वाराणसी: काशी में गणेश चतुर्थी (Ganesh Chaturthi in Kashi) के पर्व की तैयारियां तेज हो गई हैं. गणेश चतुर्थी का पर्व आमतौर पर महाराष्ट्र के लिए जाना जाता है, लेकिन काशी में रहने वाले मराठी समाज के लोग इस गणेश उत्सव (Ganesh Utsav in Varanasi) को बड़े ही धूमधाम से मनाते हैं. काशी के ब्रह्माघाट, बीवीहटिया, पंचगंगा घाट समेत कई ऐसे इलाके हैं, जहां पर आज भी बड़ी आबादी मराठों की रहती है.
मराठी परिवार में अपनी संस्कृति, सभ्यता के अनुरूप महाराष्ट्र के कल्चर केंद्रों में गणेश चतुर्थी का पर्व (festival of ganesh chaturthi) मनाए जाने का विधान है और काशी के इन इलाकों में एक ऐसी गणेश पूजा कमेटी भी है, जो करीब 125 सालों से लगातार गणेश उत्सव का पर्व मना रही है. महाराष्ट्र के पुणे में जब बाल गंगाधर तिलक ने पहले गणेश उत्सव की शुरुआत की थी, उसके बाद काशी की इस पूजा समिति में उन्होंने द्वितीय गणेश उत्सव की शुरुआत उस समय आजादी की अलख जगाने के उद्देश्य से की थी. काशी के इस पुरातन गणेश उत्सव समिति (Kashi Ganesh Puja Committee) की कहानी और यहां चल रहे बप्पा के स्वागत को लेकर तैयारियों के बारे में जानते हैं.
मराठी संस्कृति की तर्ज पर काशी में गणेश उत्सव: वाराणसी के मंगल भवन, ब्रह्मा घाट और बनारस में आंग्रे का बाड़ा नाम से विख्यात इस स्थान पर बीते 125 सालों से गणेश उत्सव का आयोजन होता चला आ रहा है. आयोजन समिति के ट्रस्टी श्रीपाद ओक ने बताया कि श्री काशी गणेशोत्सव कमेटी (Kashi Ganesh Puja Committee) की शुरुआत 1898 में बाल गंगाधर तिलक ने की थी. उस समय अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ बिगुल फूंकने का काम हर कोई कर रहा था और बाल गंगाधर तिलक ने उस समय महाराष्ट्र के पुणे में सभी सनातन धर्म को एकजुट करने के उद्देश्य से पहला गणेश उत्सव शुरू किया था, जिससे सनातन धर्म के साथ जोड़कर अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ मोर्चा खोल सकें. उस समय काशी में रहने वाले मराठी परिवार के लोगों ने उन्हें काशी आने का आमंत्रण दिया था और पुणे में गणेश उत्सव की शुरुआत करने के बाद वह सीधे वाराणसी आए थे और यहां पर उन्होंने दूसरे गणेश उत्सव की शुरुआत की थी.
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1898 से लगातार मनाया जाता है गणेश उत्सवः हजारों मराठी परिवारों ने उनका पूरा साथ दिया था और 1898 से लेकर अभी तक लगातार यह उत्सव काशी में मनाया जाता है. काशी के (Ganesh Chaturthi in Kashi) इस गणेश पूजन का अपना अलग महत्व है, क्योंकि आज भी यहां पर महाराष्ट्र की संस्कृति की झलक देखने को मिलती है. जिस तरह से महाराष्ट्र में गणेश पूजन और गणेश पर्व (festival of ganesh chaturthi) के दौरान पद्यगान और गणेश वंदना करने का विधान है. उसी तरह यहां पर छोटे-छोटे बच्चे हाथों में डांडिया लेकर गणेश वंदना और पद्यगान करते हैं. इसकी तैयारियां नागपंचमी से ही शुरू हो जाती हैं. बच्चों का भी इस परंपरा संस्कृति से जुड़ाव देखने लायक है. बच्चों का कहना है कि हमारे समाज और हमारे धर्म को बचाने के लिए हमारे पूर्वजों ने बहुत सा बलिदान दिया और उन चीजों को संभाल कर हमारे पुराने लोगों ने रखा है. इसलिए हमारा कर्तव्य बनता है कि उन चीजों को आगे बढ़ाएं.
आज डिजिटल युग में लोग टीवी और म्यूजिक सिस्टम पर भजन बजाते हैं, लेकिन हम आज भी उसी पुरानी परंपरा और मराठी समाज की संस्कृति को जीवित रखते हुए पद्यगान और गणेश पूजन की तैयारियां करते हैं. फिलहाल गणेश उत्सव को लेकर महाराष्ट्र में भले ही तैयारियां जोर-शोर से जारी हों. लेकिन, शिव की नगरी काशी में भी भोलेनाथ के पुत्र भगवान गणेश के आगमन को लेकर मराठा समाज काफी उत्साहित हैं.
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