श्रीनगर: निर्वाचित विधानसभा की अनुपस्थिति में, जम्मू और कश्मीर आगामी 8 जुलाई को राष्ट्रपति चुनाव में मतदान नहीं कर पायेगा. 90 के दशक के बाद यह दूसरी बार है जब जम्मू-कश्मीर में उच्च स्तरीय चुनाव में मतदान करने के लिए निर्वाचित विधानसभा नहीं होगी. 1990 और 1996 के बीच, जम्मू और कश्मीर छह साल के लिए राष्ट्रपति शासन के अधीन था. 1992 में, जम्मू और कश्मीर ने निर्वाचित विधायकों की अनुपस्थिति में मतदान नहीं किया.
2018 के बाद से, जम्मू और कश्मीर राष्ट्रपति शासन के अधीन है, वर्तमान में राज्य के डाउनग्रेड होने और दो केंद्र शासित प्रदेशों में विभाजित होने के बाद से उपराज्यपाल ही इसके प्रशासक हैं. हालांकि, वर्तमान में पांच निर्वाचित सांसद- सत्तारूढ़ भाजपा के दो और नेशनल कांफ्रेंस से तीन- मतदान में मतदान करने जा रहे हैं. राष्ट्रपति चुनाव में नेशनल कांफ्रेंस ने अपना स्टैंड साफ नहीं किया. उम्मीद की जा रही है वह इस मामले में विपक्ष के उम्मीदवार का ही साथ देंगे.
इस वजह से आगामी जुलाई में प्रस्तावित राष्ट्रपति चुनाव में इस बार एक सांसद के मत का मूल्य 708 से घटकर 700 रह जाने की संभावना है. राष्ट्रपति चुनाव में एक सांसद के मत का मूल्य दिल्ली, पुडुचेरी और जम्मू-कश्मीर समेत अन्य राज्यों तथा केंद्रशासित प्रदेशों की विधानसभाओं के लिए निर्वाचित सदस्यों की संख्या पर आधारित होता है. राष्ट्रपति चुनाव में लोकसभा, राज्यसभा और दिल्ली, पुडुचेरी तथा जम्मू कश्मीर सहित राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों की विधानसभाओं के सदस्य मतदान करते हैं.
अगस्त 2019 में लद्दाख और जम्मू-कश्मीर के दो केंद्रशासित प्रदेशों में विभाजित होने से पहले तत्कालीन जम्मू-कश्मीर राज्य में 83 विधानसभा सीट थीं. जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम के अनुसार, केंद्रशासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर में विधानसभा होगी, जबकि लद्दाख पर सीधे केंद्र का शासन होगा. भारत का चुनाव आयोग, जिसने 18 जुलाई को चुनावों की घोषणा की थी, जम्मू-कश्मीर में कोई मतदान केंद्र स्थापित नहीं करेगा, और केंद्र शासित प्रदेश के सभी पांच सांसद अपना वोट कमरा नंबर 63, पहली मंजिल, संसद भवन, नई दिल्ली में डालेंगे. जहां दोनों सदनों के निर्वाचित सांसदों को वोट देने का अधिकार है. यह पहली बार नहीं है कि किसी राज्य विधानसभा के विधायक राष्ट्रपति चुनाव में भाग नहीं ले पाएंगे. वर्ष 1974 में 182 सदस्यीय गुजरात विधानसभा को नवनिर्माण आंदोलन के बाद मार्च में भंग कर दिया गया था.