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विशेष : नए कृषि कानूनों से क्या हार की कगार पर हैं किसान ?

केंद्र की ओर से पारित किए गए कृषि कानूनों के खिलाफ आंदोलन पिछले 15 दिनों से जारी रहा है. आंदोलन को लेकर केंद्र सरकार पर दबाव बनाने की कोशिशें की जा रही हैं. किसानों का कहना है कि केंद्र को हर हाल में तीनों कृषि कानून रद्द करने होंगे. दूसरी ओर केंद्र सरकार खुले मन से सभी प्रस्तावों और संशोधनों की बात कह रही है. एक पक्ष की दलील है कि आर्थिक संकट के बीच जारी गतिरोध के कारण किसानों के सामने बड़ा संकट पैदा हो सकता है.

हार की कगार पर हैं किसान
हार की कगार पर हैं किसान
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Published : Dec 11, 2020, 1:32 AM IST

संसद द्वारा भारतीय कृषि सुधार कानून 2020 पारित किए जाने से विवाद खड़ा हो गया है. कोविड -19 महामारी के बीच केंद्र ने तीन कृषि कानून पारित कर दिए – कृषि उपज, व्यापार और विनयन कानून, किसानों के समर्थन मूल्य समझौते और आवश्यक सामग्री (संशोधन) कानून जो बिना किसानों या विपक्षी दलों के सलाह मशविरे के पारित कर दिए गए. इस कारण व्यापक विरोध खड़ा हो गया है. वैसे ही, उद्योग और सेवा क्षेत्र महामारी की चपेट में लड़खड़ाई हालत में हैं.

ऐसे में केवल कृषि क्षेत्र लगातार उत्पादन बढ़ा रहा था जब केंद्र सरकार ने कृषि को पूँजीपतियों और निजी खिलाड़ियों के हाथों सौंपने का तय कर दिया. कुछ राज्य सरकारों ने इन तथाकथित सुधार कानूनों के खिलाफ अपने अलग कानून भी बना दिए जिससे संघीय अवधारणा पर प्रश्न खड़े हो गए हैं.

छोटे और मझले किसानों की रोजी रोटी की कीमत पर सरकार का पूंजीपतियों के निहित हितों की रक्षा करने के निर्णय का समाज के हर तबके से विरोध होने लगा. ये कानून बिना लोक सहमति के या राज्य सरकारों के परामर्श के पारित किए गए. देश के किसानों के पास कृषि उत्पादन के लिए पर्याप्त प्रसंस्करण, भंडारण और विपणन सुविधाएं नहीं हैं. कृषि उत्पाद को बेचना एक जटिल प्रक्रिया है. किसान अपनी उपज का महत्तम मूल्य तय नहीं कर सकता. सरकार द्वारा न्यूनतम समर्थन मूल्य किसानों को उचित मुआवजा नहीं देता.

ऐसे में, सरकार को चाहिए कि मंडियों की हालत सुधारें और न्यूनतम समर्थन मूल्य में इजाफा करें न कि उन सुरक्षात्मक नियमों को हटाए जो बीमार कृषक समाज को सुरक्षा प्रदान करते हैं. कृषि उपज, व्यापार और विनयन कानून कृषि बाजार समितियों पर राज्यों का नियंत्रण कम कर देगा और उनके राजस्व मे कमी लाएगा. इस कारण, मंडियों के विकास के लिए धन की कमी होगी. सरकार के नियंत्रण के अभाव मे बड़े व्यापारी और बहुराष्ट्रीय कंपनी बाजार भाव को आसानी से प्रभावित कर पाएंगे.

प्रतिद्वंद्विता से ही अर्थतन्त्र को फायदा

कृषि उत्पाद बाजार समिति के बाहर किसानों के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य की कोई गारंटी नहीं होगी. किसानों के समर्थन मूल्य समझौते और आवश्यक सामग्री (संशोधन) कानून के अनुसार किसान उपज तैयार होने से पहले भी खरीददार के साथ करार अनुबंध कर सकता है. खटका तो इस बात पर है कि भारत मे कृषि क्षेत्र के 85 प्रतिशत छोटे और सीमांत किसान हैं. इनकी हैसियत नहीं है कि वे ताकतवर बड़ी कंपनी के साथ फायदे का सौदा तय कर सकें. मुक्त बाजार की परिभाषा मे समान प्रतिद्वंद्विता से ही अर्थतन्त्र को फायदा हो सकता है. दो असमान व्यक्तियों के बीच मुकाबले मे मजबूत खिलाड़ी की ही जीत होगी और प्रतिपक्ष एवं बाजार को दबना पड़ेगा.

बाजार को प्रभावित करने वाले कारक

आवश्यक वस्तु अधिनियम में संशोधन के माध्यम से, सरकार ने दाल, अनाज, आलू, प्याज, खाद्य तिलहन और तेलों को आवश्यक वस्तुओं की सूची से हटा दिया है. ऐसी वस्तुओं पर स्टॉकहोल्डिंग सीमा को भी हटा दिया है. मूल्य निर्धारण की विधि पर कोई स्पष्टता नहीं है. निजी व्यापारी और कॉरपोरेट इन खामियों का लाभ उठाकर बाजार को प्रभावित कर सकेंगे. तीन कानूनों को करीब से देखने से केंद्र सरकार के असली इरादों का पता चलता है. यह राज्य-स्तरीय कृषि उपज बाजार समितियों को कमजोर करने का इरादा रखता है और किसानों को व्यापारियों के साथ एक समझौते पर हस्ताक्षर करने के लिए मजबूर करता है.

कृषि कानूनों पर आशंकाएं

कंपनियों को कहीं से भी उपज खरीदने की स्वतंत्रता दी जाती है. कॉरपोरेट्स ने कृषि व्यवसाय और खाद्य प्रसंस्करण उद्योग में एक सुवर्ण अवसर देखा है. सुधारों की आड़ में, केंद्र ने न्यूनतम समर्थन मूल्य को हटा दिया जो बड़े निजी खिलाड़ियों को फायदा पहुंचाती है. राज्य सरकारों को इन नए कानूनों के कार्यान्वयन का अधिकार हो सकता है. इसलिए, केंद्र को नए कृषि कानूनों के बारे में आशंकाओं और चिंताओं को दूर करना चाहिए.

प्रभावी कार्यान्वयन की जरूरत

प्रस्तावित प्रणाली में कृषि समुदाय की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए आवश्यक संशोधन किए जाने चाहिए. केंद्र सरकार को प्रदर्शनकारी किसानों के साथ बातचीत करनी चाहिए. स्वामीनाथन समिति की रिपोर्ट के अनुसार, सरकार को किसानों को फसल की उत्पादन लागत की तुलना में 50 प्रतिशत अधिक समर्थन मूल्य देना होगा. फसलों का अनुबंध मूल्य सरकार द्वारा घोषित समर्थन मूल्य से कम नहीं होना चाहिए. केंद्र को इन समझौतों में तीसरे पक्ष के रूप में कार्य करना चाहिए और किसानों की मांगों का प्रभावी कार्यान्वयन सुनिश्चित करना चाहिए. कृषि विकास के लिए, केंद्र को राज्य सरकारों के साथ राष्ट्रीय कृषि परिषद की स्थापना करनी चाहिए.

खाद्य स्टॉक बफर स्टॉक योजना

निजी व्यापारियों और कॉर्पोरेट खिलाड़ियों को बाजार का पूर्ण एकाधिकार मानने से रोकने के लिए कृषि उपज विपणन, स्टॉक निगरानी और नियंत्रण के लिए एक नियामक समिति की स्थापना की जानी चाहिए. सरकार को पारदर्शिता सुनिश्चित करनी चाहिए और कॉरपोरेट्स द्वारा स्टॉक की गई कृषि उपज पर नजर रखनी चाहिए. खाद्य स्टॉक बफर स्टॉक योजना के अनुसार होना चाहिए. आवश्यक वस्तुओं की कीमतों में वृद्धि की गणना करने की विधि में स्पष्टता होनी चाहिए. सरकार को कृषि विपणन सुविधाओं में सुधार करना चाहिए और देश के कृषि परिदृश्य को प्रगति पर वापस लाने के लिए किसानों के हितों की रक्षा करनी चाहिए.

संसद द्वारा भारतीय कृषि सुधार कानून 2020 पारित किए जाने से विवाद खड़ा हो गया है. कोविड -19 महामारी के बीच केंद्र ने तीन कृषि कानून पारित कर दिए – कृषि उपज, व्यापार और विनयन कानून, किसानों के समर्थन मूल्य समझौते और आवश्यक सामग्री (संशोधन) कानून जो बिना किसानों या विपक्षी दलों के सलाह मशविरे के पारित कर दिए गए. इस कारण व्यापक विरोध खड़ा हो गया है. वैसे ही, उद्योग और सेवा क्षेत्र महामारी की चपेट में लड़खड़ाई हालत में हैं.

ऐसे में केवल कृषि क्षेत्र लगातार उत्पादन बढ़ा रहा था जब केंद्र सरकार ने कृषि को पूँजीपतियों और निजी खिलाड़ियों के हाथों सौंपने का तय कर दिया. कुछ राज्य सरकारों ने इन तथाकथित सुधार कानूनों के खिलाफ अपने अलग कानून भी बना दिए जिससे संघीय अवधारणा पर प्रश्न खड़े हो गए हैं.

छोटे और मझले किसानों की रोजी रोटी की कीमत पर सरकार का पूंजीपतियों के निहित हितों की रक्षा करने के निर्णय का समाज के हर तबके से विरोध होने लगा. ये कानून बिना लोक सहमति के या राज्य सरकारों के परामर्श के पारित किए गए. देश के किसानों के पास कृषि उत्पादन के लिए पर्याप्त प्रसंस्करण, भंडारण और विपणन सुविधाएं नहीं हैं. कृषि उत्पाद को बेचना एक जटिल प्रक्रिया है. किसान अपनी उपज का महत्तम मूल्य तय नहीं कर सकता. सरकार द्वारा न्यूनतम समर्थन मूल्य किसानों को उचित मुआवजा नहीं देता.

ऐसे में, सरकार को चाहिए कि मंडियों की हालत सुधारें और न्यूनतम समर्थन मूल्य में इजाफा करें न कि उन सुरक्षात्मक नियमों को हटाए जो बीमार कृषक समाज को सुरक्षा प्रदान करते हैं. कृषि उपज, व्यापार और विनयन कानून कृषि बाजार समितियों पर राज्यों का नियंत्रण कम कर देगा और उनके राजस्व मे कमी लाएगा. इस कारण, मंडियों के विकास के लिए धन की कमी होगी. सरकार के नियंत्रण के अभाव मे बड़े व्यापारी और बहुराष्ट्रीय कंपनी बाजार भाव को आसानी से प्रभावित कर पाएंगे.

प्रतिद्वंद्विता से ही अर्थतन्त्र को फायदा

कृषि उत्पाद बाजार समिति के बाहर किसानों के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य की कोई गारंटी नहीं होगी. किसानों के समर्थन मूल्य समझौते और आवश्यक सामग्री (संशोधन) कानून के अनुसार किसान उपज तैयार होने से पहले भी खरीददार के साथ करार अनुबंध कर सकता है. खटका तो इस बात पर है कि भारत मे कृषि क्षेत्र के 85 प्रतिशत छोटे और सीमांत किसान हैं. इनकी हैसियत नहीं है कि वे ताकतवर बड़ी कंपनी के साथ फायदे का सौदा तय कर सकें. मुक्त बाजार की परिभाषा मे समान प्रतिद्वंद्विता से ही अर्थतन्त्र को फायदा हो सकता है. दो असमान व्यक्तियों के बीच मुकाबले मे मजबूत खिलाड़ी की ही जीत होगी और प्रतिपक्ष एवं बाजार को दबना पड़ेगा.

बाजार को प्रभावित करने वाले कारक

आवश्यक वस्तु अधिनियम में संशोधन के माध्यम से, सरकार ने दाल, अनाज, आलू, प्याज, खाद्य तिलहन और तेलों को आवश्यक वस्तुओं की सूची से हटा दिया है. ऐसी वस्तुओं पर स्टॉकहोल्डिंग सीमा को भी हटा दिया है. मूल्य निर्धारण की विधि पर कोई स्पष्टता नहीं है. निजी व्यापारी और कॉरपोरेट इन खामियों का लाभ उठाकर बाजार को प्रभावित कर सकेंगे. तीन कानूनों को करीब से देखने से केंद्र सरकार के असली इरादों का पता चलता है. यह राज्य-स्तरीय कृषि उपज बाजार समितियों को कमजोर करने का इरादा रखता है और किसानों को व्यापारियों के साथ एक समझौते पर हस्ताक्षर करने के लिए मजबूर करता है.

कृषि कानूनों पर आशंकाएं

कंपनियों को कहीं से भी उपज खरीदने की स्वतंत्रता दी जाती है. कॉरपोरेट्स ने कृषि व्यवसाय और खाद्य प्रसंस्करण उद्योग में एक सुवर्ण अवसर देखा है. सुधारों की आड़ में, केंद्र ने न्यूनतम समर्थन मूल्य को हटा दिया जो बड़े निजी खिलाड़ियों को फायदा पहुंचाती है. राज्य सरकारों को इन नए कानूनों के कार्यान्वयन का अधिकार हो सकता है. इसलिए, केंद्र को नए कृषि कानूनों के बारे में आशंकाओं और चिंताओं को दूर करना चाहिए.

प्रभावी कार्यान्वयन की जरूरत

प्रस्तावित प्रणाली में कृषि समुदाय की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए आवश्यक संशोधन किए जाने चाहिए. केंद्र सरकार को प्रदर्शनकारी किसानों के साथ बातचीत करनी चाहिए. स्वामीनाथन समिति की रिपोर्ट के अनुसार, सरकार को किसानों को फसल की उत्पादन लागत की तुलना में 50 प्रतिशत अधिक समर्थन मूल्य देना होगा. फसलों का अनुबंध मूल्य सरकार द्वारा घोषित समर्थन मूल्य से कम नहीं होना चाहिए. केंद्र को इन समझौतों में तीसरे पक्ष के रूप में कार्य करना चाहिए और किसानों की मांगों का प्रभावी कार्यान्वयन सुनिश्चित करना चाहिए. कृषि विकास के लिए, केंद्र को राज्य सरकारों के साथ राष्ट्रीय कृषि परिषद की स्थापना करनी चाहिए.

खाद्य स्टॉक बफर स्टॉक योजना

निजी व्यापारियों और कॉर्पोरेट खिलाड़ियों को बाजार का पूर्ण एकाधिकार मानने से रोकने के लिए कृषि उपज विपणन, स्टॉक निगरानी और नियंत्रण के लिए एक नियामक समिति की स्थापना की जानी चाहिए. सरकार को पारदर्शिता सुनिश्चित करनी चाहिए और कॉरपोरेट्स द्वारा स्टॉक की गई कृषि उपज पर नजर रखनी चाहिए. खाद्य स्टॉक बफर स्टॉक योजना के अनुसार होना चाहिए. आवश्यक वस्तुओं की कीमतों में वृद्धि की गणना करने की विधि में स्पष्टता होनी चाहिए. सरकार को कृषि विपणन सुविधाओं में सुधार करना चाहिए और देश के कृषि परिदृश्य को प्रगति पर वापस लाने के लिए किसानों के हितों की रक्षा करनी चाहिए.

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