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हिमाचल प्रदेश : कोरोना की वजह से मत्स्य कारोबार प्रभावित, सप्लाई भी बाधित

हिमाचल प्रदेश का मछली कारोबार पर कोरोना की मार पड़ी है. इससे प्रदेश के जलाशयों में कार्यरत साढ़े पांच हजार मछुआरों की मुश्किलें बढ़ गई हैं. विशेषज्ञों के अनुसार बिलासपुर जिले में तापमान बढ़ रहा है जिसके चलते मछली अधिक समय तक जीवित नहीं रह पाएगी.

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Published : Jul 31, 2021, 1:16 PM IST

बिलासपुर : कोरोना संकट की वजह से हिमाचल का मछली कारोबार प्रभावित हो गया है. मुंबई, दिल्ली, कर्नाटक और पंजाब सहित अन्य राज्य कोरोना संकट के चलते लॉकडाउन की स्थिति में हैं. इसके चलते हिमाचली फिश को मार्केट नहीं मिल पा रही. इससे प्रदेश के जलाशयों में कार्यरत साढ़े पांच हजार मछुआरों के समक्ष जीवन चलाने का साधनों का संकट पैदा हो गया है.

अहम बात यह है कि कोलडैम में मत्स्य विभाग द्वारा तैयार की गई डेढ़ से दो मीट्रिक टन रेनबो ट्राउट भी बिक नहीं रही. बिलासपुर जिले में तापमान बढ़ रहा है जिसके चलते मछली अधिक समय तक जीवित नहीं रह पाएगी. प्रदेश में गोबिंदसागर, कोलडैम, पौंगडैम, रणजीत सागर डैम और चमेरा डैम बड़े जलाशय हैं, जहां बड़े स्तर पर मछली कारोबार होता है.

इन पांचों जलाशयों में 5500 के करीब मछुआरे कार्यरत हैं और सोसायटियों के माध्यम से मछली पकड़ने का कार्य करते हैं जिससे उनकी रोजी चलती है. पिछले साल की तरह इस बार भी कोरोना संकट ने मत्स्य कारोबार को बुरी तरह प्रभावित करके रख दिया है.

ज्यादातर ठेकेदारों ने हाथ खड़े कर दिए हैं, जिसकी वजह से मछुआरों की चिंता बढ़ गई है. हिमाचली मछली मुंबई, दिल्ली, कर्नाटक और पंजाब राज्यों में सप्लाई होती है, लेकिन इन राज्यों में कोरोना से हालात खराब होने के चलते मछली सप्लाई बाधित है.

कोरोना की वजह से मत्स्य कारोबार प्रभावित

वहीं, मत्स्य विभाग ने पहली बार केज में रेनबो ट्राउट का सफल प्रयोग किया है, लेकिन विडंबना यह है कि इस समय कसोल में उपलब्ध ढाई सौ से तीन सौ ग्राम वजन की डेढ़ से दो मीट्रिक टन ट्राउट को बाजार नहीं मिल पा रहा. ऐसे में अधिक दिनों तक मछली जीवित नहीं रह सकती क्योंकि जिले का तापमान निरंतर बढ़ रहा है.

इसके चलते विभाग चिंतित है क्योंकि अगर जल्द ट्राउट मछली को मार्केट नहीं मिलती है तो बढ़ते तापमान के कारण मछली ज्यादातर समय तक जीवित नहीं रह सकेगी. मत्स्य विशेषज्ञों की मानें तो कोलडैम में मात्र छह माह में ही ट्राउट की सफल प्रोडक्शन की है, जबकि ठंडे क्षेत्रों में इस प्रोसेस के लिए 12 से 15 माह तक लग जाते हैं.

उधर, इस संदर्भ में फोन पर बात करने पर मत्स्य निदेशक सतपाल मैहता ने बताया कि बड़े जलाशयों में मछली कारोबार प्रभावित हुआ है. चाहे गोबिंदसागर, कोलडैम, चमेरा डैम या रणजीत सागर डैम की बात हो. बाहरी राज्यों में कोरोना की भयंकर स्थिति के चलते मछली सप्लाई बाधित हुई है.

यह भी पढ़ें-बिहार के चौरा रेलवे स्टेशन पर नक्सली हमला, स्टेशन उड़ाने की दी धमकी, घंटों राेका परिचालन

इसके अलावा कोलडैम में पहली बार सफल प्रयोग ट्राउट को बाजार नहीं मिल पा रहा. ट्राउट विक्रय के लिए कोशिश की जा रही है. कांगड़ा जिले के पौंगडैम में मछली पकड़ने का कार्य बंद है. जिला प्रशासन की ओर से कोरोना की बिगड़ती स्थिति को ध्यान में रखते हुए पौंगडैम में फिशिंग बंद करवा दी गई है.

बिलासपुर : कोरोना संकट की वजह से हिमाचल का मछली कारोबार प्रभावित हो गया है. मुंबई, दिल्ली, कर्नाटक और पंजाब सहित अन्य राज्य कोरोना संकट के चलते लॉकडाउन की स्थिति में हैं. इसके चलते हिमाचली फिश को मार्केट नहीं मिल पा रही. इससे प्रदेश के जलाशयों में कार्यरत साढ़े पांच हजार मछुआरों के समक्ष जीवन चलाने का साधनों का संकट पैदा हो गया है.

अहम बात यह है कि कोलडैम में मत्स्य विभाग द्वारा तैयार की गई डेढ़ से दो मीट्रिक टन रेनबो ट्राउट भी बिक नहीं रही. बिलासपुर जिले में तापमान बढ़ रहा है जिसके चलते मछली अधिक समय तक जीवित नहीं रह पाएगी. प्रदेश में गोबिंदसागर, कोलडैम, पौंगडैम, रणजीत सागर डैम और चमेरा डैम बड़े जलाशय हैं, जहां बड़े स्तर पर मछली कारोबार होता है.

इन पांचों जलाशयों में 5500 के करीब मछुआरे कार्यरत हैं और सोसायटियों के माध्यम से मछली पकड़ने का कार्य करते हैं जिससे उनकी रोजी चलती है. पिछले साल की तरह इस बार भी कोरोना संकट ने मत्स्य कारोबार को बुरी तरह प्रभावित करके रख दिया है.

ज्यादातर ठेकेदारों ने हाथ खड़े कर दिए हैं, जिसकी वजह से मछुआरों की चिंता बढ़ गई है. हिमाचली मछली मुंबई, दिल्ली, कर्नाटक और पंजाब राज्यों में सप्लाई होती है, लेकिन इन राज्यों में कोरोना से हालात खराब होने के चलते मछली सप्लाई बाधित है.

कोरोना की वजह से मत्स्य कारोबार प्रभावित

वहीं, मत्स्य विभाग ने पहली बार केज में रेनबो ट्राउट का सफल प्रयोग किया है, लेकिन विडंबना यह है कि इस समय कसोल में उपलब्ध ढाई सौ से तीन सौ ग्राम वजन की डेढ़ से दो मीट्रिक टन ट्राउट को बाजार नहीं मिल पा रहा. ऐसे में अधिक दिनों तक मछली जीवित नहीं रह सकती क्योंकि जिले का तापमान निरंतर बढ़ रहा है.

इसके चलते विभाग चिंतित है क्योंकि अगर जल्द ट्राउट मछली को मार्केट नहीं मिलती है तो बढ़ते तापमान के कारण मछली ज्यादातर समय तक जीवित नहीं रह सकेगी. मत्स्य विशेषज्ञों की मानें तो कोलडैम में मात्र छह माह में ही ट्राउट की सफल प्रोडक्शन की है, जबकि ठंडे क्षेत्रों में इस प्रोसेस के लिए 12 से 15 माह तक लग जाते हैं.

उधर, इस संदर्भ में फोन पर बात करने पर मत्स्य निदेशक सतपाल मैहता ने बताया कि बड़े जलाशयों में मछली कारोबार प्रभावित हुआ है. चाहे गोबिंदसागर, कोलडैम, चमेरा डैम या रणजीत सागर डैम की बात हो. बाहरी राज्यों में कोरोना की भयंकर स्थिति के चलते मछली सप्लाई बाधित हुई है.

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इसके अलावा कोलडैम में पहली बार सफल प्रयोग ट्राउट को बाजार नहीं मिल पा रहा. ट्राउट विक्रय के लिए कोशिश की जा रही है. कांगड़ा जिले के पौंगडैम में मछली पकड़ने का कार्य बंद है. जिला प्रशासन की ओर से कोरोना की बिगड़ती स्थिति को ध्यान में रखते हुए पौंगडैम में फिशिंग बंद करवा दी गई है.

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