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इशरत जहां एनकाउंटर मामला : कहानी अभी बाकी है?

इशरत जहां एनकाउंटर मामले में शामिल तीन आरोपियों को 31 मार्च, 2021 को सीबीआई अदालत द्वारा बरी किए जाने के बाद सामाजिक कार्यकर्ताओं का कहना है कि इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी जानी चाहिए.

इशरत जहां
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Published : Apr 2, 2021, 5:20 PM IST

अहमदाबाद : इशरत जहां एनकाउंटर मामले में शामिल तीन आरोपियों को 31 मार्च, 2021 को सीबीआई अदालत ने बरी कर दिया. उस समय ऐसा लगा कि इशरत जहां मामले का अध्याय अब समाप्त हो गया है, लेकिन गुजरात में सामाजिक कार्यकर्ता चाहते हैं कि इशरत जहां के परिवार के सदस्यों द्वारा सीबीआई के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी जाए.

दरअसल 15 जून 2004 को मुंबई के पास मेम्ब्रा के रहने वाले 19 वर्षीय इशरत जहां और गुजरात पुलिस के जावेद शेख उर्फ ​​गणेश पिल्लई, अमजद अली राणा और जीशान जौहर का एनकाउंटर किया गया था.

पुलिस ने दावा किया था कि मुठभेड़ में मारे गए चारों लोग आतंकवादी थे और वे गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंदर मोदी की हत्या करने की योजना बना रहे थे.

सामाजिक कार्यकर्ताओं की प्रतिक्रिया

31 मार्च को अहमदाबाद, गुजरात की एक विशेष सीबीआई अदालत ने इशरत जहां फर्जी मुठभेड़ मामले में तीन आरोपियों के खिलाफ मामला खारिज कर दिया. इनमें आईपीएस अधिकारी जी एल सिंगल, सेवानिवृत्त पुलिस अधिकारी तरुण बरोट और अंजू चौधरी को डिस्चार्ज कर दिया गया.

इस संबंध में सामाजिक कार्यकर्ता नूरजहां दीवान ने कहा कि इशरत जहां मुठभेड़ के बारे में सभी को पता है कि यह एक फर्जी मुठभेड़ थी, लेकिन तीनों आरोपियों को सीबीआई अदालत ने बरी कर दिया.

यह सरासर अन्याय है. अब किसी को भी अदालत में न्याय नहीं मिल रहा है और इशरत जहां फर्जी एनकाउंटर का मामले में भी यह ही हुआ, फर्जी एनकाउंटर के बावजूद उसे न्याय नहीं मिला. इशरत जहां फर्जी एनकाउंटर मामले में जो फैसला आया है, वह बहुत गलत फैसला है.

इस फैसले पर सामाजिक कार्यकर्ता मुजाहिद नफीस ने कहा कि गुजरात सरकार ने मुसलमानों और बहुसंख्यकों को डराने के लिए मुठभेड़ को एक हथियार के रूप में इस्तेमाल किया. इशरत जहां केस में भी यह ही हुआ.

उन्होंने कहा कि मानव अधिकार आयोग को मामले में दखल देकर कार्रवाई करनी चाहिए. अब देखना यह है कि इशरत जहां के परिजन इस फैसले को चुनौती देते हैं या नहीं.

पढ़ें - इशरत जहां एनकाउंटर केस में CBI कोर्ट से तीन पुलिस अधिकारी बरी

वहीं इस संबंध में सामाजिक कार्यकर्ता देव देसाई का कहना है कि 2004 से 2006 तक जिस तरह से फर्जी मुठभेड़ों के मामले प्रकाश में आए और पुलिस का इस्तेमाल करते हुए फर्जी एनकाउंटर करवाए गए. उनमें से इशरत जहां फर्जी एनकाउंटर भी शामिल है.

गहन जांच के बाद एनकाउंटर को पहले फर्जी घोषित किया गया था और अब सीबीआई ने मामले में सभी कर्मचारियों को बरी कर दिया. जो दोषी है और जिन्होंने मासूम बच्ची की हत्या की उन्हे सीबीआई अदालत ने बरी कर दिया.

ऐसे में इस मामले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी जानी चाहिए और जो केस लड़ रहे हैं उन्हें आगे बढ़कर सुप्रीम कोर्ट जाना चाहिए और गुनहगार को भारतीय संविधान के अनुसार सजा मिलनी चाहिए.

अहमदाबाद : इशरत जहां एनकाउंटर मामले में शामिल तीन आरोपियों को 31 मार्च, 2021 को सीबीआई अदालत ने बरी कर दिया. उस समय ऐसा लगा कि इशरत जहां मामले का अध्याय अब समाप्त हो गया है, लेकिन गुजरात में सामाजिक कार्यकर्ता चाहते हैं कि इशरत जहां के परिवार के सदस्यों द्वारा सीबीआई के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी जाए.

दरअसल 15 जून 2004 को मुंबई के पास मेम्ब्रा के रहने वाले 19 वर्षीय इशरत जहां और गुजरात पुलिस के जावेद शेख उर्फ ​​गणेश पिल्लई, अमजद अली राणा और जीशान जौहर का एनकाउंटर किया गया था.

पुलिस ने दावा किया था कि मुठभेड़ में मारे गए चारों लोग आतंकवादी थे और वे गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंदर मोदी की हत्या करने की योजना बना रहे थे.

सामाजिक कार्यकर्ताओं की प्रतिक्रिया

31 मार्च को अहमदाबाद, गुजरात की एक विशेष सीबीआई अदालत ने इशरत जहां फर्जी मुठभेड़ मामले में तीन आरोपियों के खिलाफ मामला खारिज कर दिया. इनमें आईपीएस अधिकारी जी एल सिंगल, सेवानिवृत्त पुलिस अधिकारी तरुण बरोट और अंजू चौधरी को डिस्चार्ज कर दिया गया.

इस संबंध में सामाजिक कार्यकर्ता नूरजहां दीवान ने कहा कि इशरत जहां मुठभेड़ के बारे में सभी को पता है कि यह एक फर्जी मुठभेड़ थी, लेकिन तीनों आरोपियों को सीबीआई अदालत ने बरी कर दिया.

यह सरासर अन्याय है. अब किसी को भी अदालत में न्याय नहीं मिल रहा है और इशरत जहां फर्जी एनकाउंटर का मामले में भी यह ही हुआ, फर्जी एनकाउंटर के बावजूद उसे न्याय नहीं मिला. इशरत जहां फर्जी एनकाउंटर मामले में जो फैसला आया है, वह बहुत गलत फैसला है.

इस फैसले पर सामाजिक कार्यकर्ता मुजाहिद नफीस ने कहा कि गुजरात सरकार ने मुसलमानों और बहुसंख्यकों को डराने के लिए मुठभेड़ को एक हथियार के रूप में इस्तेमाल किया. इशरत जहां केस में भी यह ही हुआ.

उन्होंने कहा कि मानव अधिकार आयोग को मामले में दखल देकर कार्रवाई करनी चाहिए. अब देखना यह है कि इशरत जहां के परिजन इस फैसले को चुनौती देते हैं या नहीं.

पढ़ें - इशरत जहां एनकाउंटर केस में CBI कोर्ट से तीन पुलिस अधिकारी बरी

वहीं इस संबंध में सामाजिक कार्यकर्ता देव देसाई का कहना है कि 2004 से 2006 तक जिस तरह से फर्जी मुठभेड़ों के मामले प्रकाश में आए और पुलिस का इस्तेमाल करते हुए फर्जी एनकाउंटर करवाए गए. उनमें से इशरत जहां फर्जी एनकाउंटर भी शामिल है.

गहन जांच के बाद एनकाउंटर को पहले फर्जी घोषित किया गया था और अब सीबीआई ने मामले में सभी कर्मचारियों को बरी कर दिया. जो दोषी है और जिन्होंने मासूम बच्ची की हत्या की उन्हे सीबीआई अदालत ने बरी कर दिया.

ऐसे में इस मामले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी जानी चाहिए और जो केस लड़ रहे हैं उन्हें आगे बढ़कर सुप्रीम कोर्ट जाना चाहिए और गुनहगार को भारतीय संविधान के अनुसार सजा मिलनी चाहिए.

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