देहरादून : उत्तराखंड में कोरोना संक्रमण के मामलों को लेकर नैनीताल हाई कोर्ट ने राज्य सरकार पर तल्ख टिप्पणी की है. मामले की सुनवाई के दौरान उच्च न्यायालय ने कहा कि कोविड-19 परीक्षणों की लगातार घटती संख्या से पता चलता है कि राज्य सरकार खुद के साथ जनता को भी धोखा दे रही है.
बता दें मामले में सुनवाई करते हुए हाईकोर्ट ने पूछा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा 551 ऑक्सीजन जनरेशन प्लांट लगाने की जो घोषणा की गई थी. उसमें उत्तराखंड में कितने प्लांट स्थापित किए जाएंगे? याचिकाकर्ता के अधिवक्ता के द्वारा कोर्ट को बताया गया कि एम्स ऋषिकेश में ऑक्सीजन जनरेशन प्लांट नहीं है. जिस वजह से मरीजों की मौत हो रही है और राज्य सरकार के द्वारा ऋषिकेश के एसपीएस अस्पताल में कोविड मरीजों के लिए अपनी वेबसाइट में 6 बेड दर्शाए गए हैं, लेकिन सीएमओ ऋषिकेश इससे इनकार कर रहे हैं. कोविड मरीजों को बेड नहीं दे रहे हैं. इसके साथ ही राज्य सरकार के द्वारा 310 मीट्रिक टन ऑक्सीजन उत्तराखंड से दिल्ली समेत अन्य प्रदेशों को भेजी जा रही है, जबकि केंद्र सरकार ने राज्य सरकार को ऐसा करने से मना किया है.
हल्द्वानी निवासी अधिवक्ता दुष्यंत मैनाली और देहरादून के सच्चिदानंद डबराल के द्वारा जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए मुख्य न्यायाधीश की खंडपीठ ने राज्य सरकार को अपना जवाब कोर्ट में पेश करने को कहा था.
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उत्तराखंड में चारधाम यात्रा को लेकर राज्य सरकार के द्वारा जारी की गई SOP, ऋषिकेश एम्स अस्पताल में ऑक्सीजन जनरेशन प्लांट स्थापित ना किए जाने और उत्तराखंड में स्वास्थ्य सेवाओं की बदहाली पर नैनीताल हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश की खंडपीठ ने राज्य सरकार को 2 सप्ताह के भीतर अपना विस्तृत जवाब कोर्ट में पेश करने के आदेश दिए हैं.
हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश राघवेंद्र सिंह चौहान की खंडपीठ में सुनवाई हुई. इस दौरान अधिवक्ता शिव भट्ट ने कोर्ट को बताया कि राज्य सरकार के द्वारा उत्तराखण्ड में चारधाम यात्रा के लिए जो SOP जारी की गई है, वो सुप्रीम कोर्ट के आदेश की अवहेलना है. क्योंकि सुप्रीम कोर्ट द्वारा 30 अप्रैल 2021 को आदेश जारी किया था कि कोई भी राज्य सरकार अपने प्रदेश में कोई बड़े कार्यक्रम नहीं कर पाएगी. इसके बावजूद उत्तराखंड सरकार द्वारा प्रदेश में चारधाम जैसी बड़ी यात्रा को कराया जा रहा है और केवल समाचार पत्रों के माध्यम से लोगों को आने से मना किया जा रहा है. जबकि राज्य सरकार द्वारा SOP में ऐसा कोई जिक्र ही नहीं है. याचिका का संज्ञान लेते हुए मुख्य न्यायाधीश की खंडपीठ ने राज्य सरकार को 2 सप्ताह के भीतर अपना जवाब कोर्ट में पेश करने को कहा है.