लखनऊ : बटलर पैलेस काॅलोनी की इस आलीशान कोठी को राजा महमूदाबाद ने बनवाया था, लेकिन इस समय यह पूरी तरह से अंधेरे में है. इसके आसपास से गुजरने वाले लोगों को डर लगता है. यह आलीशान कोठी पूरी तरह से वीरान खड़ी है. जानकार बताते हैं कि बटलर पैलेस को वर्ष 1914-15 में राजा महमूदाबाद ने बनवाना शुरू किया था. इसके बारे में कहा जाता है कि आलीशान पैलेस को बनाने के लिए घना जंगल काटा गया था, जहां आत्माएं रहती थीं. लोग दावा यह भी करते हैं कि यहां एक महिला सफेद साड़ी वाली आकृति को सीढ़ियों से फिसलते हुए परिसर में स्थित झील में कूद जाती है. ऐसा भी लोगों ने देखा है. हालांकि आसपास रहने वाले लोग इस समय इसके बारे में सिर्फ खंडहर कोठी के अलावा कुछ और बात नहीं बताते हैं.
इस कोठी का नामकरण बटलर पैलेस वर्ष 1907 में डिप्टी कमिश्नर अवध बने सर हारकोर्ट बटलर के नाम पर किया गया था. राजा महमूदाबाद के इस आलीशान, लेकिन अब पूरी तरह से वीरान हो चुकी इमारत की नींव वर्ष 1915 में हारकोर्ट बटलर ने रखी थी. जिसकी वजह से इसका नाम भी उनसे ही जुड़ गया. वर्ष 1921 में इस कोठी का एक सिरा बनकर तैयार हो गया था, लेकिन उसी साल गोमती में आई बाढ़ ने उसे पूरी तरह तहस-नहस कर दिया और फिर राजा महमूदाबाद ने इसे बनवाने का मन बदल दिया और बाढ़ पीड़ितों की मदद में अपना पैसा खर्च कर दिया. ऐसी स्थिति में कोठी का चौथाई हिस्सा ही बन सका और फिर निर्माण कार्य आगे नहीं बढ़ा.
ईटीवी भारत की टीम इस कोठी के अंदर गई तो सिर्फ वीरान खंडहर ही नजर आए. कोठी पूरी तरह से जर्जर और बदहाल है. यह कोठी कोई भूतिया नहीं, बल्कि एक जर्जर कोठी ही है. यहां पर तमाम शराब की बोतलें और कोठी की दीवारों पर अश्लील बातें लिखी हैं. इसे देखकर लगता है लोगों ने अंधविश्वास को बढ़ावा देने के लिए ही इसे भूतिया कोठी का तमगा जड़ा होगा और अपने गलत कामों का ठिकाना बना लिया. फिलवक्त यहां नशेड़ियों का आना जाना लगा रहता है. बटलर पैलेस कॉलोनी में कई राज्यमंत्री, आईएएस, पीसीएस और कई जज जैसे प्रमुख लोग भी रहते हैं, लेकिन ऐहतिहासिक कोठी पूरी से जर्जर हालत में ही है. किसी का भी ध्यान इसे ठीक कराने पर नहीं है.
इतिहासकार रवि भट्ट बताते हैं कि बटलर पैलेस कोठी का निर्माण राजा महमूदाबाद ने 1915 में शुरू करवाया था. यह कोठी चित्ताकर्षक बनावट और प्रभावशाली स्थापत्य कला धरोहर है. राजा साहब ने 1921 में लखनऊ में बाढ़ आने के बाद कोठी को और विस्तार देने का इरादा त्याग दिया था और जो कोठी को विस्तार देने का काम था उस पैसे को बाढ़ प्रभावित लोगों की मदद में खर्च कर दिया. बाद में जब इसकी एक विंग बनकर तैयार हुई तो डिप्टी कमिश्नर यहां पर रहते थे. उसके बाद में इंडिपेंडेंस (स्वतंत्रता) के बाद में यह गेस्ट हाउस बन गया था. यह चौमुखी कोठी है और आलीशान इमारत बनाई गई थी. इंडिपेंडेंस के बाद यह गेस्ट हाउस बना दिया गया था. यहां पर तमाम महत्वपूर्ण लोग आकर रुकते थे. पंडित मोतीलाल नेहरू, सर तेज बहादुर सप्रू सहित पटना के अली इमाम साहब, महाराजा नेपाल इस कोठी में लखनऊ आने पर रहते थे. वर्ष 1965 में पाकिस्तान-भारत युद्ध के बाद यह प्रॉपर्टी शत्रु संपत्ति घोषित कर दी गई. बाद में फिर इसका देखरेख नहीं हो पाया और यह वीरान होती चली गई और लोग इसे तरह तरह की कहानियों से जोड़कर बताते रहे. यहां पर भूत रहते हैं. ऐसी कोई बात नहीं है. मैं इतिहासकार होने के नाते यह नहीं मानता हूं कि पूर्व जैसी कोई चीज भी होती है. स्थानीय निवासी नीरज कहते हैं कि हम यहां आते जाते हैं, लेकिन कोई डर नहीं लगता है. लोगों ने ऐसे ही अंधविश्वास को बढ़ावा देने के लिए इसे भूतिया कहना शुरू कर दिया था, लेकिन इसमें ऐसा कुछ नहीं है.