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राफेल या सुखोई, एमआई-17 या अपाचे वायुसेना के लिए एकीकरण कितनी बड़ी समस्या ?

भारतीय वायु सेना को विभिन्न तरह के विमानों, हेलीकॉप्टरों और हथियार प्रणालियों से लैस किया जा रहा है. ये रूस, अमेरिका, फ्रांस और इजराइल में बने हैं, लेकिन इन्हें एक साथ मिलाकर पूरी तरह से युद्ध के लिए तैयार रखना कितनी बड़ी चुनौती है. पेश है हमारे वरिष्ठ संवाददाता संजीब कुमार बरुआ की विशेष रिपोर्ट.

वायुसेना के लिए एकीकरण
वायुसेना के लिए एकीकरण
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Published : Nov 8, 2020, 9:29 AM IST

नई दिल्ली : फ्रांस से आने वाले तीन और राफेल लड़ाकू विमान पूरे रास्ते बगैर रुके बुधवार को गुजरात के जामनगर एयरबेस पर उतरा. यह भारतीय वायु सेना (आईएएफ) के उड़ान प्लेटफॉर्म, उपकरण और हथियारों के बढ़ते मेल को रेखांकित कर रहा है.

क्या अलग-अलग भौगोलिक क्षेत्रों में बनने वाले असमान और अलग-अलग प्लेटफॉर्मों को एक साथ करना और मिलान करना एक चुनौती होगी ? इस स्पष्ट सवाल के जवाब में आईएएफ के एक शीर्ष अधिकारी नाम न बताने की शर्त पर ईटीवी भारत को बताया कि इस मुद्दे का पहले ही समाधान हो चुका है. भारत के पास दुनिया के सर्वश्रेष्ठ एकीकृत वायु कमान और नियंत्रण प्रणाली (आईएसीसी) में से एक है. हमारे लिए यह बिल्कुल समस्या नहीं है. उदाहरण के लिए छोटे स्तर पर लड़ाकू विमान को लें. यह रूसी, फ्रांसीसी या अमेरिकी मूल का हो सकता है, लेकिन बहुत सारी चीजें सामान्य हैं, उदाहरण के लिए आईबी डिजीबस किसी भी लड़ाकू विमान में जोड़ा जा सकता है.

डिजीबस एक ऐसा उपकरण है जो फाइटर विमान के सभी उप-प्रणालियों की हालत और स्थिति के बारे में दो-तरफा रिले और संचार को अपने अभियान वाले कंप्यूटर तक भेजने में सक्षम बनाता है. एकीकरण के प्रयास के परिणामस्वरूप ऐसे संयोजन बने हैं, जिसमें किसी दूसरे देश में बनने वाले फ्लाइंग प्लेटफॉर्म को शामिल करते हैं. दूसरे देशों से हथियार और उपकरण लाते हैं, भारत में बने घटकों और उपकरणों की बात न करें.

यह पूछे जाने पर कि क्या आपूर्ति करने वाले देशों को आपत्ति है ? इस पर अधिकारी ने कहा कि रणनीतिक मंच पर आने पर कुछ आरक्षित और वर्जित क्षेत्र हैं, लेकिन अन्य लोगों के लिए यह बहुत अधिक समस्या नहीं है. नेट आधारित युद्ध की ओर बढ़ने के वैश्विक रुझान का परिणाम है कि आईएसीसीएस का लक्ष्य जमीन पर स्थित सभी का और एयर सेंसर, हथियार प्रणाली, एयर बेस और वायु सेना के अन्य प्रतिष्ठानों को एकीकृत करना है.

पढ़ें- चीन से तनाव के बीच भारत पहुंची राफेल विमानों की दूसरी खेप
इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए शीर्ष अधिकारी ने कहा कि दो राफेल स्क्वाड्रन बनाने या 36 विमानों के अलावा, भारतीय वायु सेना के मुख्य लड़ाकू विमान में रूसी मूल के सुखोई 30 और एमआईजी -29, फ्रांसीसी मूल के मिराज -2000, और हल्के लड़ाकू स्वदेशी विमान तेजस शामिल हैं.

युद्ध करने वाली संपत्तियों का मेल जैसे हेलीकॉप्टर, सैन्य परिवहन विमान और एयरलिफ्टर जैसे आईएएफ के अन्य उड़ान प्लेटफॉर्मों तक भी फैला हुआ है और संकेत हैं कि घटते-बढ़ते संयोजन भविष्य में ही विकसित हो सकते हैं. यह विशेष रूप से अमेरिका के साथ मूलभूत समझौतों की पृष्ठभूमि में है, जो अधिक प्रौद्योगिकी, सूचना, खुफिया और लड़ाई वाली परिसंपत्तियों की उपलब्धता को बढ़ावा देगा.

आईएएफ के हेलीकॉप्टर बेड़े में हाल ही में अधिग्रहीत अमेरिकी मूल का अपाचे और चिनूक, एमआई श्रृंखला के रूसी मूल के हेलीकॉप्टर शामिल हैं, जबकि सैन्य परिवहन प्लेटफार्मों में यूएस मूल का सी-130 जे सुपर हरक्यूलिस और सी -17 ग्लोबमास्टर, रूसी मूल के आईएल -76 और एएन -32 वर्कहॉर्स शामिल हैं.

नई दिल्ली : फ्रांस से आने वाले तीन और राफेल लड़ाकू विमान पूरे रास्ते बगैर रुके बुधवार को गुजरात के जामनगर एयरबेस पर उतरा. यह भारतीय वायु सेना (आईएएफ) के उड़ान प्लेटफॉर्म, उपकरण और हथियारों के बढ़ते मेल को रेखांकित कर रहा है.

क्या अलग-अलग भौगोलिक क्षेत्रों में बनने वाले असमान और अलग-अलग प्लेटफॉर्मों को एक साथ करना और मिलान करना एक चुनौती होगी ? इस स्पष्ट सवाल के जवाब में आईएएफ के एक शीर्ष अधिकारी नाम न बताने की शर्त पर ईटीवी भारत को बताया कि इस मुद्दे का पहले ही समाधान हो चुका है. भारत के पास दुनिया के सर्वश्रेष्ठ एकीकृत वायु कमान और नियंत्रण प्रणाली (आईएसीसी) में से एक है. हमारे लिए यह बिल्कुल समस्या नहीं है. उदाहरण के लिए छोटे स्तर पर लड़ाकू विमान को लें. यह रूसी, फ्रांसीसी या अमेरिकी मूल का हो सकता है, लेकिन बहुत सारी चीजें सामान्य हैं, उदाहरण के लिए आईबी डिजीबस किसी भी लड़ाकू विमान में जोड़ा जा सकता है.

डिजीबस एक ऐसा उपकरण है जो फाइटर विमान के सभी उप-प्रणालियों की हालत और स्थिति के बारे में दो-तरफा रिले और संचार को अपने अभियान वाले कंप्यूटर तक भेजने में सक्षम बनाता है. एकीकरण के प्रयास के परिणामस्वरूप ऐसे संयोजन बने हैं, जिसमें किसी दूसरे देश में बनने वाले फ्लाइंग प्लेटफॉर्म को शामिल करते हैं. दूसरे देशों से हथियार और उपकरण लाते हैं, भारत में बने घटकों और उपकरणों की बात न करें.

यह पूछे जाने पर कि क्या आपूर्ति करने वाले देशों को आपत्ति है ? इस पर अधिकारी ने कहा कि रणनीतिक मंच पर आने पर कुछ आरक्षित और वर्जित क्षेत्र हैं, लेकिन अन्य लोगों के लिए यह बहुत अधिक समस्या नहीं है. नेट आधारित युद्ध की ओर बढ़ने के वैश्विक रुझान का परिणाम है कि आईएसीसीएस का लक्ष्य जमीन पर स्थित सभी का और एयर सेंसर, हथियार प्रणाली, एयर बेस और वायु सेना के अन्य प्रतिष्ठानों को एकीकृत करना है.

पढ़ें- चीन से तनाव के बीच भारत पहुंची राफेल विमानों की दूसरी खेप
इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए शीर्ष अधिकारी ने कहा कि दो राफेल स्क्वाड्रन बनाने या 36 विमानों के अलावा, भारतीय वायु सेना के मुख्य लड़ाकू विमान में रूसी मूल के सुखोई 30 और एमआईजी -29, फ्रांसीसी मूल के मिराज -2000, और हल्के लड़ाकू स्वदेशी विमान तेजस शामिल हैं.

युद्ध करने वाली संपत्तियों का मेल जैसे हेलीकॉप्टर, सैन्य परिवहन विमान और एयरलिफ्टर जैसे आईएएफ के अन्य उड़ान प्लेटफॉर्मों तक भी फैला हुआ है और संकेत हैं कि घटते-बढ़ते संयोजन भविष्य में ही विकसित हो सकते हैं. यह विशेष रूप से अमेरिका के साथ मूलभूत समझौतों की पृष्ठभूमि में है, जो अधिक प्रौद्योगिकी, सूचना, खुफिया और लड़ाई वाली परिसंपत्तियों की उपलब्धता को बढ़ावा देगा.

आईएएफ के हेलीकॉप्टर बेड़े में हाल ही में अधिग्रहीत अमेरिकी मूल का अपाचे और चिनूक, एमआई श्रृंखला के रूसी मूल के हेलीकॉप्टर शामिल हैं, जबकि सैन्य परिवहन प्लेटफार्मों में यूएस मूल का सी-130 जे सुपर हरक्यूलिस और सी -17 ग्लोबमास्टर, रूसी मूल के आईएल -76 और एएन -32 वर्कहॉर्स शामिल हैं.

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