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सरकारी योजनाओं के नाम पर ठगों ने फैलाया जाल

सरकारी योजनाओं को लेकर फर्जीवाड़े का खतरा मंडराने लगा है. योजना में आमजन को बहकाने के लिए कहीं फर्जी वेबसाइट तो कहीं फर्जी सर्वेयर का सहारा लिया जा रहा है और लाखों रुपयों की ठगी की जा रही है. ठगे जा चुके आवेदकों को आजतक कोई राशि वापस नहीं मिल पा रही है. वहीं आरोपियाें की पहचान होने के बावजूद उन पर कार्रवाई करने में भी अधिकारी लापरवाही बरत रहे हैं.

ठगों ने फैलाया जाल
ठगों ने फैलाया जाल
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Published : Nov 7, 2020, 10:54 AM IST

नई दिल्ली : प्रधानमंत्री के नाम पर चल रही योजनाओं को लेकर फर्जीवाड़े का खतरा मंडराने लगा है. योजना में आमजन को बहकाने के लिए कहीं फर्जी वेबसाइट तो कहीं फर्जी सर्वेयर का सहारा लिया जा रहा है. असल आवेदकों को फर्जी तरीके से ठगने के कई मामले भी सामने आ रहा हैं इन दिनों इंटरनेट के जरिए होने वाले घोटाले बढ़ते जा रहे हैं. गूगल, यू-ट्यूब और ट्विटर जैसे सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर सरकार के नाम पर बहुत ज्यादा विज्ञापन दिया जा रहा है. मुफ्त लैपटॉप योजना, प्रधानमंत्री स्कूटी योजना, पीएम किसान ट्रेक्टर योजना, प्रधानमंत्री सौर पैनल योजना, प्रधानमंत्री कन्या आशीर्वाद योजना और भी बहुत सारी नकली योजनाओं के विज्ञापन बढ़ते जा रहे हैं.

इन साइटों पर कई पोस्ट दिखाई देते हैं जिनमें इन योजनाओं के माध्यम से कई मुफ्त उपहारों से लेकर नौकरी तक देने का दावा किया जाता है. सरकार के नाम पर इस तरह का फर्जीवाड़ा किया जाना कोई नई बात नहीं है, जब तक कोविड महामारी बहुत नहीं फैली थी तब तक इस तरह के विज्ञापन बहुत कम आते थे लेकिन कोरोना काल में सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर ऐसे विज्ञापन बहुत बढ़ गए हैं. जालसाज फर्जी योजनाओं की आड़ में न केवल व्यक्तिगत जानकारी जुटा रहे हैं बल्कि उन्हें आर्थिक तौर पर धोखा भी दे रहे हैं.

फर्जी योजनाओं के जरिए धोखा देने का तरीका हमेशा एक ही होता है. रोजगार और ऋण योजनाओं के नाम पर किसी विशेष सरकारी योजना का (अधिकांश मामलों में ऐसी कोई योजना होती ही नहीं है ) जनता के लिए एक संदेश जाता है कि इसका लाभ पाने के लिए उसे चुना गया है. योजना का लाभ पाने के लिए उन्हें पहले पंजीयन प्रक्रिया पूरी करने के लिए शुल्क देना होगा. जालसाज जब तक शुल्क का भुगतान नहीं पा जाते हैं तब तक मौजूद रहते हैं लेकिन जैसे ही शुल्क का भुगतान किया जाता है गायब हो जाते हैं.

डिजिटल सुराग भी नहीं मिलता
ग्राम विकास रोजगार योजना का उदाहरण ( एक नकली रोजगार योजना ) इस योजना के पत्र तेलंगाना, पंजाब और मेघालय सहित विभिन्न राज्यों के ग्राम सरपंचों को सीधे भेजे गए हैं. पत्र में गांव के कुछ उम्मीदवारों का खुद चयन करने के लिए कहा गया और बाद में उन्हें प्रति उम्मीदवार बारह सौ रुपये का डिमांड ड्राफ्ट भेजने के लिए कहा गया. कई ने संबंधित अधिकारियों से इस योजना की पुष्टि किए बगैर पैसे भी भेज दिए. यह घोटाला बिना किसी डिजिटल निशानी छोड़े या किसी भी तरह के फोन नंबर के हुआ. कुछ मामलों में लोगों ने इन फर्जी योजनाओं में सरकारी दफ्तरों के सामने लाइन लगा दी और अधिकारियों को पंजीकरण करने के लिए कहा. कई मामलों में राजनेताओं को आगे आकर कहना पड़ा कि ऐसी कोई सरकारी योजना नहीं थी. उदाहरण के लिए फर्जी पीएम स्कूटी योजना वायरल हुई तो भाजपा नेता मीडिया के सामने आए और कहा कि उस नाम की कोई केंद्रीय सरकारी योजना नहीं थी.

सोशल मीडिया पर धार्मिक, सामाजिक और राजनीतिक मामलों से जुड़ी झूठी सूचनाएं भी बढ़ रही हैं. इस तरह की गलत सूचनाएं बहुत ध्यान आकर्षित करती हैं. ये फर्जी योजनाएं फर्जी वेबसाइट लिंक, वॉट्सऐप और यूट्यूब वीडियो के माध्यम ये फैलाई जाती हैं. इस तरह के झूठे प्रचार से पीड़ित लोगों में शिक्षित लोग तेजी से बढ़ रहे हैं. फर्जीवाड़ा से जुड़े कई यू-ट्यूब वीडियो के जरिए प्रचारित की जाने वाली फर्जी योजनाओं में कई शिक्षित लोग भी टिप्पणी वाले हिस्से में अपने मोबाइल नंबर, आधार संख्या और बैंक खाते का विवरण डाल दे रहे हैं. इन फर्जी योजनाओं की वजह से कई लोग पैसे के साथ-साथ व्यक्तिगत गोपनीयता भी गंवा रहे हैं. शिकायत निवारण की एक सही व्यवस्था की कमी के कारण पीड़ितों को यह समझ नहीं आता कि अपने पैसे वापस पाने के लिए वे क्या करें. प्रेस सूचना ब्यूरो सहित कुछ राज्य सरकारों ने ऑनलाइन धोखाधड़ी के लिए सच्चाई का पता लगाने वाली कुछ इकाइयों का गठन किया है.

विशेष तरीके अपनाने की जरूरत है
सरकार को एक टोल फ्री नंबर उपलब्ध कराना चाहिए ताकि लोग ऐसे संदेशों की सच्चाई का पता लगा सकें और जरूरत के अनुसार उनके बारे में शिकायत भी कर सकें. पुलिसकर्मियों यह सुनिश्चित करने के लिए उचित प्रशिक्षण दिया जाना चाहिए कि पोर्टल पर संबंधित राज्य के पुलिस विभाग को इस बारे में शिकायत मिले तो इस तरह की धोखाधड़ी की गतिविधियों का तुरंत संज्ञान लें. सोशल मीडिया और प्रौद्योगिकी कंपनियों ने नफरत फैलाने वाले पोस्ट डालने वालों के खिलाफ उचित कार्रवाई करने के लिए विशेष नीतियां बनाना चाहिए. इसी तरह लोगों को गुमराह करने और फर्जी योजनाओ के नाम पर ठगी करने वालों के खिलाफ उचित कार्रवाई करने के लिए विशेष उपाय करने की जरूरत है. इन फर्जी योजनाओं को इंटरनेट प्लेटफॉर्म पर कुछ ऐसी वेबसाइटों के जरिए बढ़ावा दिया जा रहा है, जिन्हें कुछ सरकारी वेबसाइटों की हूबहू नकल करके (क्लोन ) तैयार किया है. कड़ी निगरानी करके इस सूत्र को पकड़ा जाना चाहिए. सरकारी योजनाओं की तरह दिखने वाली नकली वेबसाइटों पर नकेल कसनी चाहिए और उनके खिलाफ कार्रवाई की जानी चाहिए जो केवल लगातार निगरानी रखकर ही संभव है. सरकार के नामों से मिलती जुलती योजनाओं बैंक खातों पर कड़ी नजर रखना जरूरी है. सरकार को ऐसी फर्जी योजनाओं के खिलाफ सतर्कता बरतने के लिए लगातार घोषणाएं करते रहना चाहिए.

पढ़ें : साइबर ठगों के चक्कर में आकर तीन लोगों ने गवाएं 1.32 लाख रुपये

केंद्र और राज्य सरकार की योजनाओं की पूरी जानकारी पाने के लिए एक वेबसाइट शुरू की जानी चाहिए. योग्य उम्मीदवारों को उसी वेबसाइट पर आवेदन करने की सुविधा दी जाए. सरकारों , मीडिया , सच्चाई का पता लगाने वाले तंत्र , एनजीओ के साथ ही नागरिक समाज को एक साझा मंच पर आकर एक साथ इन फर्जी योजनाओं की समस्या से निपटने के लिए काम करना चाहिए.

नई दिल्ली : प्रधानमंत्री के नाम पर चल रही योजनाओं को लेकर फर्जीवाड़े का खतरा मंडराने लगा है. योजना में आमजन को बहकाने के लिए कहीं फर्जी वेबसाइट तो कहीं फर्जी सर्वेयर का सहारा लिया जा रहा है. असल आवेदकों को फर्जी तरीके से ठगने के कई मामले भी सामने आ रहा हैं इन दिनों इंटरनेट के जरिए होने वाले घोटाले बढ़ते जा रहे हैं. गूगल, यू-ट्यूब और ट्विटर जैसे सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर सरकार के नाम पर बहुत ज्यादा विज्ञापन दिया जा रहा है. मुफ्त लैपटॉप योजना, प्रधानमंत्री स्कूटी योजना, पीएम किसान ट्रेक्टर योजना, प्रधानमंत्री सौर पैनल योजना, प्रधानमंत्री कन्या आशीर्वाद योजना और भी बहुत सारी नकली योजनाओं के विज्ञापन बढ़ते जा रहे हैं.

इन साइटों पर कई पोस्ट दिखाई देते हैं जिनमें इन योजनाओं के माध्यम से कई मुफ्त उपहारों से लेकर नौकरी तक देने का दावा किया जाता है. सरकार के नाम पर इस तरह का फर्जीवाड़ा किया जाना कोई नई बात नहीं है, जब तक कोविड महामारी बहुत नहीं फैली थी तब तक इस तरह के विज्ञापन बहुत कम आते थे लेकिन कोरोना काल में सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर ऐसे विज्ञापन बहुत बढ़ गए हैं. जालसाज फर्जी योजनाओं की आड़ में न केवल व्यक्तिगत जानकारी जुटा रहे हैं बल्कि उन्हें आर्थिक तौर पर धोखा भी दे रहे हैं.

फर्जी योजनाओं के जरिए धोखा देने का तरीका हमेशा एक ही होता है. रोजगार और ऋण योजनाओं के नाम पर किसी विशेष सरकारी योजना का (अधिकांश मामलों में ऐसी कोई योजना होती ही नहीं है ) जनता के लिए एक संदेश जाता है कि इसका लाभ पाने के लिए उसे चुना गया है. योजना का लाभ पाने के लिए उन्हें पहले पंजीयन प्रक्रिया पूरी करने के लिए शुल्क देना होगा. जालसाज जब तक शुल्क का भुगतान नहीं पा जाते हैं तब तक मौजूद रहते हैं लेकिन जैसे ही शुल्क का भुगतान किया जाता है गायब हो जाते हैं.

डिजिटल सुराग भी नहीं मिलता
ग्राम विकास रोजगार योजना का उदाहरण ( एक नकली रोजगार योजना ) इस योजना के पत्र तेलंगाना, पंजाब और मेघालय सहित विभिन्न राज्यों के ग्राम सरपंचों को सीधे भेजे गए हैं. पत्र में गांव के कुछ उम्मीदवारों का खुद चयन करने के लिए कहा गया और बाद में उन्हें प्रति उम्मीदवार बारह सौ रुपये का डिमांड ड्राफ्ट भेजने के लिए कहा गया. कई ने संबंधित अधिकारियों से इस योजना की पुष्टि किए बगैर पैसे भी भेज दिए. यह घोटाला बिना किसी डिजिटल निशानी छोड़े या किसी भी तरह के फोन नंबर के हुआ. कुछ मामलों में लोगों ने इन फर्जी योजनाओं में सरकारी दफ्तरों के सामने लाइन लगा दी और अधिकारियों को पंजीकरण करने के लिए कहा. कई मामलों में राजनेताओं को आगे आकर कहना पड़ा कि ऐसी कोई सरकारी योजना नहीं थी. उदाहरण के लिए फर्जी पीएम स्कूटी योजना वायरल हुई तो भाजपा नेता मीडिया के सामने आए और कहा कि उस नाम की कोई केंद्रीय सरकारी योजना नहीं थी.

सोशल मीडिया पर धार्मिक, सामाजिक और राजनीतिक मामलों से जुड़ी झूठी सूचनाएं भी बढ़ रही हैं. इस तरह की गलत सूचनाएं बहुत ध्यान आकर्षित करती हैं. ये फर्जी योजनाएं फर्जी वेबसाइट लिंक, वॉट्सऐप और यूट्यूब वीडियो के माध्यम ये फैलाई जाती हैं. इस तरह के झूठे प्रचार से पीड़ित लोगों में शिक्षित लोग तेजी से बढ़ रहे हैं. फर्जीवाड़ा से जुड़े कई यू-ट्यूब वीडियो के जरिए प्रचारित की जाने वाली फर्जी योजनाओं में कई शिक्षित लोग भी टिप्पणी वाले हिस्से में अपने मोबाइल नंबर, आधार संख्या और बैंक खाते का विवरण डाल दे रहे हैं. इन फर्जी योजनाओं की वजह से कई लोग पैसे के साथ-साथ व्यक्तिगत गोपनीयता भी गंवा रहे हैं. शिकायत निवारण की एक सही व्यवस्था की कमी के कारण पीड़ितों को यह समझ नहीं आता कि अपने पैसे वापस पाने के लिए वे क्या करें. प्रेस सूचना ब्यूरो सहित कुछ राज्य सरकारों ने ऑनलाइन धोखाधड़ी के लिए सच्चाई का पता लगाने वाली कुछ इकाइयों का गठन किया है.

विशेष तरीके अपनाने की जरूरत है
सरकार को एक टोल फ्री नंबर उपलब्ध कराना चाहिए ताकि लोग ऐसे संदेशों की सच्चाई का पता लगा सकें और जरूरत के अनुसार उनके बारे में शिकायत भी कर सकें. पुलिसकर्मियों यह सुनिश्चित करने के लिए उचित प्रशिक्षण दिया जाना चाहिए कि पोर्टल पर संबंधित राज्य के पुलिस विभाग को इस बारे में शिकायत मिले तो इस तरह की धोखाधड़ी की गतिविधियों का तुरंत संज्ञान लें. सोशल मीडिया और प्रौद्योगिकी कंपनियों ने नफरत फैलाने वाले पोस्ट डालने वालों के खिलाफ उचित कार्रवाई करने के लिए विशेष नीतियां बनाना चाहिए. इसी तरह लोगों को गुमराह करने और फर्जी योजनाओ के नाम पर ठगी करने वालों के खिलाफ उचित कार्रवाई करने के लिए विशेष उपाय करने की जरूरत है. इन फर्जी योजनाओं को इंटरनेट प्लेटफॉर्म पर कुछ ऐसी वेबसाइटों के जरिए बढ़ावा दिया जा रहा है, जिन्हें कुछ सरकारी वेबसाइटों की हूबहू नकल करके (क्लोन ) तैयार किया है. कड़ी निगरानी करके इस सूत्र को पकड़ा जाना चाहिए. सरकारी योजनाओं की तरह दिखने वाली नकली वेबसाइटों पर नकेल कसनी चाहिए और उनके खिलाफ कार्रवाई की जानी चाहिए जो केवल लगातार निगरानी रखकर ही संभव है. सरकार के नामों से मिलती जुलती योजनाओं बैंक खातों पर कड़ी नजर रखना जरूरी है. सरकार को ऐसी फर्जी योजनाओं के खिलाफ सतर्कता बरतने के लिए लगातार घोषणाएं करते रहना चाहिए.

पढ़ें : साइबर ठगों के चक्कर में आकर तीन लोगों ने गवाएं 1.32 लाख रुपये

केंद्र और राज्य सरकार की योजनाओं की पूरी जानकारी पाने के लिए एक वेबसाइट शुरू की जानी चाहिए. योग्य उम्मीदवारों को उसी वेबसाइट पर आवेदन करने की सुविधा दी जाए. सरकारों , मीडिया , सच्चाई का पता लगाने वाले तंत्र , एनजीओ के साथ ही नागरिक समाज को एक साझा मंच पर आकर एक साथ इन फर्जी योजनाओं की समस्या से निपटने के लिए काम करना चाहिए.

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