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बेटे की दवा लाने के लिए पिता ने साइकिल से तय की 300 किमी की दूरी, पुलिस की लाठी भी पड़ी

कर्नाटक के मैसूर जिले के रहने वाले एक पिता ने अपने बेटे की दवा लाने के लिए 300 किलाेमीटर तक की दूरी साइकिल से तय की. लॉकडाउन के कारण उन्हें पुलिस की लाठियां भी खानी पड़ी.

लॉकडाउन
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Published : May 31, 2021, 6:40 PM IST

मैसूर : अपने बेटे के लिए दवा लाने के लिए एक पिता साइकिल से 300 किलाेमीटर की दूरी तय की. अपने घर से बेंगलुरु के निमहंस अस्पताल तक 300 किमी का सफर तय कर दवा लेकर गांव लौटे. उन्हाेंने कहा कि अपने बेटे के चेहरे काे देखकर उनकी सारी थकान दूर हाे गई.

मैसूर जिले के टी. नरसीपुरा तालुक के कोप्पलु गांव के निवासी आनंद (45) कुली के रूप में काम कर अपने परिवार की देखभाल करते हैं. उनके बेटे का नाम भैरश है. पिछले 10 साल से भैरश का इलाज बेंगलुरु के निमहंस अस्पताल में चल रहा है. दवा से ही उसका स्वास्थ्य स्थिर रहता है.

दवा नहीं मिलने पर बेटे की तबीयत खराब हाे जाती है. आनंद हर 2 महीने पर बेंगलुरु से दवा लाते थे. लेकिन लॉकडाउन के चलते वह बाहर नहीं जा सके और दवा खत्म होने वाली थी. इसलिए पिता ने अपने रिश्तेदारों और दोस्तों से मदद मांगी.

हालांकि, कोविड के कारण कोई मदद के लिए नहीं आया. आनंद ने अपनी पुरानी साइकिल से ही दवा लाने का फैसला किया. 23 मई को वह घर से निकला और 26 मई की शाम को दवा लेकर वापस लौटा.

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लॉकडाउन के चलते उन पर पुलिसकर्मी की लाठियां भी चलीं, लेकिन वे दिन-रात साइकिल चलाते रहे और उन्हें देखकर अस्पताल के कर्मचारी भी हैरान रह गए.

मैसूर : अपने बेटे के लिए दवा लाने के लिए एक पिता साइकिल से 300 किलाेमीटर की दूरी तय की. अपने घर से बेंगलुरु के निमहंस अस्पताल तक 300 किमी का सफर तय कर दवा लेकर गांव लौटे. उन्हाेंने कहा कि अपने बेटे के चेहरे काे देखकर उनकी सारी थकान दूर हाे गई.

मैसूर जिले के टी. नरसीपुरा तालुक के कोप्पलु गांव के निवासी आनंद (45) कुली के रूप में काम कर अपने परिवार की देखभाल करते हैं. उनके बेटे का नाम भैरश है. पिछले 10 साल से भैरश का इलाज बेंगलुरु के निमहंस अस्पताल में चल रहा है. दवा से ही उसका स्वास्थ्य स्थिर रहता है.

दवा नहीं मिलने पर बेटे की तबीयत खराब हाे जाती है. आनंद हर 2 महीने पर बेंगलुरु से दवा लाते थे. लेकिन लॉकडाउन के चलते वह बाहर नहीं जा सके और दवा खत्म होने वाली थी. इसलिए पिता ने अपने रिश्तेदारों और दोस्तों से मदद मांगी.

हालांकि, कोविड के कारण कोई मदद के लिए नहीं आया. आनंद ने अपनी पुरानी साइकिल से ही दवा लाने का फैसला किया. 23 मई को वह घर से निकला और 26 मई की शाम को दवा लेकर वापस लौटा.

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लॉकडाउन के चलते उन पर पुलिसकर्मी की लाठियां भी चलीं, लेकिन वे दिन-रात साइकिल चलाते रहे और उन्हें देखकर अस्पताल के कर्मचारी भी हैरान रह गए.

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