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मनोनीत विधायकों की नियुक्तियों पर बोली शिवसेना, उपहास का विषय बन गए हैं राज्यपाल - मुख पत्र सामना

शिवसेना ने अपने मुख पत्र सामना में महाराष्ट्र के राज्यपाल भगतसिंह कोश्यारी पर निशाना साधते हुए कहा है कि राज्यपाल ने पद का इतना अवमूल्यन व पतन किया है कि अब वह उपहास का विषय बन गए हैं.

शिवासेना
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Published : Aug 18, 2021, 3:19 PM IST

Updated : Aug 18, 2021, 3:49 PM IST

मुंबई : शिवसेना ने अपने मुख पत्र सामना में महाराष्ट्र के राज्यपाल भगतसिंह कोश्यारी को उपहास विषय करार दिया है. शिव सेना ने कहा कि कोश्यारी ने पद का इतना अवमूल्यन व पतन किया है कि अब वह उपहास का विषय बन गए हैं.

शिवसेना ने सामना में लिखे एक लेख में कहा कि राजभवन की घटनाओं से अब जनता व सरकार को भी कुछ फर्क नहीं पड़ता है. राज्यपाल के अधोपतन के लिए जितना वे खुद जिम्मेदार हैं, उससे ज्यादा राज्य का उनका पितृपक्ष भाजपा जिम्मेदार है.

शिवसेना ने आरोप लगाया कि उन्होंने राज्य में बारह मनोनीत विधायकों की नियुक्तियां सिर्फ राजनैतिक कारणों से रोककर रखी हैं. मुंबई हाईकोर्ट ने भी राज्यपाल के सौम्य, सभ्य भाषा की टोपी उड़ाते हुए पूछा कि निर्णय के लिए आठ महीने लगाना थोड़ा ज्यादा ही हो गया. निर्णय लेना तो राज्यपाल के लिए अनिवार्य है ही! फिर भी संविधान के किसी भी बंधन को मानने के लिए राज्यपाल तैयार नहीं हैं. जब तक महाराष्ट्र में उनकी मनपसंद सरकार शपथ नहीं लेती तब तक बारह विधायकों की नियुक्ति भूल जाएं, ऐसा राज्यपाल कहते हैं.

लेख में कहा गया है कि स्वतंत्रता दिवस पर राज्यपाल पुणे में एक सरकारी समारोह में ध्वजारोहण के लिए गए थे. वहां कांग्रेस के पुराने लोकप्रिय नेता शरद रणपिसे ने राज्यपाल से पूछा, ‘उन बारह विधायकों की नियुक्ति कब करोगे, सिर्फ इतना बताओ.’ इस पर राज्यपाल ने शांत मुद्रा में कहा, ‘राज्यपाल द्वारा मनोनीत बारह विधायकों के चयन के लिए राज्य सरकार निवेदन नहीं कर रही है, फिर आप क्यों जिद कर रहे हो?’ राज्यपाल ने ऐसा उत्तर देकर एक बार फिर अपने पैर अपनी धोती में फंसा लिए, क्योंकि शरद पवार ने राज्यपाल को उनकी नर्म और विनोदी शैली में कहा है, ‘बारह विधायकों की नियुक्ति के संदर्भ में निर्णय जल्द लें, ऐसा पत्र मुख्यमंत्री ने भेजा है. कदाचित बढ़ती उम्र के कारण उन्हें याद नहीं रहा होगा.'

शिवसेना ने कहा कि पवार की बातें उचित ही हैं. विधायकों की नियुक्ति के संदर्भ में सरकार को निवेदन करना चाहिए. मतलब निश्चित तौर पर क्या करना चाहिए? राज्यपाल महोदय ने पद की गरिमा के अनुरूप यह बयान बिल्कुल भी नहीं दिया है. राज्यपाल से मांग करनी है मतलब निश्चित तौर पर क्या किया जाए? उनके राजभवन में एकत्रित होकर तालियां, थालियां, घंटा बजाकर राज्यपाल का ध्यान इस प्रश्न की ओर आकर्षित किया जाए या और कुछ किया जाए?.मंत्रिमंडल द्वारा भेजे गए प्रस्ताव पर दस्तखत करना राज्यपाल का संवैधानिक कर्तव्य है. राज्य की सरकार बहुमतवाली व जनता द्वारा नियुक्त की गई है.

शिवसेना ने चुटकी लेते हुए कहा कि राज्यपाल केंद्र के पालिटिकल एजेंट मतलब गृह विभाग के स्वामी हैं. राज्यपाल के निर्णय का पालना निश्चित तौर पर कौन से महीने में हिलनेवाला है? यह राजभवन की दाई को एक बार स्पष्ट करना चाहिए.

पढ़ेंं - मनी लॉन्ड्रिंग मामले में ED का देशमुख को समन

राज्यपाल ने संविधान का दायरा तोड़ दिया, तो उनकी इज्जत नहीं बचेगी और उनकी इज्जत से फिलहाल उनके ही लोग खिलवाड़ कर रहे हैं. बारह विधायकों की नियुक्ति रोक कर भाजपा और राज्यपाल अपना ही उपहास करवा रहे हैं.यह उनकी बेईमानीभरी चाल है और विफलता का झटका है.

जनता के मन से उनका स्थान गिर गया है, लेकिन हाईकोर्ट व शरद पवार जैसे बड़े नेता भी सरेआम टपली और थप्पड़ मारने लगे हैं.भगतसिंह कोश्यारी के प्रति महाराष्ट्र के मन में व्यक्तिगत कटुता होने की कोई वजह नहीं है. परंतु राज्यपाल की हैसियत से उनका बर्ताव असंवैधानिक व राजनीतिक रूप से पक्षपाती है.

मुंबई : शिवसेना ने अपने मुख पत्र सामना में महाराष्ट्र के राज्यपाल भगतसिंह कोश्यारी को उपहास विषय करार दिया है. शिव सेना ने कहा कि कोश्यारी ने पद का इतना अवमूल्यन व पतन किया है कि अब वह उपहास का विषय बन गए हैं.

शिवसेना ने सामना में लिखे एक लेख में कहा कि राजभवन की घटनाओं से अब जनता व सरकार को भी कुछ फर्क नहीं पड़ता है. राज्यपाल के अधोपतन के लिए जितना वे खुद जिम्मेदार हैं, उससे ज्यादा राज्य का उनका पितृपक्ष भाजपा जिम्मेदार है.

शिवसेना ने आरोप लगाया कि उन्होंने राज्य में बारह मनोनीत विधायकों की नियुक्तियां सिर्फ राजनैतिक कारणों से रोककर रखी हैं. मुंबई हाईकोर्ट ने भी राज्यपाल के सौम्य, सभ्य भाषा की टोपी उड़ाते हुए पूछा कि निर्णय के लिए आठ महीने लगाना थोड़ा ज्यादा ही हो गया. निर्णय लेना तो राज्यपाल के लिए अनिवार्य है ही! फिर भी संविधान के किसी भी बंधन को मानने के लिए राज्यपाल तैयार नहीं हैं. जब तक महाराष्ट्र में उनकी मनपसंद सरकार शपथ नहीं लेती तब तक बारह विधायकों की नियुक्ति भूल जाएं, ऐसा राज्यपाल कहते हैं.

लेख में कहा गया है कि स्वतंत्रता दिवस पर राज्यपाल पुणे में एक सरकारी समारोह में ध्वजारोहण के लिए गए थे. वहां कांग्रेस के पुराने लोकप्रिय नेता शरद रणपिसे ने राज्यपाल से पूछा, ‘उन बारह विधायकों की नियुक्ति कब करोगे, सिर्फ इतना बताओ.’ इस पर राज्यपाल ने शांत मुद्रा में कहा, ‘राज्यपाल द्वारा मनोनीत बारह विधायकों के चयन के लिए राज्य सरकार निवेदन नहीं कर रही है, फिर आप क्यों जिद कर रहे हो?’ राज्यपाल ने ऐसा उत्तर देकर एक बार फिर अपने पैर अपनी धोती में फंसा लिए, क्योंकि शरद पवार ने राज्यपाल को उनकी नर्म और विनोदी शैली में कहा है, ‘बारह विधायकों की नियुक्ति के संदर्भ में निर्णय जल्द लें, ऐसा पत्र मुख्यमंत्री ने भेजा है. कदाचित बढ़ती उम्र के कारण उन्हें याद नहीं रहा होगा.'

शिवसेना ने कहा कि पवार की बातें उचित ही हैं. विधायकों की नियुक्ति के संदर्भ में सरकार को निवेदन करना चाहिए. मतलब निश्चित तौर पर क्या करना चाहिए? राज्यपाल महोदय ने पद की गरिमा के अनुरूप यह बयान बिल्कुल भी नहीं दिया है. राज्यपाल से मांग करनी है मतलब निश्चित तौर पर क्या किया जाए? उनके राजभवन में एकत्रित होकर तालियां, थालियां, घंटा बजाकर राज्यपाल का ध्यान इस प्रश्न की ओर आकर्षित किया जाए या और कुछ किया जाए?.मंत्रिमंडल द्वारा भेजे गए प्रस्ताव पर दस्तखत करना राज्यपाल का संवैधानिक कर्तव्य है. राज्य की सरकार बहुमतवाली व जनता द्वारा नियुक्त की गई है.

शिवसेना ने चुटकी लेते हुए कहा कि राज्यपाल केंद्र के पालिटिकल एजेंट मतलब गृह विभाग के स्वामी हैं. राज्यपाल के निर्णय का पालना निश्चित तौर पर कौन से महीने में हिलनेवाला है? यह राजभवन की दाई को एक बार स्पष्ट करना चाहिए.

पढ़ेंं - मनी लॉन्ड्रिंग मामले में ED का देशमुख को समन

राज्यपाल ने संविधान का दायरा तोड़ दिया, तो उनकी इज्जत नहीं बचेगी और उनकी इज्जत से फिलहाल उनके ही लोग खिलवाड़ कर रहे हैं. बारह विधायकों की नियुक्ति रोक कर भाजपा और राज्यपाल अपना ही उपहास करवा रहे हैं.यह उनकी बेईमानीभरी चाल है और विफलता का झटका है.

जनता के मन से उनका स्थान गिर गया है, लेकिन हाईकोर्ट व शरद पवार जैसे बड़े नेता भी सरेआम टपली और थप्पड़ मारने लगे हैं.भगतसिंह कोश्यारी के प्रति महाराष्ट्र के मन में व्यक्तिगत कटुता होने की कोई वजह नहीं है. परंतु राज्यपाल की हैसियत से उनका बर्ताव असंवैधानिक व राजनीतिक रूप से पक्षपाती है.

Last Updated : Aug 18, 2021, 3:49 PM IST
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