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दो बच्चे के नियम से घबराकर अयोग्य पार्षद ने तीसरे बच्चे को बताया गैर, सुप्रीम कोर्ट का मानने से इंकार

वहीं, जब यह मामला देश की सर्वोच्च अदालत में पहुंचा तो कोर्ट ने पार्षद के इस तर्क को सरासर इंकार कर दिया. वहीं, इससे पहले बॉम्बे हाईकोर्ट ने भी उक्त बचाव पक्ष को खारिज कर दिया था.

सुप्रीम कोर्ट ने मानने से किया इंकार
सुप्रीम कोर्ट ने मानने से किया इंकार
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Published : Jul 14, 2021, 2:03 PM IST

मुंबई: नई जनसंख्या नीति को लेकर पूरे देश में खलबली मच गई है. सभी राजनीतिक दल इसको लेकर अपने-अपने बयान दे रहे हैं. दलों का कहना है कि इसको लागू करने से पहले चर्चा जरूरी है. वहीं, महाराष्ट्र से एक दिलचस्प मामला सामने आया है.

महाराष्ट्र की एक नगर निगम पार्षद ने दो बच्चों वाले नियम से बचने के लिए अपने तीसरे बच्चे को किसी और का बता दिया. ऐसा करके उन्होंने अयोग्यता से बचने का प्रयास किया, लेकिन उनके मंसूबे कामयाब नहीं हो सके. बता दें, महाराष्ट्र के पंचायत और नगर निगम के चुनावों में दो बच्चों का नियम लागू है.

वहीं, जब यह मामला देश की सर्वोच्च अदालत में पहुंचा तो कोर्ट ने पार्षद के इस तर्क को सरासर इंकार कर दिया. वहीं, इससे पहले बॉम्बे हाईकोर्ट ने भी उक्त बचाव पक्ष को खारिज कर दिया था.

बता दें, 2017 में सोलापुर नगर परिषद में अनीता रामदास मगर नाम की एक महिला के चुनाव से संबंधित यह मुद्दा है. उनके चुनाव को एक प्रतिद्वंद्वी उम्मीदवार ने इसी आधार पर चुनौती दी थी कि 1 सितंबर, 2001 के बाद उनको तीसरा बच्चा पैदा हुआ था, जिस तारीख को महाराष्ट्र स्थानीय निकाय चुनाव लड़ने से दो से अधिक बच्चों वाले लोगों को अयोग्य घोषित करने का प्रावधान पेश किया.

ट्रायल कोर्ट ने पाया कि पार्षद अनीता मगर ने 2004 में एक बेटी को जन्म दिया था. इसलिए, ट्रायल कोर्ट ने महाराष्ट्र नगर निगम अधिनियम, 1949 की धारा 10 (1) (i) के तहत उसे अयोग्य ठहराते हुए उसका चुनाव रद्द कर दिया.

पढ़ें: बाल मजदूरी व तस्करी के खिलाफ मॉनसून सत्र में विधेयक पारित करना चाहिए : सत्यार्थी

उन्होंने तर्क देते हुए कहा था कि तीसरे बच्चे का जन्म दूसरे परिवार में हुआ है. उनके पति के भाई और उनकी पत्नी को विवादित तीसरे बच्चे के माता-पिता होने का अनुमान लगाया गया था. बच्चे के जन्म प्रमाण पत्र में भी छेड़छाड़ करते हुए यह तर्क दिया गया था कि तीसरे बच्चे के माता-पिता वो नहीं हैं.

मुंबई: नई जनसंख्या नीति को लेकर पूरे देश में खलबली मच गई है. सभी राजनीतिक दल इसको लेकर अपने-अपने बयान दे रहे हैं. दलों का कहना है कि इसको लागू करने से पहले चर्चा जरूरी है. वहीं, महाराष्ट्र से एक दिलचस्प मामला सामने आया है.

महाराष्ट्र की एक नगर निगम पार्षद ने दो बच्चों वाले नियम से बचने के लिए अपने तीसरे बच्चे को किसी और का बता दिया. ऐसा करके उन्होंने अयोग्यता से बचने का प्रयास किया, लेकिन उनके मंसूबे कामयाब नहीं हो सके. बता दें, महाराष्ट्र के पंचायत और नगर निगम के चुनावों में दो बच्चों का नियम लागू है.

वहीं, जब यह मामला देश की सर्वोच्च अदालत में पहुंचा तो कोर्ट ने पार्षद के इस तर्क को सरासर इंकार कर दिया. वहीं, इससे पहले बॉम्बे हाईकोर्ट ने भी उक्त बचाव पक्ष को खारिज कर दिया था.

बता दें, 2017 में सोलापुर नगर परिषद में अनीता रामदास मगर नाम की एक महिला के चुनाव से संबंधित यह मुद्दा है. उनके चुनाव को एक प्रतिद्वंद्वी उम्मीदवार ने इसी आधार पर चुनौती दी थी कि 1 सितंबर, 2001 के बाद उनको तीसरा बच्चा पैदा हुआ था, जिस तारीख को महाराष्ट्र स्थानीय निकाय चुनाव लड़ने से दो से अधिक बच्चों वाले लोगों को अयोग्य घोषित करने का प्रावधान पेश किया.

ट्रायल कोर्ट ने पाया कि पार्षद अनीता मगर ने 2004 में एक बेटी को जन्म दिया था. इसलिए, ट्रायल कोर्ट ने महाराष्ट्र नगर निगम अधिनियम, 1949 की धारा 10 (1) (i) के तहत उसे अयोग्य ठहराते हुए उसका चुनाव रद्द कर दिया.

पढ़ें: बाल मजदूरी व तस्करी के खिलाफ मॉनसून सत्र में विधेयक पारित करना चाहिए : सत्यार्थी

उन्होंने तर्क देते हुए कहा था कि तीसरे बच्चे का जन्म दूसरे परिवार में हुआ है. उनके पति के भाई और उनकी पत्नी को विवादित तीसरे बच्चे के माता-पिता होने का अनुमान लगाया गया था. बच्चे के जन्म प्रमाण पत्र में भी छेड़छाड़ करते हुए यह तर्क दिया गया था कि तीसरे बच्चे के माता-पिता वो नहीं हैं.

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