शिमला: हिमालयी रीजन में क्लाइमेट चेंज से कई खतरे पैदा हो गए हैं. तापमान बढ़ रहा है और इसी के साथ ग्लेशियर पिघलने की रफ्तार भी बढ़ रही है. सभी जानते हैं कि ग्लेशियर पिघलने से पानी झील का आकार ले लेता है. यदि ये झीलें पानी से भर जाएं तो इनके फटने की आशंका रहती है. ऐसी स्थिति में प्रलयंकारी बाढ़ से भयावह आपदा आती है. वर्ष 2014 में चोराबरी ग्लेशियर के आगे बनी छोटी सी झील के फटने से केदारनाथ जैसा हादसा हो गया था. उस हादसे के जख्म अभी भी हरे हैं. वहीं, हिमाचल प्रदेश ने भी पारछू की बाढ़ देखी है. उस बाढ़ में 800 करोड़ रुपए का नुकसान हुआ था.
वर्ष 2005 में पारछू झील टूटने से हिमाचल में भारी तबाही हुई थी. सतलुज नदी में बाढ़ आ गई थी और रामपुर से लेकर कांगड़ा तक तबाही हुई थी. ऐसे ही संकेत अब भी मिल रहे हैं. हिमकास्ट यानी हिमाचल प्रदेश विज्ञान, पर्यावरण व प्रौद्योगिकी परिषद के तहत क्लाइमेट चेंज सेंटर शिमला की रिपोर्ट बता रही है कि अकेले सतलुज बेसिन पर ग्लेशियर पिघलने से झीलों की संख्या 995 तक पहुंच गई है. चार साल पहले इन झीलों की संख्या 562 थी. इससे पता चलता है कि ग्लेशियर पिघलने से झीलों की संख्या निरंतर बढ़ रही है.
सर्वे रिपोर्ट में सतलुज बेसिन के अलावा स्पीति बेसिन को भी शामिल किया गया. सतलुज बेसिन में ऊपरी व निचले बेसिन को भी लिया गया. जैसा कि कायदा है, हिमकास्ट ने अपनी रिपोर्ट सरकार को सौंप दी है. साथ ही सरकार से इस रिपोर्ट के आधार पर तैयारियों के लिए कहा है. उल्लेखनीय है कि नियमित अंतराल पर बेसिन में बन रही झीलों की रिपोर्ट तैयार की जाती है. इसमें तिब्बत इलाके में बनने वाली झीलों की रिपोर्ट भी शामिल रहती है. भारत चीन के इलाकों में होने वाली क्लाइमेट चेंज की डवलपमेंट पर भी नजर रखता है.
चार साल पहले ये थी स्थिति: हिमाचल प्रदेश राज्य विज्ञान, पर्यावरण एवं प्रौद्योगिकी परिषद के क्लाइमेट चेंज सेंटर की यदि चार साल पहले की रिपोर्ट को देखा जाए तो उस समय यानी वर्ष 2019 में सतलुज बेसिन में 562 झीलों की मौजूदगी पाई गई थी. इन 562 झीलों में से लगभग 81 प्रतिशत यानी 458 झीलें 5 हेक्टेयर से कम क्षेत्रफल की थीं. इसके अलावा 9 प्रतिशत यानी 53 झीलें 5 से 10 हेक्टेयर क्षेत्रफल की तथा 9 प्रतिशत यानी 51 झीलें 10 हेक्टेयर से अधिक क्षेत्रफल की थीं.
अब ताजा रिपोर्ट के अनुसार अब सतलुज बेसिन पर 995 के करीब झीलें हो गई हैं. वहीं, 2019 में चिनाब घाटी जिसमें चंद्रा, भागा और मियार सब-बेसिन हैं, में झीलों की संख्या 242 थी. इसमें से चंद्रा में 52, भागा में 84 और मियार सब बेसिन में 139 झीलें थीं. इन क्षेत्रों में भी अब झीलों की संख्या बढ़ गई है. ब्यास घाटी में ऊपरी ब्यास, जीवा, पार्वती घाटियां आती हैं. यहां 2019 में 93 झीलें थीं. ऊपरी ब्यास में 12, जीवा में 41 और पार्वती सब बेसिन में 37 झीलें थीं. आलम ये था कि तब यानी वर्ष 2019 में झीलों की संख्या वर्ष 2018 के मुकाबले 43 फीसदी बढ़ गई थी.
इसलिए खतरा बड़ा है: हिमालय रीजन पर्यावरण के लिहाज से संवेदनशील है. सतलुज बेसिन पर दस हैक्टेयर से अधिक क्षेत्रफल वाली झीलों की संख्या का आंकड़ा भयावह है. इन झीलों की संख्या 62 हो गई है. पांच साल पहले इनकी संख्या 49 थी. हिमकास्ट की सीनियर साइंटिफिक ऑफिसर डॉ. एसएस रंधावा के अनुसार सतलुज बेसिन पर झीलों की संख्या बढक़र 995 हो गई है. ये चिंताजनक संकेत हैं. हिमालीय क्षेत्रों में तापमान बढऩे से ग्लेशियरों के पिघलने की गति बढ़ जाती है.
हालांकि वर्ष 2019 में अच्छी बर्फबारी होने से हिमालयी क्षेत्रों में स्नो कवर भी बढ़ा है. तब सतलुज, चिनाब, ब्यास व रावी नदी बेसिन पर स्नो कवर एरिया 26 फीसदी से अधिक बढ़ा था. स्नो कवर बढऩे से ग्लेशियर्स को सांस मिलती है. हिमाचल की चार प्रमुख नदियों चिनाब, ब्यास, सतलुज व रावी बेसिन के अलावा भागा, चंद्रा, मियाड़, जीवा, स्पीति, पिन, ब्यास, पार्वती, रावी, बास्पा नदियों में स्नो कवर को लेकर सर्वे किए जाते हैं.
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