नई दिल्ली : कृषि कानूनों पर भले ही सरकार आत्मविश्वास से लबरेज है और वापस नहीं लेने पर अड़ी है, लेकिन एनडीए में शामिल दलों का दबाव बढ़ता जा रहा है.
कृषि कानूनों पर भाजपा की सबसे पुरानी सहयोगी शिरोमणि अकाली दल ने केंद्र सरकार और एनडीए से जैसे ही अपने आप को अलग किया सरकार की चिंता बढ़ गई थी कि बाकी पार्टियां भी दबाव न बनाने लगें. धीरे-धीरे वास्तविकता भी यही नजर आ रही है. ऐसे में पार्टी यह नहीं चाहती कि जब सरकार पर विपक्षी पार्टियों का चौतरफा हमला हो रहा है, एनडीए के अंदर भी किसानों के इस बिल पर कोई फूट नजर आए.
सूत्रों की मानें तो जल्दी ही भाजपा इस मुद्दे पर अलग-अलग राज्यों में अपने जनप्रतिनिधियों के साथ वरिष्ठ नेताओं की बैठक कर सकती है. सीएए को लेकर जिस तरह भाजपा ने देश के अलग-अलग हिस्सों में जन जागरण अभियान के तहत अपने केंद्रीय मंत्रियों को भेजा था, उसी तरह कृषि बिल को लेकर भी पार्टी कुछ ऐसा ही कार्यक्रम तैयार कर रही है.
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सवाल आंकड़ों का नहीं विश्वास का है
अपनी सबसे पुरानी सहयोगी शिवसेना और अकाली दल के बाद भाजपा किसी हाल में यह नहीं चाहती कि कोई भी गठबंधन की पार्टी सरकार से या एनडीए गठबंधन से अलग हो. क्योंकि, सवाल यहां आंकड़ों का नहीं, बल्कि विश्वास का है.
सोमवार को आरएलपी के अध्यक्ष हनुमान बेनीवाल ने नए कानून को वापस नहीं लेने पर एनडीए से रिश्ता तोड़ने तक की चेतावनी दी थी. मंगलवार को जेजेपी ने किसानों की मांग का समर्थन करते हुए एमएसपी को जारी रखने का सरकार से आश्वासन मांगा. हरियाणा में कहीं न कहीं भाजपा की खट्टर सरकार, अजय चौटाला की पार्टी जेजेपी के भरोसे ही गाड़ी खींच रही है. अगर जेजेपी हाथ खींचती है, तो हरियाणा की सरकार का चलना मुश्किल हो सकता है.
यूपी के किसान हो रहे लामबंद
धीरे-धीरे किसान आंदोलन का दायरा बढ़ता जा रहा है. हरियाणा और पंजाब के किसानों के साथ-साथ बाकी राज्यों के किसान भी जुटने लगे हैं. बुधवार को देखा गया उत्तर प्रदेश के किसान संगठनों ने भी सरकार के खिलाफ धीरे-धीरे लामबंद होकर किसानों के समर्थन में जुटना शुरू कर दिया है.
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वोट बैंक में किसानों की भागीदारी ज्यादा
दरअसल, वास्तविकता यह है कि चाहे अकाली दल हो या जेजेपी या आरएलपी इन तमाम पार्टियों के वोट बैंक की बड़ी भागीदारी किसानों की है. मतदाताओं में ज्यादातर संख्या जाट और सिख मतदाताओं की है. इसलिए यह पार्टियां अपने वोट बैंक को देखते हुए सरकार से दो-दो हाथ करने तक को तैयार हो गई हैं. अपनी पार्टी के भविष्य को देखते हुए गठबंधन से अलग होने तक की चेतावनी दे रही हैं.
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बैठक में सांसदों ने उठाया था मुद्दा
पार्टी के विश्वस्त सूत्रों की मानें, तो पिछले मानसून सत्र के बाद जब सभी सांसदों की बैठक बुलाई गई थी, तो दो दर्जनों सांसदों ने किसानों की सुगबुगाहट के बारे में जानकारी दी थी. ये वह नेता थे जिनके निर्वाचन क्षेत्र से काफी संख्या में किसान आते हैं. साथ ही पार्टी से कई सवाल भी किए थे. वरिष्ठ नेताओं ने उन्हें समझाया था कि पार्टी के सांसदों, विधायकों और चुने हुए प्रतिनिधियों की यह जिम्मेदारी है कि वह उन क्षेत्रों में जाएं और किसानों को कृषि बिल से संबंधित खूबियां गिनाएं. बावजूद इसके पार्टी के नेता बहुत ज्यादा संतुष्ट नजर नहीं आ रहे थे.