नई दिल्ली: सरकार ने शनिवार को कहा कि उसने फसल अवशेष प्रबंधन दिशा निर्देशों को संशोधित किया है. इससे पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश और दिल्ली में पैदा होने वाले धान भूसे का किसी और स्थान पर ले जाकर (एक्स-सीटू) प्रबंधन संभव हो सकेगा.
कृषि मंत्रालय ने एक बयान में कहा कि संशोधित दिशानिर्देशों के अनुसार, धान भूसे की आपूर्ति श्रृंखला के लिए तकनीकी-वाणिज्यिक प्रायोगिक परियोजनाएं - लाभार्थी किसानों और धान भूसे का उपयोग करने वाले उद्योगों के बीच द्विपक्षीय समझौते के तहत स्थापित की जाएंगी. इसमें कहा गया कि इन परियोजनाओं में लाभार्थी या एग्रीगेटर के रूप में किसान, ग्रामीण उद्यमी, किसानों की सहकारी समितियां, किसान उत्पादक संगठन (एफपीओ) और पंचायतें शामिल हो सकते हैं.
मंत्रालय के अनुसार, यह कदम ‘इन-सीटू’ प्रबंधन (उसी स्थान या खेत में प्रबंधन) के साथ ही एक्स-सीटू प्रबंधन का विकल्प भी उपलब्ध कराएगा. इस व्यवस्था के तहत अगले तीन साल के दौरान 15 लाख टन अधिशेष धान भूसे को एकत्र किए जाने की उम्मीद है, जिसे यह व्यवस्था नहीं होने की स्थिति में खेतों में जला दिया जाता. पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश में 4,500 टन क्षमता के लगभग 333 बायोमास संग्रह डिपो बनाए जाएंगे. इससे पराली जलाने से होने वाला वायु प्रदूषण काफी कम हो जाएगा और लगभग नौ लाख मानव दिवस के बराबर रोजगार के अवसर भी पैदा होंगे.
संशोधित दिशानिर्देशों के अनुसार सरकार, मशीनरी और उपकरणों की पूंजीगत लागत पर वित्तीय सहायता प्रदान करेगी.
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