नई दिल्ली: संसद की एक समिति ने कहा है कि सरकार उन स्वास्थ्यकर्मियों के लिए उचित कानूनी सुरक्षा उपाय शुरू करने पर विचार कर सकती है जिन्हें कई बार मरीजों के रिश्तेदारों या तीमारदारों की हिंसा का सामना करना पड़ता है. भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के सदस्य बृजलाल की अध्यक्षता वाली गृह मामलों संबंधी संसद की स्थायी समिति ने प्रस्तावित तीन आपराधिक कानूनों की जांच की और विभिन्न चिकित्सा संघों द्वारा सौंपे गए एक ज्ञापन पर चर्चा की जिसमें स्वास्थ्य सेवा कर्मियों के खिलाफ हिंसा के कृत्य करने वालों को दंडित करने के लिए भारतीय न्याय संहिता (बीएनएस) के खंड 115 के तहत प्रावधान करने का अनुरोध किया गया है.
समिति ने अपनी रिपोर्ट में कहा कि समिति के समक्ष यह कहा गया कि किसी भी अन्य पेशे के विपरीत, स्वास्थ्य देखभाल पेशेवरों को रोगियों के रिश्तेदारों की ओर से 'हिंसक हमलों' का खतरा होता है, खासकर ऐसे मामलों में जहां रोगियों की इलाज के दौरान मृत्यु हो जाती है. चिकित्सा संघों ने समिति से कहा कि स्वास्थ्य कर्मियों के खिलाफ इस तरह के हिंसक हमले पूरे देश में प्रचलित हैं और स्वास्थ्य कर्मियों के हित में कुछ कानूनी सुरक्षा प्रदान करने की आवश्यकता है.
केंद्रीय गृह मंत्रालय ने अपने जवाब में कहा कि सामान्य दंड प्रावधान सभी पर लागू होते हैं और किसी भी वर्ग के व्यक्ति के लिए दंड कानूनों में कोई अंतर नहीं किया जाता है. गृह मंत्रालय ने जोर देकर कहा कि कानून की नजर में हर कोई समान है. मंत्रालय ने जोर देकर कहा कि राज्य अपने सभी नागरिकों के जीवन की रक्षा करने के लिए बाध्य है, जिसमें डॉक्टरों और पेशेवरों जैसे मीडियाकर्मी, वकील, बैंकर, चार्टर्ड एकाउंटेंट आदि शामिल हैं.
गृह मंत्रालय ने कहा कि डॉक्टरों और अन्य स्वास्थ्य देखभाल पेशेवरों के लिए एक विशेष प्रावधान करने से मीडियाकर्मियों, अधिवक्ताओं, बैंकरों, चार्टर्ड एकाउंटेंट जैसे अन्य पेशेवरों की ओर से भी इसी तरह की मांग बढ़ सकती है. गृह मंत्रालय ने समिति को यह भी सूचित किया कि स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय के पास हिंसक हमलों के खिलाफ स्वास्थ्य कर्मियों को सुरक्षा प्रदान करने के लिए 'मेडिकल प्रोफेशनल एक्ट' पेश करने का प्रस्ताव है, और गृह मंत्रालय उसी पर स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय से अपडेट लेगा.
समिति ने कहा, 'स्वास्थ्य कर्मियों की चिंताओं पर विचार करने के बाद समिति का मानना है कि सरकार स्वास्थ्यकर्मियों के लिए उचित कानूनी सुरक्षा उपाय शुरू करने पर विचार कर सकती है.' बीएनएस के खंड 115 में कहा गया है, 'जो कोई भी स्वेच्छा से चोट पहुंचाता है, यदि वह चोट पहुंचाने का इरादा रखता है या जानता है कि वह गंभीर चोट पहुंचा सकता है, और यदि उसके कारण होने वाली चोट गंभीर चोट है, तो उसे सात साल तक की अवधि के लिए कारावास से दंडित किया जाएगा और वह जुर्माने के लिए भी उत्तरदायी होगा.'
भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (बीएनएसए-2023) विधेयक को 11 अगस्त को लोकसभा में भारतीय न्याय संहिता (बीएनएस-2023) और भारतीय साक्ष्य अधिनियम (बीएसए-2023) विधेयकों के साथ पेश किया गया था. तीनों प्रस्तावित कानून क्रमशः दंड प्रक्रिया संहिता अधिनियम, 1898, भारतीय दंड संहिता, 1860 और भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 1872 को प्रतिस्थापित करेंगे.
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