हैदराबाद: बुधवार को गाजीपुर बॉर्डर पर किसानों और भाजपा कार्यर्ताओं के बीच झड़प का मामला सामने आया है. जानकारी के मुताबिक गाजीपुर बॉर्डर पर बीजेपी कार्यकर्ता पार्टी संगठन से जुड़े एक नेता के स्वागत में जुटे थे. इसी दौरान वहां मौजूद किसानों और बीजेपी कार्यकर्ताओं में झड़प हो गई. इस दौरान हंगामा और पथराव भी हुआ, इस दौरान वहां मौजूद कई गाड़ियां क्षतिग्रस्त हुई.
इस पूरे मामले में बीजेपी कार्यकर्ता और किसान नेता एक दूसरे पर आरोप लगा रहे हैं. बीजेपी कार्यकर्ताओं के मुताबिक किसानों ने उनके साथ मारपीट की जबकि किसान नेता इसके पीछे बीजेपी का षडयंत्र बता रहे हैं. कुल मिलाकर कहानी वही है जो पिछले 7 महीने से चली आ रही है. जहां एक सिरे पर कृषि कानूनों का विरोध कर रहे किसान हैं और दूसरी तरफ कानून बनाने वाली सरकार
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7 महीने से चल रहा किसानों का हल्ला बोल
केंद्र सरकार के तीन कृषि कानूनों के विरोध में देश की राजधानी दिल्ली का घेराव कर रहे किसानों के प्रदर्शन को 7 महीने से ज्यादा का वक्त हो चुका है. केंद्र सरकार के कृषि कानूनों के खिलाफ किसानों ने बीते साल 26 नवंबर से दिल्ली चलो मार्च के तहत अपना प्रदर्शन शुरु किया था. दिल्ली का घेराव कर रहे इन किसानों के प्रदर्शन को बीती 26 जून के दिन 7 महीने हो चुके हैं. ये किसान दिल्ली के टीकरी, सिंघू और गाजीपुर बॉर्डर पर डटे हुए हैं.
शुरुआत में इस प्रदर्शन में सबसे ज्यादा पंजाब के किसान शामिल हुए लेकिन धीरे-धीरे इसमें यूपी से लेकर उत्तराखंड और हरियाणा समेत कुछ अन्य राज्यों के किसान भी शामिल हो गए. किसानों के इस आंदोलन को शुरूआत में भारी समर्थन भी मिला. देश के अलावा दुनिया के अन्य देशों में रह रहे भारतीय भी इन किसानों के समर्थन में उतरे. सोशल मीडिया से लेकर इलेक्ट्रॉनिक और प्रिंट मीडिया तक में किसानों का हल्ला बोल सुर्खियां बटोरता रहा.
सरकार और किसानों के बीच नहीं बनी बात
इस पूरे मसले पर किसान और सरकार के बीच कई दौर की बातचीत भी हो चुकी है लेकिन अब तक बात नहीं बन पाई है. किसान नेताओं के प्रतिनिधिमंडल और सरकार के बीच 11 मुलाकातें हुईं लेकिन नतीजा ढाक के तीन पात ही रहा. इन बैठकों में केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर भी शामिल हुए लेकिन किसान और सरकार अपने-अपने पाले में डटे रहे. किसान कानून वापस लेने की मांग पर अड़े रहे और सरकार अपने फैसले पर कायम रही.
तीनों कृषि कानूनों के संसद से पास होने के बाद से ही किसान इनके विरोध में उतर आए थे. 27 सितंबर को राष्ट्रपति की मंजूरी के बाद किसान सड़कों पर उतर आए थे. जिसके बाद 14 अक्टूबर 2020 को पहली और 22 जनवरी 2021 को आखिरी बैठक किसानों और सरका के बीच हुई लेकिन इस दौरान हुई 11 बैठकों में कोई बात नहीं बनी.
26 जनवरी के बाद सब बदल गया
26 जनवरी 2021 को जब देश गणतंत्र दिवस का जश्न मना रहा था तो देश की राजधानी दिल्ली में गणतंत्र को ठेंगा दिखाया जा रहा था. दरअसल किसानों ने गणतंत्र दिवस के दिन दिल्ली में टैक्टर रैली की अनुमति मांगी थी जिसे दिल्ली पुलिस ने मान भी लिया था. ट्रैक्टर रैली की आड़ में प्रदर्शनकारियों ने दिल्ली में जो तांडव मचाया उसे पूरी दुनिया ने देखा.
ट्रैक्टर सवाल प्रदर्शनकारियों ने पुलिस बैरिकेडिंग तोड़ दी और लाल किले की प्राचीर तक पहुंच गए. जहां प्रदर्शनकारियों ने देश के राष्ट्रीय ध्वज को हटाकर एक धार्मिक झंडा फहरा दिया. इस उपद्रव के दौरान दिल्ली पुलिस के कई जवान भी घायल हुए. इस पूरे मामले पर सियासत भी जमकर हुई लेकिन नुकसान पूरी तरह से किसान आंदोलन को हुआ. क्योंकि इससे पहले आंदोलन को लोगों का समर्थन भी मिल रहा था और सरकार भी एक तरह से बैकफुट पर थी लेकिन 26 जनवरी के बाद किसानों ने जनसमर्थन भी खोया और इसके बाद सरकार ने किसानों से बातचीत की पहल भी नहीं की.
सियासत जारी है क्योंकि चुनाव आने वाले हैं
इस पूरे मामले पर सियासत भी जमकर हुई और अब भी जारी है. कांग्रेस समेत तमाम विपक्षी दलों ने किसानों का समर्थन किया. एनडीए में शामिल पार्टियों को छोड़ तमाम राष्ट्रीय और क्षेत्रीय दलों ने किसानों का समर्थन किया.
क्या हैं वो तीन कृषि कानून ?
1) कृषक उपज व्यापार एवं वाणिज्य (संवर्धन एवं सुविधा) विधेयक, 2020- इसके तहत किसान कृषि उपज को सरकारी मंडियों के बाहर भी बेच सकते हैं. सरकार के मुताबिक किसान किसी निजी खरीददार को भी ऊंचे दाम पर अपनी फसल बेच सकते हैं. सरकार के मुताबिक इससे किसानों की उपज बेचने के विकल्प बढ़ेंगे
2) कृषि (सशक्तिकरण एवं संरक्षण) मूल्य आश्वासन अनुबंध एवं कृषि सेवाएं विधेयक, 2020- ये कानून अनुबंध खेती या कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग की इजाजत देता है. इस कानून के संदर्भ में सरकार का कहना है कि वह किसानों और निजी कंपनियों के बीच में समझौते वाली खेती का रास्ता खोल रही है.
3) आवश्यक वस्तु (संशोधन) विधेयक, 2020- इसके तहत अनाज, दलहन, तिलहन, खाद्य तेल, प्याज और आलू को आवश्यक वस्तुओं की सूची से हटा दिया गया. इनकी जमाखोरी और कालाबाजारी को सीमित करने और इसे एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाने जैसे प्रतिबंध हटा दिए गए हैं.
किसान बनाम सरकार
किसान इन तीनों कानूनों को वापस लेने की मांग कर रहे हैं. किसानों के मुताबिक इससे किसान बंधुआ मजदूर हो जाएगा और कृषि पूंजीपतियों के हाथ चली जाएगी. किसानों के मुताबिक ये उनका हित नहीं है बल्कि निजीकरण को प्रोत्साहन देने वाले हैं. एमएसपी को लेकर भी सरकार से लिखित आश्वासन चाहते हैं.
सरकार के मुताबिक ये कृषि कानून किसानों के लिए हितकारी है और इससे किसानों की आय बढ़ेगी. सरकार ने साफ कर दिया है कि वो कृषि कानून वापस नहीं लेगी. हालांकि सरकार साफ कर चुकी है कि एमएसपी खत्म नहीं होगी लेकिन इस पर कानून या लिखित में देने की किसानों की मांग अब भी वहीं खड़ी है. कुल मिलाकर किसानों का आंदोलन लगातार जारी है लेकिन इसकी धार बीते वक्त में जरूर कम हुई है खासकर 26 जनवरी के बाद. ऐसे में इस आंदोलन का भविष्य क्या होगा ये भविष्य की गर्त में छिपा है.
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