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अंबिकापुर में ग्रामीणों की मेहनत का नमूना, 3 हजार फीट ऊपर से गांव तक पहुंचाया पानी

अंबिकापुर का एक गांव आजादी के बाद से ही पानी के लिए तरस रहा था. जब सरकार ने बात नहीं सुनी तो ग्रामीणों (Jama village of Lakhanpur block) ने पहाड़ का सीना चीरकर पानी को अपने गांव तक पहुंचा दिया.

Sample of hard work of villagers in Ambikapur
अंबिकापुर में ग्रामीणों की मेहनत का नमूना
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Published : May 2, 2022, 6:50 PM IST

सरगुजा : आपने शाहरुख खान की फिल्म स्वदेश तो जरूर देखी होगी. इस फिल्म में शाहरुख अपने गांव आकर कुछ ऐसा करते हैं, जिससे उनके गांव में बिजली की समस्या दूर हो जाती है. बिजली की समस्या का समाधान उनके गांव के पास ही होता है लेकिन उस ओर किसी का ध्यान नहीं जाता. ठीक इसी तरह छत्तीसगढ़ के सरगुजा जिले का गांव पानी की कमी से जूझ रहा था. इस कमी को पूरा करने के लिए आसपास के गांववालों ने एक युक्ति अपनाई. जिसके बाद अब इस पानी विहीन गांव में चौबीस घंटे पानी आता है.

अंबिकापुर में ग्रामीणों की मेहनत का नमूना

पहाड़ चीरकर लाया पानी : ईटीवी भारत की टीम अंबिकापुर से 70 किलोमीटर दूर लखनपुर विकासखंड के गांव जामा (Jama village of Lakhanpur block) पहुंची. यहां ग्रामीण सरकारी तंत्र का इंतजार करते-करते परेशान हो गए तो उन्होंने खुद ही पानी की समस्या का समाधान ढूंढ निकाला. समाधान क्या था, ये जानने के लिए ईटीवी की टीम ग्रामीणों के साथ तीन हजार फीट ऊपर पहाड़ पर पहुंची. वहां पहुंचने के बाद जो नजारा हमने देखा वो वाकई दिल को सुकून देने वाला था. ग्रामीणों ने थोड़ी सी मेहनत करके अपने जलविहीन गांव को जलमय कर दिया था.

सिस्टम से हारे,लेकिन सहयोग से मिली जीत : ग्रामीणों ने नलजल योजना के तहत कई बार अर्जी दी. लेकिन कोई नतीजा नहीं निकला. दुर्गम और पहुंच विहीन गांव होने के कारण शायद ही कोई अफसर इस गांव की तरफ आता हो. गांव में टंकी बनाई जा चुकी है. पाइपलाइन बिछ चुकी है. लेकिन पानी नहीं आया. ऐसे में ग्रामीणों ने चंदा किया. पाइप खरीदा और पहाड़ के ऊपर एक छोटी टंकी बनाकर उसमें पाइप जोड़कर पानी को तीन हजार फीट नीचे लेकर आ गए. इस टंकी से आसपास के तीन गांवों को चौबीस घंटे पानी की सप्लाई की जा रही है.

ये भी पढ़ें- बूंद-बूंद को तरसती जिंदगी, झिरिया से पानी पीने को मजबूर ग्रामीण

गांव में अब पानी ही पानी : ग्रामीणों की मेहनत और सूझबूझ ने ये साबित किया है कि इंसान यदि चाह ले तो कुछ भी नामुमकिन नहीं है. आजादी के बाद से पानी के लिए तरस रहे जामा गांव के लोग अब साफ पानी का इस्तेमाल कर रहे हैं. इस पानी को गांव तक लाने में ग्रामीणों ने आपसी सहयोग का जो परिचय दिया है, उसकी तारीफ अब दूसरे गांवों में भी हो रही है.

सरगुजा : आपने शाहरुख खान की फिल्म स्वदेश तो जरूर देखी होगी. इस फिल्म में शाहरुख अपने गांव आकर कुछ ऐसा करते हैं, जिससे उनके गांव में बिजली की समस्या दूर हो जाती है. बिजली की समस्या का समाधान उनके गांव के पास ही होता है लेकिन उस ओर किसी का ध्यान नहीं जाता. ठीक इसी तरह छत्तीसगढ़ के सरगुजा जिले का गांव पानी की कमी से जूझ रहा था. इस कमी को पूरा करने के लिए आसपास के गांववालों ने एक युक्ति अपनाई. जिसके बाद अब इस पानी विहीन गांव में चौबीस घंटे पानी आता है.

अंबिकापुर में ग्रामीणों की मेहनत का नमूना

पहाड़ चीरकर लाया पानी : ईटीवी भारत की टीम अंबिकापुर से 70 किलोमीटर दूर लखनपुर विकासखंड के गांव जामा (Jama village of Lakhanpur block) पहुंची. यहां ग्रामीण सरकारी तंत्र का इंतजार करते-करते परेशान हो गए तो उन्होंने खुद ही पानी की समस्या का समाधान ढूंढ निकाला. समाधान क्या था, ये जानने के लिए ईटीवी की टीम ग्रामीणों के साथ तीन हजार फीट ऊपर पहाड़ पर पहुंची. वहां पहुंचने के बाद जो नजारा हमने देखा वो वाकई दिल को सुकून देने वाला था. ग्रामीणों ने थोड़ी सी मेहनत करके अपने जलविहीन गांव को जलमय कर दिया था.

सिस्टम से हारे,लेकिन सहयोग से मिली जीत : ग्रामीणों ने नलजल योजना के तहत कई बार अर्जी दी. लेकिन कोई नतीजा नहीं निकला. दुर्गम और पहुंच विहीन गांव होने के कारण शायद ही कोई अफसर इस गांव की तरफ आता हो. गांव में टंकी बनाई जा चुकी है. पाइपलाइन बिछ चुकी है. लेकिन पानी नहीं आया. ऐसे में ग्रामीणों ने चंदा किया. पाइप खरीदा और पहाड़ के ऊपर एक छोटी टंकी बनाकर उसमें पाइप जोड़कर पानी को तीन हजार फीट नीचे लेकर आ गए. इस टंकी से आसपास के तीन गांवों को चौबीस घंटे पानी की सप्लाई की जा रही है.

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गांव में अब पानी ही पानी : ग्रामीणों की मेहनत और सूझबूझ ने ये साबित किया है कि इंसान यदि चाह ले तो कुछ भी नामुमकिन नहीं है. आजादी के बाद से पानी के लिए तरस रहे जामा गांव के लोग अब साफ पानी का इस्तेमाल कर रहे हैं. इस पानी को गांव तक लाने में ग्रामीणों ने आपसी सहयोग का जो परिचय दिया है, उसकी तारीफ अब दूसरे गांवों में भी हो रही है.

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