हैदराबाद : भारत के इतिहास में दो अक्टूबर के दिन का एक खास महत्व है. यह दिन देश की दो महान विभूतियों के जन्मदिन के तौर पर इतिहास के पन्नों में दर्ज है. राष्ट्रपिता महात्मा गांधी का जन्म दो अक्टूबर 1869 को हुआ था. उनके कार्यों तथा विचारों ने देश की स्वतंत्रता और इसके बाद आजाद भारत को आकार देने में बड़ी भूमिका निभाई थी.
पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री का जन्म दो अक्टूबर 1904 को हुआ था. उनकी सादगी और विनम्रता के लोग कायल थे. उन्होंने वर्ष 1965 के भारत-पाकिस्तान युद्ध के दौरान 'जय जवान जय किसान' का नारा दिया था.
विश्व में बापू को उनके अहिंसात्मक आंदोलन के लिए जाना जाता है. आज के दिन हम जिनका जन्मदिन मनाते हैं उन्होंने अहिंसा की धारणा को आगे लाने में मदद की. उनकी इस प्रयोग का सामाजिक प्रतिक्रिया के इस रूप का प्रभाव पूरी दुनिया में जबरदस्त तरीके से पड़ा.
अंतरराष्ट्रीय अहिंसा दिवस शिक्षा और जन जागरूकता के द्वारा अहिंसा के संदेश को प्रसारित करने का एक अवसर है. इसके अलावा यह प्रस्ताव और संकल्प अहिंसा के सिद्धांत की सार्वभौमिक प्रासंगिकता और शांति, सहिष्णुता, समझ और अहिंसा की संस्कृति की रक्षा करने की इच्छा की पुष्टि करता है. जीवन में सादगी, सरलता और समर्पण के लिए महात्मा गांधी न केवल भारत बल्कि पूरी दुनिया में दूसरों के लिए प्रेरणास्रोत रहे.
'अहिंसा एक दर्शन है, एक सिद्धांत'
विश्व अहिंसा दिवस, महात्मा गांधी के प्रति वैश्विक तौर पर सम्मान व्यक्त करने के लिए मनाया जाता है. बापू का कहना था कि अहिंसा एक दर्शन है, एक सिद्धांत है और एक अनुभव है, जिसके आधार पर समाज को बेहतर बनाया जा सकता है. संयुक्त राष्ट्र के पास महात्मा गांधी का जन्मदिन, अंतरराष्ट्रीय अहिंसा दिवस के रुप में मनाने के पीछे का उद्देश्य काफी महत्वपूर्ण है. भारत की स्वतंत्रता, बापू की प्रतिबद्धता दुनिया भर में नागरिक और मानव अधिकारों की पहल की आधारशिला रही है. सीधे शब्दों में कहें तो महात्मा गांधी ने हिंसा के खिलाफ शांतिपूर्ण तरीके से अपने कार्यों को बल दिया. यह एक ऐसा सबक है जिसे हम सभी दिल में उतार सकते हैं.
महात्मा गांधी के लिए अहिंसा क्या है
अहिंसा का विचार, जिसे उन्होंने जैन धर्म से अपनाया और लोगों तक पहुंचाया. उन्होंने जानवरों को हितधारकों के रूप में देखा. अहिंसा पर यह जोर भौतिक और भावनात्मक दोनों स्तरों पर है. महत्वपूर्ण रूप से अहिंसा की उनकी अवधारणा में सत्य, सभी जीवों के लिए बिना शर्त प्यार और सांप्रदायिक सद्भाव शामिल थे.
वैश्विक स्तर पर बापू की धाक
सिंगापुर में भारतीय उच्चायोग ने गत वर्ष महात्मा गांधी की जयंती के मौके पर बापू के जीवन और संदेश के विरासत की जीवंत झांकी दिखाई थी.
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The life and message of Mahatma Gandhi cms alive on the heritage bldng of HCI #GandhiJayanti #ગાંધીજયંતિ #MahatmaGandhi #महात्मागांधी #MannMeinBapu #MKGandhi @MEAIndia @ICCR_Delhi @DrSJaishankar @PMOIndia @PIB_India @ANI @SGinIndia @DDNewslive @harshvshringla @incredibleindia pic.twitter.com/UdsBUMXILC
— India in Singapore (@IndiainSingapor) October 2, 2020 " class="align-text-top noRightClick twitterSection" data="
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सत्याग्रह
सत्याग्रह, यह संस्कृत के शब्द सत्य (सत्य) और अग्रा (पकड़ना या रखना) से लिया गया था. गांधी का मानना था कि जो लोग सत्याग्रह करते थे, वे खुद को नैतिक बनाने के साथ-साथ एक दिव्य बल को खुद से जोड़ते हैं. ये एक प्रकार से आत्मबल का एक रूप है. 1908 के एक लेख में महात्मा गांधी ने कहा कि एक सत्याग्रही (सत्याग्रह का एक अभ्यासी) ने अपने मन के डर से छुटकारा पाया और दूसरों के लिए दास बनने से इंकार कर दिया. सत्याग्रह मन का एक दृष्टिकोण था और जो कोई भी इस भावना में कार्य करता है वह विजयी होने का दावेदार बन जाता है. इस उन अनुयायियों को मदद मिलती है जो हिंदू और मुस्लिम दोनों थे, इस पद्धति में उनका विश्वास था.
गांधी से जुड़ी अन्य यादें
इसी वर्ष 30 जनवरी को बापू की पुण्यतिथि पर नेशनल फिल्म आर्काइव ऑफ इंडिया (NFAI) ने अपने कलेक्शन से एक दुर्लभ फुटेज जारी किया था. इस वीडियो में तमिलनाडु (पहले मद्रास) के रामेश्वरम तक बापू की अस्थियों को ले जाने वाली एक विशेष ट्रेन के दृश्य दिखाए गए हैं.
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On #MahatmaGandhi’s death anniversary, revisit rare footage from #NFAIcollection, that has visuals of a special train carrying #Mahatma Gandhi’s ashes from #Madras to #Rameshwaram.#MahatmaGandhiji #Gandhi #MartyrsDay #शहीद_दिवस @MIB_India @AkashvaniAIR @PIB_India pic.twitter.com/E9nOXYaaP4
— NFAI (@NFAIOfficial) January 30, 2021 " class="align-text-top noRightClick twitterSection" data="
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शांतिपूर्ण विरोध और राजनीतिक बदलाव
ब्लैक लाइव्स मैटर
2020 के उतार-चढ़ाव 1919, 1943 और 1968 के कुछ मामलों में मिलते-जुलते हैं. वे अफ्रीकी अमेरिकियों के खिलाफ लंबे समय से चली आ रही घृणा, खेत हिंसा और पुलिस की बर्बरता से उपजी नफरत के कारण बढ़ रहे थे, जिसमें फ्लोयड सहित प्रति वर्ष सैकड़ों लोग शामिल हो रहे थे. 2020 के अधिकांश विरोध शांतिपूर्ण रहे, प्रारंभिक रिपोर्ट में पाया गया कि, एक अंश हिंसक हो गया था.
टैक्स लगाने के खिलाफ नमक मार्च
12 मार्च 1930 को महात्मा गांधी ने नमक पर टैक्स लगाने के अंग्रेजों के फैसले के खिलाफ अहमदाबाद में साबरमती आश्रम से नमक सत्याग्रह की शुरुआत की. इसके तहत समुद्र के किनारे बसे एक गांव दांडी तक 24 दिन की लंबी यात्रा की गई. यहां पहुंचकर बापू के नेतृत्व में हजारों लोगों ने अंग्रेजों के नमक कानून को तोड़ा. यह एक अहिंसात्मक आंदोलन और पद यात्रा थी. देश के आजादी के इतिहास में दांडी यात्रा को खासा महत्व दिया जाता है.
गांधी ने ब्रिटेन के थोपे गए कानून के खिलाफ शांतिपूर्ण विरोध किया, जिसके अनुसार कोई भी भारतीय देश में नमक इकट्ठा या बेच नहीं सकता था. दर्जनों लोगों द्वारा पीछा किए जाने के बाद, महात्मा गांधी ने समुद्र के पानी से निकलने वाले मुट्ठी भर नमक को लेने के लिए अरब सागर में 240 मील से अधिक की लंबी दूरी तक प्रदर्शन किया. इस शांतिपूर्ण अभी तक विवादास्पद कृत्य के बाद, भारत ने स्वतंत्रता प्राप्त की.
सफरेज परेड
1913 की सफरेज परेड जैसे शांतिपूर्ण विरोध ने 5,000 से अधिक साहसी महिलाओं की आवाज को समान राजनीतिक भागीदारी के अधिकार के लिए आवाज दी. यह विरोध हमें याद दिलाता है कि हम शांतिपूर्ण कार्य प्रणाली को बदलने की शक्ति रखते हैं.
डेलानो ग्रेप बॉयकॉट
सीजर शावेज ने शांतिपूर्ण बहिष्कार, विरोध और 25 दिन की भूख हड़ताल की वकालत की, जिसके कारण 1960 के दशक के अंत में अमेरिका के खेत श्रमिकों के शोषण को समाप्त करने के लिए विधायी परिवर्तन हुए. उन्होंने डेलानो, कैलिफोर्निया में पांच साल की हड़ताल का नेतृत्व किया, जिसमें 2,000 से अधिक किसानों को एक साथ लाया गया, जो मुख्य रूप से अंडरपिल्ड फिलीडीनो फार्मवर्कर्स के लिए न्यूनतम मजदूरी की मांग करते थे. इन्होंने 17 मिलियन से अधिक अमेरिकियों को कैलिफोर्निया के अंगूरों का बहिष्कार करने का कारण बना दिया, जिससे सुरक्षित यूनियनों, बेहतर मजदूरी और खेती करने वालों की सुरक्षा में मदद मिली.
मोंटगोमरी बस बॉयकॉट
एक ऐसा समय होता है जब एक व्यक्ति के शांतिपूर्ण कार्यों के बारे में कोई भी कल्पना से अधिक बदलाव ला सकता है. मॉन्टगोमरी, अला में एक बस में एक श्वेत यात्री को अपनी सीट देने से मना करने के कारण रोसा पार्क्स का उदाहरण इसी तरह का है. उनके इस उद्दंड कृत्य ने नागरिक अधिकारों को प्रतीक दिया, यह संदेश फैलाया कि सभी लोग समान सीटों के हकदार हैं. अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट ने 1956 में इस पर एक साल बाद फैसला सुनाया था.
गायन क्रांति
संगीत और सामाजिक सक्रियता लंबे समय से (अहिंसक) अपराध में भागीदार हैं. गायन क्रांति के दौरान, एस्टोनिया ने शाब्दिक रूप से सोवियत संघ के अधीन शासन से बाहर का रास्ता अपनाया. 1988 में सोवियत शासन का विरोध करने के लिए 100,000 से अधिक एस्टोनियाई लोग पांच रातों के लिए एकत्र हुए. इसे गायन क्रांति के रूप में जाना जाता था. एस्टोनियाई लोगों के लिए संगीत और गायन ने संस्कृति को संरक्षित करने के तरीके के रूप में काम किया. 1991 में सोवियत शासन के दशकों के बाद केवल 1.5 मिलियन लोगों के साथ एक देश ने इसकी स्वतंत्रता हासिल की.