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कनाडा में चरमपंथियों को बचाने के लिए 'अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता' को बहाने के तौर पर इस्तेमाल नहीं किया जा सकता : एक्सपर्ट

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कनाडा में खालिस्तानी सक्रियता (Khalistani activism in Canada) की अनुमति देने के लिए अपने कनाडाई समकक्ष जस्टिन ट्रूडो की कड़ी आलोचना की. हालांकि उन्होंने अपनी सरकार के रुख के लिए अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का राग अलापना जारी रखा. कनाडा चरमपंथियों और आतंकवादियों का समर्थन करने के लिए अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का बहाना इस्तेमाल करता रहता है. ईटीवी भारत के अरुणिम भुइयां की रिपोर्ट.

Modi and Trudeau during G20 summit
जी20 समिट के दौरान मोदी और ट्रूडो
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By ETV Bharat Hindi Team

Published : Sep 11, 2023, 6:26 PM IST

नई दिल्ली: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पिछले सप्ताहांत यहां जी20 शिखर सम्मेलन (G20 Summit) के मौके पर जितनी भी द्विपक्षीय बैठकें कीं, उनमें उत्तरी अमेरिकी देश में हाल के दिनों में खालिस्तानी सक्रियता ( Khalistani activism in Canada) के मद्देनजर अपने कनाडाई समकक्ष जस्टिन ट्रूडो के साथ बैठक में सबसे तीखी रही.

रविवार को बैठक के बाद विदेश मंत्रालय का एक बयान जारी हुआ जिसमें कहा गया कि 'प्रधानमंत्री (मोदी) ने इस बात पर प्रकाश डाला कि भारत-कनाडा संबंध साझा लोकतांत्रिक मूल्यों, कानून के शासन के प्रति सम्मान और लोगों के बीच मजबूत संबंधों पर आधारित हैं.'

उन्होंने कनाडा में चरमपंथी तत्वों की जारी भारत विरोधी गतिविधियों के बारे में हमारी कड़ी चिंताओं से अवगत कराया. उन्होंने कहा कि 'वे अलगाववाद को बढ़ावा दे रहे हैं और भारतीय राजनयिकों के खिलाफ हिंसा भड़का रहे हैं, राजनयिक परिसरों को नुकसान पहुंचा रहे हैं, और कनाडा में भारतीय समुदाय और उनके पूजा स्थलों को धमकी दे रहे हैं. संगठित अपराध, ड्रग सिंडिकेट और मानव तस्करी के साथ ऐसी ताकतों का गठजोड़ कनाडा के लिए भी चिंता का विषय होना चाहिए. ऐसे खतरों से निपटने के लिए दोनों देशों का सहयोग करना जरूरी है.'

मोदी ने ट्रूडो को यह भी स्पष्ट कर दिया कि, 'भारत-कनाडा संबंधों की प्रगति के लिए आपसी सम्मान और विश्वास पर आधारित संबंध आवश्यक है.' उदारवाद और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की आड़ में ओटावा द्वारा खालिस्तानी समर्थक तत्वों को समर्थन देने के कारण भारत और ट्रूडो सरकार के बीच संबंध ख़राब रहे हैं.

इस साल जून में, ओंटारियो के ग्रेटर टोरंटो क्षेत्र में खालिस्तानी समर्थक समूहों द्वारा आयोजित एक परेड में एक झांकी थी जिसमें पूर्व भारतीय प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या को दर्शाया गया था और साथ ही एक संकेत भी था कि यह 'श्री दरबार साहिब पर हमले का बदला' था.

पिछले साल सितंबर में ओंटारियो में महात्मा गांधी की एक मूर्ति को तोड़ दिया गया था और उस पर 'खालिस्तान' शब्द लिख दिया गया था. फिर पिछले साल नवंबर में भारत में प्रतिबंधित सिख अलगाववादी समूह सिख फॉर जस्टिस (एसएफजे) ने ब्रैम्पटन में खालिस्तान के लिए जनमत संग्रह कराया.

भारत के विरोध के बावजूद, कनाडा की प्रतिक्रिया कमज़ोर रही है. दरअसल, ट्रूडो ने किसानों के विरोध जैसे भारत के घरेलू मुद्दों पर टिप्पणी की, जिसने आग में घी डालने का काम किया है. जून में परेड के बाद विदेश मंत्री एस जयशंकर ने खालिस्तानी चरमपंथियों को जगह मुहैया कराने के लिए कनाडा की निंदा की थी.

जयशंकर ने ये कहा था : जयशंकर ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा, 'सच कहूं तो वोट-बैंक की राजनीति की आवश्यकताओं के अलावा, हम यह समझने में असमर्थ हैं कि कोई ऐसा क्यों करेगा... मुझे लगता है कि अलगाववादियों, चरमपंथियों की वकालत करने वाले लोगों को जो स्थान दिया जाता है, उसके बारे में एक बड़ा अंतर्निहित मुद्दा है हिंसा. मुझे लगता है कि यह रिश्तों के लिए अच्छा नहीं है, और कनाडा के लिए भी अच्छा नहीं है.'

रविवार को बैठक के दौरान मोदी के कड़े शब्दों के बावजूद, ट्रूडो ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस आयोजित की, जिसमें उन्होंने अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता में कनाडा के विश्वास पर फिर से जोर दिया. जी20 के लिए अपनी नई दिल्ली यात्रा के दौरान, ट्रूडो ने खुद को अन्य विश्व नेताओं से अलग-थलग पाया. शनिवार को राष्ट्रपति भवन में राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू द्वारा आयोजित भोज में उनकी अनुपस्थिति भी चर्चा में रही.

अपनी प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान ट्रूडो ने कहा कि उन्होंने खालिस्तान चरमपंथ को लेकर मोदी से कई बार बातचीत की है. साथ ही उन्होंने कहा कि ओटावा हमेशा अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की रक्षा करेगा लेकिन किसी भी हिंसा को रोकने के लिए तत्पर रहेगा. हालांकि, पर्यवेक्षकों का मानना ​​है कि यह कनाडाई सरकार द्वारा इस्तेमाल किया जा रहा एक बेकार बहाना है.

भारतीय भू-राजनीति और सुरक्षा मामलों के थिंक टैंक, उसानास फाउंडेशन के निदेशक, संस्थापक और सीईओ अभिनव पंड्या ने ईटीवी भारत से कहा, 'वे चरमपंथियों और आतंकवादियों की रक्षा के लिए अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के बहाने का अंतहीन उपयोग नहीं कर सकते. समस्या और भी गंभीर होती जा रही है.'

पंड्या ने कहा कि कनाडा में अधिक से अधिक खालिस्तानी कार्यकर्ता मुख्यधारा की राजनीति में प्रवेश कर रहे हैं. इस संबंध में उन्होंने न्यू डेमोक्रेटिक पार्टी (एनडीपी) का जिक्र किया जो ट्रूडो सरकार की सहयोगी है. एनडीपी के नेता जगमीत सिंह खालिस्तानी मुद्दे के जाने-माने समर्थक हैं.

पंड्या ने कहा कि 'कनाडा में, आईएसआई (पाकिस्तान की इंटर-सर्विसेज इंटेलिजेंस) ने प्रॉक्सी का एक मजबूत आधार तैयार किया है.ये लोग भारत में कश्मीरी अलगाववादियों के साथ मिले हुए हैं जिन्हें कनाडा के माध्यम से भी वित्त पोषित किया जा रहा है.'

उन्होंने कहा कि 'आईएसआई के पास पूरे कनाडा की मस्जिदों में मौलवी हैं. कनाडा में ज्यादातर गुरुद्वारों पर खालिस्तानियों का कब्जा है. लेकिन ये लोग कनाडा में सिख समुदाय के एक छोटे से हिस्से का प्रतिनिधित्व करते हैं.'

लगभग 16 लाख भारतीय मूल के व्यक्तियों (पीआईओ) और अतिरिक्त 700,000 एनआरआई के साथ, कनाडा दुनिया में सबसे बड़े भारतीय प्रवासियों में से एक की मेजबानी करता है, जो इसकी कुल आबादी का 3 प्रतिशत से अधिक है. वर्तमान हाउस ऑफ कॉमन्स (कुल संख्या 338) में भारतीय मूल के 19 संसद सदस्य हैं. इसमें कैबिनेट के तीन मंत्री शामिल हैं.

हालांकि, चाहे कोई इसे राजनीतिक मजबूरी के रूप में देखे या चाहे अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को एक बहाने के रूप में उद्धृत किया जाए, फैक्ट यह है कि भारत और कनाडा के बीच संबंध तब तक अच्छे नहीं रहेंगे जब तक ओटावा खालिस्तानी कार्यकर्ताओं को खुली छूट देता रहेगा.

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नई दिल्ली: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पिछले सप्ताहांत यहां जी20 शिखर सम्मेलन (G20 Summit) के मौके पर जितनी भी द्विपक्षीय बैठकें कीं, उनमें उत्तरी अमेरिकी देश में हाल के दिनों में खालिस्तानी सक्रियता ( Khalistani activism in Canada) के मद्देनजर अपने कनाडाई समकक्ष जस्टिन ट्रूडो के साथ बैठक में सबसे तीखी रही.

रविवार को बैठक के बाद विदेश मंत्रालय का एक बयान जारी हुआ जिसमें कहा गया कि 'प्रधानमंत्री (मोदी) ने इस बात पर प्रकाश डाला कि भारत-कनाडा संबंध साझा लोकतांत्रिक मूल्यों, कानून के शासन के प्रति सम्मान और लोगों के बीच मजबूत संबंधों पर आधारित हैं.'

उन्होंने कनाडा में चरमपंथी तत्वों की जारी भारत विरोधी गतिविधियों के बारे में हमारी कड़ी चिंताओं से अवगत कराया. उन्होंने कहा कि 'वे अलगाववाद को बढ़ावा दे रहे हैं और भारतीय राजनयिकों के खिलाफ हिंसा भड़का रहे हैं, राजनयिक परिसरों को नुकसान पहुंचा रहे हैं, और कनाडा में भारतीय समुदाय और उनके पूजा स्थलों को धमकी दे रहे हैं. संगठित अपराध, ड्रग सिंडिकेट और मानव तस्करी के साथ ऐसी ताकतों का गठजोड़ कनाडा के लिए भी चिंता का विषय होना चाहिए. ऐसे खतरों से निपटने के लिए दोनों देशों का सहयोग करना जरूरी है.'

मोदी ने ट्रूडो को यह भी स्पष्ट कर दिया कि, 'भारत-कनाडा संबंधों की प्रगति के लिए आपसी सम्मान और विश्वास पर आधारित संबंध आवश्यक है.' उदारवाद और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की आड़ में ओटावा द्वारा खालिस्तानी समर्थक तत्वों को समर्थन देने के कारण भारत और ट्रूडो सरकार के बीच संबंध ख़राब रहे हैं.

इस साल जून में, ओंटारियो के ग्रेटर टोरंटो क्षेत्र में खालिस्तानी समर्थक समूहों द्वारा आयोजित एक परेड में एक झांकी थी जिसमें पूर्व भारतीय प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या को दर्शाया गया था और साथ ही एक संकेत भी था कि यह 'श्री दरबार साहिब पर हमले का बदला' था.

पिछले साल सितंबर में ओंटारियो में महात्मा गांधी की एक मूर्ति को तोड़ दिया गया था और उस पर 'खालिस्तान' शब्द लिख दिया गया था. फिर पिछले साल नवंबर में भारत में प्रतिबंधित सिख अलगाववादी समूह सिख फॉर जस्टिस (एसएफजे) ने ब्रैम्पटन में खालिस्तान के लिए जनमत संग्रह कराया.

भारत के विरोध के बावजूद, कनाडा की प्रतिक्रिया कमज़ोर रही है. दरअसल, ट्रूडो ने किसानों के विरोध जैसे भारत के घरेलू मुद्दों पर टिप्पणी की, जिसने आग में घी डालने का काम किया है. जून में परेड के बाद विदेश मंत्री एस जयशंकर ने खालिस्तानी चरमपंथियों को जगह मुहैया कराने के लिए कनाडा की निंदा की थी.

जयशंकर ने ये कहा था : जयशंकर ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा, 'सच कहूं तो वोट-बैंक की राजनीति की आवश्यकताओं के अलावा, हम यह समझने में असमर्थ हैं कि कोई ऐसा क्यों करेगा... मुझे लगता है कि अलगाववादियों, चरमपंथियों की वकालत करने वाले लोगों को जो स्थान दिया जाता है, उसके बारे में एक बड़ा अंतर्निहित मुद्दा है हिंसा. मुझे लगता है कि यह रिश्तों के लिए अच्छा नहीं है, और कनाडा के लिए भी अच्छा नहीं है.'

रविवार को बैठक के दौरान मोदी के कड़े शब्दों के बावजूद, ट्रूडो ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस आयोजित की, जिसमें उन्होंने अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता में कनाडा के विश्वास पर फिर से जोर दिया. जी20 के लिए अपनी नई दिल्ली यात्रा के दौरान, ट्रूडो ने खुद को अन्य विश्व नेताओं से अलग-थलग पाया. शनिवार को राष्ट्रपति भवन में राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू द्वारा आयोजित भोज में उनकी अनुपस्थिति भी चर्चा में रही.

अपनी प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान ट्रूडो ने कहा कि उन्होंने खालिस्तान चरमपंथ को लेकर मोदी से कई बार बातचीत की है. साथ ही उन्होंने कहा कि ओटावा हमेशा अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की रक्षा करेगा लेकिन किसी भी हिंसा को रोकने के लिए तत्पर रहेगा. हालांकि, पर्यवेक्षकों का मानना ​​है कि यह कनाडाई सरकार द्वारा इस्तेमाल किया जा रहा एक बेकार बहाना है.

भारतीय भू-राजनीति और सुरक्षा मामलों के थिंक टैंक, उसानास फाउंडेशन के निदेशक, संस्थापक और सीईओ अभिनव पंड्या ने ईटीवी भारत से कहा, 'वे चरमपंथियों और आतंकवादियों की रक्षा के लिए अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के बहाने का अंतहीन उपयोग नहीं कर सकते. समस्या और भी गंभीर होती जा रही है.'

पंड्या ने कहा कि कनाडा में अधिक से अधिक खालिस्तानी कार्यकर्ता मुख्यधारा की राजनीति में प्रवेश कर रहे हैं. इस संबंध में उन्होंने न्यू डेमोक्रेटिक पार्टी (एनडीपी) का जिक्र किया जो ट्रूडो सरकार की सहयोगी है. एनडीपी के नेता जगमीत सिंह खालिस्तानी मुद्दे के जाने-माने समर्थक हैं.

पंड्या ने कहा कि 'कनाडा में, आईएसआई (पाकिस्तान की इंटर-सर्विसेज इंटेलिजेंस) ने प्रॉक्सी का एक मजबूत आधार तैयार किया है.ये लोग भारत में कश्मीरी अलगाववादियों के साथ मिले हुए हैं जिन्हें कनाडा के माध्यम से भी वित्त पोषित किया जा रहा है.'

उन्होंने कहा कि 'आईएसआई के पास पूरे कनाडा की मस्जिदों में मौलवी हैं. कनाडा में ज्यादातर गुरुद्वारों पर खालिस्तानियों का कब्जा है. लेकिन ये लोग कनाडा में सिख समुदाय के एक छोटे से हिस्से का प्रतिनिधित्व करते हैं.'

लगभग 16 लाख भारतीय मूल के व्यक्तियों (पीआईओ) और अतिरिक्त 700,000 एनआरआई के साथ, कनाडा दुनिया में सबसे बड़े भारतीय प्रवासियों में से एक की मेजबानी करता है, जो इसकी कुल आबादी का 3 प्रतिशत से अधिक है. वर्तमान हाउस ऑफ कॉमन्स (कुल संख्या 338) में भारतीय मूल के 19 संसद सदस्य हैं. इसमें कैबिनेट के तीन मंत्री शामिल हैं.

हालांकि, चाहे कोई इसे राजनीतिक मजबूरी के रूप में देखे या चाहे अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को एक बहाने के रूप में उद्धृत किया जाए, फैक्ट यह है कि भारत और कनाडा के बीच संबंध तब तक अच्छे नहीं रहेंगे जब तक ओटावा खालिस्तानी कार्यकर्ताओं को खुली छूट देता रहेगा.

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