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पार्टियों के लिए हथियार बन गया है किसान आंदोलन: भारतीय किसान संघ

किसान आंदोलन को लेकर भारतीय किसान संघ के सचिव दिनेश कुलकर्णी ने कहा है कि किसानों का प्रदर्शन राजनीतिक पार्टियों के लिए एक हथियार बन गया है और जो लोग किसानों को भड़काने का काम कर रहे हैं, सरकार को उन पर कार्रवाई करनी चाहिए.

भारतीय किसान संघ
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Published : Nov 27, 2020, 9:33 PM IST

नई दिल्ली : दिल्ली-हरियाणा बॉर्डर पर दो दिनों के संघर्ष के बाद अंततः शुक्रवार को दिल्ली पुलिस ने हजारों किसानों को दिल्ली में प्रवेश की अनुमति दी. हालांकि एक तयशुदा प्रदर्शन के बावजूद उग्र होते किसानों पर पुलिस को वाटर कैनन और आंसू गैस के गोले छोड़ने पड़े. इस बीच किसानों ने कई जगहों पर बैरिकेडिंग तोड़ने की कोशिश की. इस कारण पुलिस को किसानों पर हल्का लाठीचार्ज भी करना पड़ा, जिससे विपक्षी पार्टियों ने केंद्र सरकार की जमकर आलोचना की.

इस मामले पर भारतीय किसान संघ के सचिव दिनेश कुलकर्णी ने ईटीवी भारत से बात करते हुए बताया कि किसानों का प्रदर्शन राजनीतिक पार्टियों के लिए एक हथियार बन गया है और सरकार को यह देखना चाहिए कि वह किसानों पर लाठीचार्ज और बल प्रयोग न करें.

उन्होंने कहा कि सरकार को उन लोगों पर कार्रवाई करनी चाहिए, जो किसानों को भड़का रहे हैं. इसके साथ ही सरकार को किसानों को यह भरोसा भी दिलाना होगा कि वह भविष्य में कभी भी मार्केट से मिनिमम सपोर्ट प्राइस यानी एमएसपी को खत्म नहीं करेगी.

उन्होंने आगे कहा कि केंद्र सरकार इस बात का दावा तो कर रही है कि पिछले कुछ महीनों में ही एमएसपी के माध्यम से काफी खरीद हुई है, लेकिन हकीकत यह है कि यह खरीद किसानों की कुल फसल का आठ से दस फीसदी ही है. बाकी किसान अभी भी कम कीमत पर अपने अनाज बेचने को मजबूर हैं या राजनीतिक तौर पर मजबूर किए जा रहे हैं. इसलिए सरकार को यह सुनिश्चित करना होगा कि एमएसपी दरों से कम कीमत में किसान की फसलें न खरीदी जाए.

हालांकि, इस मामले में सरकार ने तीन दिसंबर को बैठक बुलाई है. मगर विपक्षी पार्टियों का कहना है कि इससे पहले ही जब किसान उग्र हो रहे थे, तो सरकार को उनकी बातों पर ध्यान देना चाहिए था.

वहीं, दूसरी तरफ किसानों को मनाने की जिम्मेदारी भी केंद्रीय मंत्री राजनाथ सिंह को दी गई है और सूत्रों से मिली जानकारी के मुताबिक, राजनाथ सिंह किसान संगठनों के साथ लगातार संपर्क में भी हैं और बैठक कर रहे हैं.

इधर, भारतीय जनता पार्टी के कई नेता किसान प्रदर्शनों की आलोचना कर रहे हैं. भाजपा सांसद मनोज तिवारी ने किसानों द्वारा पीएम मोदी पर दिए गए बयान पर हमला बोलते हुए कहा कि यह कैसा एजेंडा है, जैसे ही पीएम मोदी ने भारत का भला सोचा तो इन सबके पेट में दर्द हो गया. नागरिक, किसान, जवान सबके साथ भाजपा और प्रधानमंत्री हैं और किसानों की आड़ में पंजाब में खालिस्तान में धंधा चलाया जा रहा है.

पढ़ें- किसानों का बुराड़ी जाने से इनकार, सिंघु सीमा पर हिंसक झड़प

वहीं, केंद्रीय मंत्री बाबुल सुप्रियो ने ट्वीट कर विपक्षियों पर हमला बोला. बाबुल सुप्रियो ने आरोप लगाया कि कृषि सुधार कानूनों का विरोध करने और बिचौलियों का बचाव करने के लिए भ्रांति फैलाई गई कि एमएसपी खत्म हो जाएगा, लेकिन सच यह है कि खरीफ सीजन में अब तक 307.03 लाख मैट्रिक टन धान 57,967.67 करोड़ रुपये के एमएसपी मूल्य पर खरीदा जा चुका है.

उन्होंने यह भी दावा किया कि नए कृषि कानूनों से किसान के जीवन में क्रांतिकारी बदलाव आएंगे. कानूनों में किसी भी भ्रम को दूर करने के लिए सभी किसान यूनियनों को तीन दिसंबर को पुनः चर्चा के लिए बुलाया गया है और वह सभी किसानों से अनुरोध करते हैं कि आंदोलन स्थगित करके चर्चा के लिए आएं.

इस बीच भाजपा के नेताओं को आधिकारिक तौर पर किसानों के ऊपर किसी भी तरह की टिप्पणी करने से बचने की हिदायत दी गई है और किसानों के मामले को लेकर पार्टी भी फूंक-फूंक कर कदम रख रही है, क्योंकि उसे चिंता है कि किसान विरोधी आंदोलन अगर बाकी राज्यों में भी फैलता है, तो पार्टी के लिए एक बड़ी मुसीबत खड़ी हो सकती है.

नई दिल्ली : दिल्ली-हरियाणा बॉर्डर पर दो दिनों के संघर्ष के बाद अंततः शुक्रवार को दिल्ली पुलिस ने हजारों किसानों को दिल्ली में प्रवेश की अनुमति दी. हालांकि एक तयशुदा प्रदर्शन के बावजूद उग्र होते किसानों पर पुलिस को वाटर कैनन और आंसू गैस के गोले छोड़ने पड़े. इस बीच किसानों ने कई जगहों पर बैरिकेडिंग तोड़ने की कोशिश की. इस कारण पुलिस को किसानों पर हल्का लाठीचार्ज भी करना पड़ा, जिससे विपक्षी पार्टियों ने केंद्र सरकार की जमकर आलोचना की.

इस मामले पर भारतीय किसान संघ के सचिव दिनेश कुलकर्णी ने ईटीवी भारत से बात करते हुए बताया कि किसानों का प्रदर्शन राजनीतिक पार्टियों के लिए एक हथियार बन गया है और सरकार को यह देखना चाहिए कि वह किसानों पर लाठीचार्ज और बल प्रयोग न करें.

उन्होंने कहा कि सरकार को उन लोगों पर कार्रवाई करनी चाहिए, जो किसानों को भड़का रहे हैं. इसके साथ ही सरकार को किसानों को यह भरोसा भी दिलाना होगा कि वह भविष्य में कभी भी मार्केट से मिनिमम सपोर्ट प्राइस यानी एमएसपी को खत्म नहीं करेगी.

उन्होंने आगे कहा कि केंद्र सरकार इस बात का दावा तो कर रही है कि पिछले कुछ महीनों में ही एमएसपी के माध्यम से काफी खरीद हुई है, लेकिन हकीकत यह है कि यह खरीद किसानों की कुल फसल का आठ से दस फीसदी ही है. बाकी किसान अभी भी कम कीमत पर अपने अनाज बेचने को मजबूर हैं या राजनीतिक तौर पर मजबूर किए जा रहे हैं. इसलिए सरकार को यह सुनिश्चित करना होगा कि एमएसपी दरों से कम कीमत में किसान की फसलें न खरीदी जाए.

हालांकि, इस मामले में सरकार ने तीन दिसंबर को बैठक बुलाई है. मगर विपक्षी पार्टियों का कहना है कि इससे पहले ही जब किसान उग्र हो रहे थे, तो सरकार को उनकी बातों पर ध्यान देना चाहिए था.

वहीं, दूसरी तरफ किसानों को मनाने की जिम्मेदारी भी केंद्रीय मंत्री राजनाथ सिंह को दी गई है और सूत्रों से मिली जानकारी के मुताबिक, राजनाथ सिंह किसान संगठनों के साथ लगातार संपर्क में भी हैं और बैठक कर रहे हैं.

इधर, भारतीय जनता पार्टी के कई नेता किसान प्रदर्शनों की आलोचना कर रहे हैं. भाजपा सांसद मनोज तिवारी ने किसानों द्वारा पीएम मोदी पर दिए गए बयान पर हमला बोलते हुए कहा कि यह कैसा एजेंडा है, जैसे ही पीएम मोदी ने भारत का भला सोचा तो इन सबके पेट में दर्द हो गया. नागरिक, किसान, जवान सबके साथ भाजपा और प्रधानमंत्री हैं और किसानों की आड़ में पंजाब में खालिस्तान में धंधा चलाया जा रहा है.

पढ़ें- किसानों का बुराड़ी जाने से इनकार, सिंघु सीमा पर हिंसक झड़प

वहीं, केंद्रीय मंत्री बाबुल सुप्रियो ने ट्वीट कर विपक्षियों पर हमला बोला. बाबुल सुप्रियो ने आरोप लगाया कि कृषि सुधार कानूनों का विरोध करने और बिचौलियों का बचाव करने के लिए भ्रांति फैलाई गई कि एमएसपी खत्म हो जाएगा, लेकिन सच यह है कि खरीफ सीजन में अब तक 307.03 लाख मैट्रिक टन धान 57,967.67 करोड़ रुपये के एमएसपी मूल्य पर खरीदा जा चुका है.

उन्होंने यह भी दावा किया कि नए कृषि कानूनों से किसान के जीवन में क्रांतिकारी बदलाव आएंगे. कानूनों में किसी भी भ्रम को दूर करने के लिए सभी किसान यूनियनों को तीन दिसंबर को पुनः चर्चा के लिए बुलाया गया है और वह सभी किसानों से अनुरोध करते हैं कि आंदोलन स्थगित करके चर्चा के लिए आएं.

इस बीच भाजपा के नेताओं को आधिकारिक तौर पर किसानों के ऊपर किसी भी तरह की टिप्पणी करने से बचने की हिदायत दी गई है और किसानों के मामले को लेकर पार्टी भी फूंक-फूंक कर कदम रख रही है, क्योंकि उसे चिंता है कि किसान विरोधी आंदोलन अगर बाकी राज्यों में भी फैलता है, तो पार्टी के लिए एक बड़ी मुसीबत खड़ी हो सकती है.

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