
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टीबी मुक्त भारत अभियान के लिए अपने समर्थन के बारे में बात करते हुए डॉ. (एचसी) दीपा मलिक ने कहा कि मुझे टीबी मुक्त भारत जन आंदोलन में एक राष्ट्रीय राजदूत के रूप में शामिल होने की खुशी है और दुर्बल करने वाले इस रोग, जिसे आसानी से रोका जा सकता है और ठीक किया जा सकता है तथा यह सुनिश्चित करने के लिए कि भारत 2025 तक टीबी मुक्त होने के अपने लक्ष्य तक पहुंच जाए, इसके बारे में बहुत आवश्यक जागरूकता बढ़ाने वाली टीमों के साथ काम करने के लिए मैं आशान्वित हूं.
उन्होंने क्षय रोग से मुक्त हो जाने (टीबी सर्वाइवर बनने) की अपनी कहानी को याद किया. उन्होंने जोर देकर कहा कि उपचार अवश्य शारीरिक है, लेकिन ठीक होने का पहला कदम मानसिक कल्याण के साथ शुरू होता है, सकारात्मक मानसिकता बनाए रखने और इस स्थिति के आसपास के कलंक से ऊपर उठने पर ध्यान केंद्रित करना होता है. उन्होंने जोर देकर कहा कि हालांकि पूरी तरह से ठीक होने की यात्रा में समय लग सकता है, अतः स्वास्थ्य को समग्र रूप से देखना और इसमें शारीरिक पहलू से परे मानसिक स्वास्थ्य को भी शामिल करना महत्वपूर्ण है. इस बात पर प्रकाश डालते हुए कि 'स्वास्थ्य ही परम धन है', उन्होंने जन आंदोलन में भाग लेकर 2025 तक भारत को टीबी मुक्त बनाने के लिए गति प्रदान करने में अपना योगदान देने का आग्रह किया.
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मेरा दृढ़ विश्वास है कि किसी को भी अपनी उम्र, जाति, लिंग या क्षमता के कारण अपनी क्षमता को पूरा करने में पीछे नहीं रहना चाहिए. इसमें टीबी जैसी बीमारी से पीड़ित कोई भी व्यक्ति शामिल है. उन्हें कभी भी अकेला महसूस नहीं करना चाहिए और नागरिक के रूप में यह हमारा कर्तव्य है कि हम उनका समर्थन करने के लिए जो कुछ भी कर सकते हैं, करें. हमें मित्र के रूप में उनके पास पहुंचना चाहिए और उन्हें याद दिलाना चाहिए कि उनके साथ लोग हैं, यही कारण है कि मैं स्वयं निक्षय मित्र के रूप में निक्षय मित्र पहल का पूर्ण समर्थन करती हूं.