अंबिकापुर : हम बात कर रहे हैं अम्बिकापुर की स्वच्छता दीदीयों की जो ना सिर्फ देश के सामने एक उदाहरण बनीं बल्कि, अपना और अपने बच्चों का भविष्य सुधार रहीं हैं. ये दीदीयां लोगों के घर घर जाकर कचरा कलेक्ट करती हैं. उस कचरे को छांटती हैं .फिर उस कचरे का रियूज किया जाता है. जिससे इन्हें आमदनी होती है. कचरे से कमाई का यह मॉडल ऐसा सफल हुआ कि आज पूरा देश इस मॉडल को अपना रहा है.
कब से शुरु हुआ था काम : साल 2014 में तत्कालीन कलेक्टर ऋतु सेन ने एक परिकल्पना की . स्वच्छ भारत मिशन के तहत होने वाले काम का सम्पूर्ण जिम्मा महिला समूहों को दे दिया. 2015 में यह काम शुरू हुआ. महिला समूह खुद से पैसा कमाकर आपस में वितरित करती हैं. धीरे धीरे कारवां बढ़ता गया. 2015 में समूह की हर महिला को 2 हजार रुपये प्रतिमाह मानदेय मिलता था. हर वर्ष यह मानदेय 1 हजार बढ़ता गया. आज इन महिलाओं का मानदेय 9 हजार प्रतिमाह हो चुका है. यहां काम कर रही महिलाओं में सबकी अपनी-अपनी कहानी है. हमने 5 महिलाओं से बात की है.
पति ने साथ छोड़ा लेकिन हौंसला नहीं टूटा : स्वच्छता दीदी सुनीता बताती हैं कि "2010 में शादी हुई तो अम्बिकापुर आई. लेकिन 2014 में पति से अलग हो गई. इसके बाद सिलाई का काम करती थी. लेकिन उसमे कमाई फिक्स नहीं थी. तो मैं काम की तलाश में थी. तब मुझे यह काम मिला, शुरु में 2 हजार मिलता था. हम लोगों को बताया गया कि ये आपका ही काम है. इसमे जितना आप करेंगी आपका ही फायदा होगा. मैं अपने बच्चे के साथ यहां रहती थी. क्योंकि दूसरे जगह बच्चे को छोड़कर काम करना पड़ता. जब यहां आई तो बच्चा 2 साल का था. आज वो नौंवी कक्षा में पढ़ रहा है. उसका पालन पोषण अच्छे से कर पा रही हूं, जीवन में बहुत बदलाव है, किसी से पैसे उधार नहीं लेने पड़ते"
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पति की मौत के बाद बना सबसे बड़ा सहारा : देवी गंज सेंटर की स्वच्छता दीदी बबीता लकड़ा शुरुआत से ही इस काम से जुड़ी हैं. बबीता ने बताया कि '' दो बच्चे हैं पति नही हैं, एक्सीडेंट में डेथ हो गई. उसके बाद से इसी काम से घर चल रहा है. पहले लगता था कि कैसे घर चलेगा, लेकिन अब 9 हजार मिल रहा है तो बढ़िया हो गया है.''
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वेस्ट कलेक्शन से की एमएससी की पढ़ाई : ठनगन पारा एसएलआरएम सेंटर की दीदी मंजूषा कुजूर ने बताया कि" मैं पहले 2021 से इस काम से जुड़ी. पहले पढ़ाई के लिए घर से पैसे लेने पड़ते थे. मां नही हैं, पापा से ही पैसा मांगते थे. लेकिन अब इसमे काम करने से मैं अपने सभी भाई बहनों को पढ़ा रही हूं. मैं एमएससी पढ़ने के बाद यह सब काम कर रही हूं. हम लोग 4 भाई बहन हैं"
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बच्चों के साथ खुद भी कर रही पढ़ाई : केना बांध सेंटर की दीदी रेशमा सोनी ने बताया कि " पति की मौत एक्सीडेंट में हो गई. इसके बाद परिवार वालों ने साथ नहीं दिया. छोटे बच्चे को लेकर मैं भटक रही थी. तभी समूह से जुड़ने का अवसर मिला. इसके जरिये अपना और बच्चे का पालन पोषण बेहतर ढंग से किया .एक बेटा भी पढ़ रहा है और मैं भी पढ़ रही हूं"
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बुजुर्ग महिला के जीने का सहारा बना प्रोजेक्ट : केना बांध में ही सोनमती बड़ा एक बुजुर्ग महिला हैं. उनका परिवार तो है. लेकिन वो साथ नहीं रहते हैं. इसलिए सोनमती खुद कमाती हैं और अलग रहकर अकेले ही अपना जीवन यापन करती हैं.
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नोडल अधिकारी ऋतेश सैनी का कहना है कि" शुरू से ही इस बात पर ध्यान दिया गया है कि, सेल्फ सेस्टनेबल मॉडल बने, महिलाएं आत्मनिर्भर बने, शासन पर इसका बोझ न पड़े. इसके लिये सेग्रीगेशन पर विशेष ध्यान दिया गया. क्योंकि इससे अलग अलग कचरे रेट अच्छा मिलता है. नागरिको का अच्छा सहयोग मिल रहा है. जिससे 16 -17 लाख महीने में यूजर चार्ज आता है. 11 से 12 लाख का कचरा महीने में बेचकर कमा रहे हैं. आगे भी नवाचार करते रहेंगे जिससे इनकी आय और बढ़ सके"
साढ़े तीन करोड़ का टर्न ओवर : अम्बिकपुर नगर निगम क्षेत्र में 48 वार्ड हैं. इन वार्डों का कचरा कलेक्शन का जिम्मा स्वयं सहायता समूह की दीदीयों के पास हैं. शहर में 470 स्वच्छता दीदी हैं. 32 समूह और इन समूहों का एक सिटी लेबल फेडरेशन बनाया गया है. इस फेडरेशन के अकाउंट में हर महीने 11 से 12 लाख यूजर चार्ज से 13 से 14 लाख कचरे की बिक्री से आता है. साल भर में करीब 3.5 करोड़ रुपये का टर्न ओवर है.