नई दिल्ली: उच्चतम न्यायालय एल्गार परिषद-माओवादी संबंध मामले में कार्यकर्ता गौतम नवलखा की ओर से दायर एक नई याचिका को शुक्रवार को सुनवाई के लिए सूचीबद्ध करने को गुरुवार को तैयार हो गया. शीर्ष अदालत के निर्देश के बावजूद नवलखा को नजरबंदी के लिए जेल से घर में स्थानांतरित नहीं किया गया है. प्रधान न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ ने नवलखा की तरफ से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता नित्या रामकृष्णन की इस दलील का संज्ञान लिया कि उनके मुवक्किल को सेहत बिगड़ने के कारण जेल से घर में नजरबंदी के लिए भेजने के शीर्ष अदालत के 10 नवंबर के निर्देश पर अभी तक अमल नहीं किया गया है.
उच्चतम न्यायालय ने 70 वर्षीय नवलखा की बिगड़ती सेहत को देखते हुए उन्हें नवी मुंबई की तलोजा जेल से घर में नजरबंदी के लिए स्थानांतरित करने का निर्देश दिया था. राष्ट्रीय अन्वेषण अभिकरण (एनआईए) की तरफ से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने न्यायालय से कहा कि आरोपी ने अपने घर का पता देने के बजाय कम्युनिस्ट पार्टी के पुस्तकालय-सह-कार्यालय का पता दिया है और इस संबंध में गुरुवार को एक अलग याचिका भी दाखिल की जाएगी. इस पर रामकृष्णन ने कहा कि कम्युनिस्ट पार्टी किसी भी मामले में एक प्रतिबंधित संगठन नहीं है.
मेहता ने कहा कि जांच एजेंसी एक नई याचिका दाखिल करने की प्रक्रिया में है और दोनों याचिकाओं को एक साथ सूचीबद्ध किया जा सकता है. इसके बाद प्रधान न्यायाधीश ने निर्देश दिया कि नवलखा की याचिका को शुक्रवार को सूचीबद्ध किया जाए, जबकि जांच एजेंसी पीठ के समक्ष अपनी अर्जी पेश कर सकती है. मेहता ने मामले के कुछ पहलुओं का जिक्र करते हुए कहा कि दोनों याचिकाओं पर शुक्रवार को एक साथ सुनवाई किए जाने की जरूरत है. पीठ ने उनका आग्रह स्वीकार कर लिया. शीर्ष अदालत ने 15 नवंबर को घर में नजरबंदी की सुविधा के लिए 'सॉल्वेंसी सर्टिफिकेट' की आवश्यकता को समाप्त करके नवलखा को नवी मुंबई की तलोजा जेल से उनके घर भेजने की बाधा को दूर कर दिया था.
इससे पहले, उच्चतम न्यायालय ने नवलखा की बिगड़ती सेहत को देखते हुए दस नवंबर को उन्हें घर में नजरबंद करने की अनुमति दे दी थी. शीर्ष अदालत ने कहा था कि घर में नजरबंदी की सुविधा पाने के लिए नवलखा को 14 नवंबर तक दो लाख रुपये की जमानत पेश करनी होगी. नवलखा को घर में नजरबंद करने का आदेश देते हुए न्यायमूर्ति के एम जोसेफ और न्यायमूर्ति ऋषिकेश रॉय की पीठ ने कहा था कि वह (नवलखा) 14 अप्रैल 2020 से हिरासत में हैं और प्रथम दृष्टया उनकी चिकित्सा रिपोर्ट को खारिज करने का कोई कारण नहीं नजर आता है.
पढ़ें: गौतम नवलखा, जांच एजेंसी की याचिकाओं पर SC में सुनवाई 18 नवंबर को
पीठ ने कहा था कि इस मामले को छोड़कर नवलखा की कोई आपराधिक पृष्ठभूमि नहीं है और यहां तक कि भारत सरकार ने भी माओवादियों से बातचीत करने के लिए उन्हें वार्ताकार के रूप में नियुक्त किया था. कई शर्तें लागू करते हुए पीठ ने स्पष्ट किया था कि नजरबंदी के दौरान नवलखा को कंप्यूटर और इंटरनेट का इस्तेमाल करने की इजाजत नहीं होगी. हालांकि, शीर्ष अदालत ने कहा था कि नवलखा दिन में एक बार दस मिनट के लिए पुलिस की मौजूदगी में ड्यूटी पर तैनात पुलिसकर्मी द्वारा दिए गए बिना इंटरनेट सेवा वाले फोन का इस्तेमाल कर सकेंगे.
पीठ ने यह भी कहा था कि नजरबंदी के दौरान नवलखा को मुंबई छोड़ने की इजाजत नहीं दी जाएगी और वह किसी भी तरह से गवाहों को प्रभावित करने के प्रयास नहीं करेंगे. उसने कहा था कि नजरबंदी के दौरान नवलखा को अखबार और टेलीविजन उपलब्ध कराने की अनुमति होगी, लेकिन ये इंटरनेट सुविधा से लैस नहीं होना चाहिए. उच्चतम न्यायालय ने महाराष्ट्र पुलिस को नवलखा के घर की तलाशी लेने और निरीक्षण करने की अनुमति दे दी थी. उसने कहा था कि नवलखा का घर निगरानी में रहेगा.
पढ़ें: सुप्रीम कोर्ट ने नजरबंदी के लिए तलोजा जेल से गौतम नवलखा की रिहाई की अड़चन हटाई
नवलखा ने बंबई उच्च न्यायालय के 26 अप्रैल 2022 के फैसले के खिलाफ शीर्ष अदालत का रुख किया था. उच्च न्यायालय ने मुंबई के पास तलोजा जेल में पर्याप्त चिकित्सकीय एवं अन्य बुनियादी सुविधाएं न होने की आशंका के मद्देनजर नवलखा द्वारा उन्हें घर में नजरबंद करने की मांग को लेकर दाखिल अर्जी खारिज कर दी थी. यह मामला 31 दिसंबर 2017 को पुणे में आयोजित एल्गार परिषद सम्मेलन में दिए गए कथित भड़काऊ भाषणों से संबंधित है, जिसके बारे में पुलिस का दावा है कि उसके चलते अगले दिन शहर के बाहरी इलाके में स्थित कोरेगांव-भीमा युद्ध स्मारक के पास हिंसा भड़क गई थी.
पढ़ें: गौतम नवलखा को मिली सुप्रीम कोर्ट से राहत, रहेंगे नजरबंद