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ETV भारत से बोले संगीत विश्वविद्यालय के कुलपति, ग्वालियर की संगीत परंपरा विश्व में फेमस, युवा संगीतकारों को मिलेगी उड़ान

Gwalior Music Of The City: एमपी के लिए 1 नवंबर का दिन कई मायनों में खास रहा है. आज 1 नवंबर को एमपी का स्थापना दिवस है. इस खास मौके पर प्रदेश के ग्वालियर को सिटी ऑफ म्यूजिक का दर्जा मिला है. ग्वालियर को UNESCO ने क्रिएटिव शहरों में शामिल किया. ईटीवी भारत के संवाददाता अनिल गौर ने संगीत विश्वविद्यालय की कुलपति से बात की.

Music University VC Talk To ETV Bharat
संगीत विश्वविद्यालय के कुलपति
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By ETV Bharat Hindi Team

Published : Nov 1, 2023, 10:09 PM IST

Updated : Nov 1, 2023, 11:01 PM IST

संगीत विश्वविद्यालय के कुलपति की ईटीवी भारत से बात

ग्वालियर। एमपी के ग्वालियर का भारतीय शास्त्रीय संगीत परंपरा से रिश्ता किसी से छुपा नहीं है. संगीत सम्राट तानसेन से लेकर बैजू बावरा तक यहां आए, और इनसे शुरू हुई परंपरा आज तक जारी है. अब यूनेस्को ने भी ग्वालियर को "संगीत सिटी" घोषित करने का ऐलान किया है. इस घोषणा के बाद केंद्रीय नागरिक उड्डयन मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया और मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने इस निर्णय पर प्रसन्नता जाहिर की है. वहीं ग्वालियर में खुशी का माहौल है.

यहां के संगीतज्ञों, संगीत विद्यार्थियों और राजा मानसिंह संगीत विवि के कुलपति से ईटीवी भारत संवाददाता अनिल गौर ने खास बातचीत की देखें ये रिपोर्ट...

राजा मानसिंह तोमर संगीत विश्वविद्यालय की कुलपति पंडित साहित्य कुमार का कहना है कि "इस अथक प्रयास के लिए हम बरसों से लगे थे. हमारा संस्कृति विभाग और मध्य प्रदेश शासन लगातार प्रयासरत था. ग्वालियर तानसेन और बैजू बावरा की नगरी है और संगीत यहां की रग-रग में बसा हुआ है. आज यूनेस्को ने सिटी ऑफ म्यूजिक से ग्वालियर को नवाजा है. यह उपाधि न केवल ग्वालियर वासियों के लिए और न केवल प्रदेशवासियों के लिए बल्कि देशवासियों के लिए गौरव की बात है."

ग्वालियर और देश का नाम होगा रोशन: कुलपति साहित्य कुमार ने कहा ग्वालियर को द सिटी ऑफ म्यूजिक की उपाधि मिली है. उससे जो हमारे युवा कलाकार और संगीतकार हैं. उनको लाभ मिलेगा. आप सब जानते हैं कि ध्रुपद का निर्माण यही से हुआ है. यहां के कलाकार और युवा संगीतकारों को एक एक्सचेंज के रूप में विदेश में जो सिटी ऑफ म्यूजिक है. उनमें जाने का मौका मिलेगा और उनकी प्रतिमा से रूबरू होने का मौका मिलेगा. यहां के कलाकार और संगीतकार विदेश में जाएंगे और हमारे ग्वालियर और इस देश का नाम रोशन करेंगे.

ग्वालियर को परंपरा को किसी ने नहीं छोड़ा: ग्वालियर में कई मशहूर हस्तियां संगीत के क्षेत्र में विश्व भर में नाम रोशन कर रही है. जिसमें उस्ताद अमजल अली खान और उनके पुत्र, एल के पंडित साहब, गाने में और शंकर पंडित जी की परंपरा में, जो ग्वालियर की परंपरा से जुड़े हैं, वह देश ही नहीं बल्कि पूरे विश्व में यहां का नाम रोशन कर रहे हैं. इसके साथ ही उनका कहना है कि ग्वालियर में संगीतकारों को राजाशय प्राप्त हुआ था. शासन की तरफ से उनको उचित अवसर नहीं दिए गए. इसलिए वह अलग-अलग राज्यों में ग्वालियर की विद्या और संगीत को देश में नहीं बल्कि पूरे विश्व भर में रोशन कर रहे हैं. उन्होंने ग्वालियर की परंपरा को नहीं छोड़ा है.

ध्रुपद बाध्यों की परंपरासे मिलना चाहिए प्रशिक्षण: राजा मानसिंह तोमर संगीत विश्वविद्यालय के कुलपति पंडित साहित्य कुमार ने ईटीवी भारत को बताया है कि यहां पर पढ़ने वाले संगीत छात्रों को भविष्य के लिए एक विकास का मार्ग खुल गया है. इस उपाधि को विश्वविद्यालय कुछ दिन बाद सेलिब्रेट करेगा. इसके अलावा उन्होंने बताया है कि ग्वालियर में संगीत को ध्रुपद बाध्यों की जो परंपरा है, उस परंपरा के बैनर तले युवा संगीतकारों को प्रशिक्षण दिया जाना चाहिए.

यहां पढ़ें...

संगीत की नगरी से जाना जाता है ग्वालियर: बता दें ग्वालियर संगीत की नगरी कही जाती है, क्योंकि "ग्वालियर घराना" भारतीय शास्त्री संगीत परंपरा में सबसे पुराना घराना माना जाता है. यह घराना ख्याल गायकी के लिए प्रसिद्ध है. इसका आरंभ 19वीं शताब्दी में हद्दू खान, हस्सू खान और नत्थू खान नाम के तीन भाइयों ने किया था. इसके अलावा ग्वालियर में ध्रुपद रचनाओं का निर्माण हुआ, तानसेन का जन्म इसी ग्वालियर से 45 किलोमीटर दूर ग्राम बेहट में हुआ था. वह अकबर के नवरत्नों में से एक थे. उन्हें उनकी ध्रुपद रचनाओं के लिए याद किया जाता है.

ग्वालियर गायकी खुले गले की गायकी है. शुर को स्वाभाविक ढंग से लगाया जाता है. जिसमें आठ अंगों का प्रयोग होता है. इसके अलावा बैजू बावरा ग्वालियर के तत्कालीन राजा मानसिंह की संगीत नर्सरी के आचार्य हुआ करते थे. बैजू बावरा ग्वालियर के राजा मानसिंह के दरबार के गायक और उनकी संगीत नर्सरी के आचार्य भी रहे हैं.

संगीत विश्वविद्यालय के कुलपति की ईटीवी भारत से बात

ग्वालियर। एमपी के ग्वालियर का भारतीय शास्त्रीय संगीत परंपरा से रिश्ता किसी से छुपा नहीं है. संगीत सम्राट तानसेन से लेकर बैजू बावरा तक यहां आए, और इनसे शुरू हुई परंपरा आज तक जारी है. अब यूनेस्को ने भी ग्वालियर को "संगीत सिटी" घोषित करने का ऐलान किया है. इस घोषणा के बाद केंद्रीय नागरिक उड्डयन मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया और मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने इस निर्णय पर प्रसन्नता जाहिर की है. वहीं ग्वालियर में खुशी का माहौल है.

यहां के संगीतज्ञों, संगीत विद्यार्थियों और राजा मानसिंह संगीत विवि के कुलपति से ईटीवी भारत संवाददाता अनिल गौर ने खास बातचीत की देखें ये रिपोर्ट...

राजा मानसिंह तोमर संगीत विश्वविद्यालय की कुलपति पंडित साहित्य कुमार का कहना है कि "इस अथक प्रयास के लिए हम बरसों से लगे थे. हमारा संस्कृति विभाग और मध्य प्रदेश शासन लगातार प्रयासरत था. ग्वालियर तानसेन और बैजू बावरा की नगरी है और संगीत यहां की रग-रग में बसा हुआ है. आज यूनेस्को ने सिटी ऑफ म्यूजिक से ग्वालियर को नवाजा है. यह उपाधि न केवल ग्वालियर वासियों के लिए और न केवल प्रदेशवासियों के लिए बल्कि देशवासियों के लिए गौरव की बात है."

ग्वालियर और देश का नाम होगा रोशन: कुलपति साहित्य कुमार ने कहा ग्वालियर को द सिटी ऑफ म्यूजिक की उपाधि मिली है. उससे जो हमारे युवा कलाकार और संगीतकार हैं. उनको लाभ मिलेगा. आप सब जानते हैं कि ध्रुपद का निर्माण यही से हुआ है. यहां के कलाकार और युवा संगीतकारों को एक एक्सचेंज के रूप में विदेश में जो सिटी ऑफ म्यूजिक है. उनमें जाने का मौका मिलेगा और उनकी प्रतिमा से रूबरू होने का मौका मिलेगा. यहां के कलाकार और संगीतकार विदेश में जाएंगे और हमारे ग्वालियर और इस देश का नाम रोशन करेंगे.

ग्वालियर को परंपरा को किसी ने नहीं छोड़ा: ग्वालियर में कई मशहूर हस्तियां संगीत के क्षेत्र में विश्व भर में नाम रोशन कर रही है. जिसमें उस्ताद अमजल अली खान और उनके पुत्र, एल के पंडित साहब, गाने में और शंकर पंडित जी की परंपरा में, जो ग्वालियर की परंपरा से जुड़े हैं, वह देश ही नहीं बल्कि पूरे विश्व में यहां का नाम रोशन कर रहे हैं. इसके साथ ही उनका कहना है कि ग्वालियर में संगीतकारों को राजाशय प्राप्त हुआ था. शासन की तरफ से उनको उचित अवसर नहीं दिए गए. इसलिए वह अलग-अलग राज्यों में ग्वालियर की विद्या और संगीत को देश में नहीं बल्कि पूरे विश्व भर में रोशन कर रहे हैं. उन्होंने ग्वालियर की परंपरा को नहीं छोड़ा है.

ध्रुपद बाध्यों की परंपरासे मिलना चाहिए प्रशिक्षण: राजा मानसिंह तोमर संगीत विश्वविद्यालय के कुलपति पंडित साहित्य कुमार ने ईटीवी भारत को बताया है कि यहां पर पढ़ने वाले संगीत छात्रों को भविष्य के लिए एक विकास का मार्ग खुल गया है. इस उपाधि को विश्वविद्यालय कुछ दिन बाद सेलिब्रेट करेगा. इसके अलावा उन्होंने बताया है कि ग्वालियर में संगीत को ध्रुपद बाध्यों की जो परंपरा है, उस परंपरा के बैनर तले युवा संगीतकारों को प्रशिक्षण दिया जाना चाहिए.

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संगीत की नगरी से जाना जाता है ग्वालियर: बता दें ग्वालियर संगीत की नगरी कही जाती है, क्योंकि "ग्वालियर घराना" भारतीय शास्त्री संगीत परंपरा में सबसे पुराना घराना माना जाता है. यह घराना ख्याल गायकी के लिए प्रसिद्ध है. इसका आरंभ 19वीं शताब्दी में हद्दू खान, हस्सू खान और नत्थू खान नाम के तीन भाइयों ने किया था. इसके अलावा ग्वालियर में ध्रुपद रचनाओं का निर्माण हुआ, तानसेन का जन्म इसी ग्वालियर से 45 किलोमीटर दूर ग्राम बेहट में हुआ था. वह अकबर के नवरत्नों में से एक थे. उन्हें उनकी ध्रुपद रचनाओं के लिए याद किया जाता है.

ग्वालियर गायकी खुले गले की गायकी है. शुर को स्वाभाविक ढंग से लगाया जाता है. जिसमें आठ अंगों का प्रयोग होता है. इसके अलावा बैजू बावरा ग्वालियर के तत्कालीन राजा मानसिंह की संगीत नर्सरी के आचार्य हुआ करते थे. बैजू बावरा ग्वालियर के राजा मानसिंह के दरबार के गायक और उनकी संगीत नर्सरी के आचार्य भी रहे हैं.

Last Updated : Nov 1, 2023, 11:01 PM IST

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