हैदराबाद: कांग्रेस के सीनियर लीडर गुलाम नबी आजाद की राज्यसभा से विदाई हो चुकी है. राज्यसभा से उनका फेयरवेल अभी तक चर्चा में बना हुआ है. आजाद ने राज्यसभा में विदाई भाषण के दौरान कांग्रेस पर कम और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर अधिक ध्यान केंद्रित किया. इसके बदले में प्रधानमंत्री मोदी ने भी रोते हुए उनकी खूब तारीफ की.
राज्यसभा में पीएम मोदी ने अपने चिर-परिचित भावनात्मक संबोधन के जरिए दूसरे वक्ताओं के लिए एक एजेंडा सेट कर दिया. उन्होंने आजाद की उस भूमिका का उल्लेख किया, जब उन्होंने जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री पद पर रहते हुए गुजरात के पर्यटकों की मदद की थी. पर्यटकों का दल राजनीति और हिंसा के बीच फंस गया था. वैसे, विदाई सिर्फ आजाद को दी जा रही थी, ऐसा नहीं था. उनके अलावा नजीर अहमद, फयाज अहमद और शमशेर सिंह का भी कार्यकाल खत्म हो रहा था, लेकिन राज्यसभा में मोदी के भाषण का पूरा केंद्र आजाद बटोर ले गए.
राज्यसभा में आजाद की प्रशंसा करते-करते पीएम मोदी भावुक हो गए थे. पीएम ने इस दौरान अनुच्छेद 370 का जिक्र नहीं किया. बिना इसकी चर्चा किए ही उन्होंने आजाद को उनके कार्यकाल के दौरान लिए गए ऐतिहासिक निर्णय का भागीदार बताया. आजाद ने भी उसी लय में जवाब दिया. उन्होंने भी अनुच्छेद 370 का जिक्र नहीं किया या फिर कोई भी ऐसा मुद्दा नहीं उठाया, जिससे भाजपा असहज हो जाए. फेयरवेल का राजनीतिक संदेश जो भी देना हो, वह दिया जा चुका है. अब कांग्रेस के जी-23 गुट के नेताओं ने पार्टी में बड़े राजनीतिक सुधार की मांग की है. आजाद भी इन नेताओं में से एक हैं. इन नेताओं ने चिट्ठी लिखकर सोनिया गांधी से पार्टी में सुधार की मांग की थी.
सर्विदित है कि राजनीति में कुछ भी अचानक नहीं होता. सबकुछ नियोजित और एक रणनीति के तहत किया जाता है. रविवार को जम्मू में दिया गया आजाद का भाषण मोदी और उनकी विनम्रता पर केंद्रित था, बजाए इसके कि कांग्रेस को कैसे मजबूत किया जाए. इसका अर्थ है कि कुछ खिचड़ी पक रही है. अगर ऐसा है, तो दोनों नेताओं को किस तरह का फायदा हो सकता है. हालांकि, हमें यह याद रखना होगा कि आजाद ने विदाई भाषण के दौरान न तो कांग्रेस और न ही गांधी परिवार से अपने लगाव को छिपाया.
ऐसे में यह जानना बहुत ही दिलचस्प होगा कि मोदी और आजाद के बीच उम्मीदों का मिलन केंद्र क्या हो सकता है. पीएम मोदी आजाद से किस तरह फायदा उठा सकते हैं. आजाद विपक्षी दल के मुस्लिम चेहरे हैं. निष्पक्ष भी माने जाते हैं. उनकी छवि एक राष्ट्रवादी और जम्मू कश्मीर के एक निवासी की है. अब वह जी-23 गुट के नेता हैं. ऊपर से मोदी ने जब उन्हें पसंद करना शुरू कर दिया, तो वह और भी खास बन गए हैं.
जी-23 का नेतृत्व आजाद के पास है. एक निष्पक्ष कैंप की तरह यह गुट उभर रहा है. हालांकि, अब तक अलग इकाई बनाने का दावा नहीं किया है. उनके नेतृत्व में ही जी-23 ने पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव में अपनी भूमिका निभाने का ऐलान भी कर दिया.
जम्मू में उनकी रैली चुनाव आयोग द्वारा चुनाव तारीखों के ऐलान करने के ठीक एक दिन बाद आयोजित की गई. इस बीच प्रियंका गांधी असम दौरे पर हैं. जी-23 का कोई भी नेता उनके साथ नहीं है. प्रियंका पहली बार असम के राजनीतिक दौरे पर हैं.
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भाजपा जम्मू-कश्मीर में अपने राजनीतिक नेताओं के जबरदस्त दबाव में है. वे लोग जल्द से जल्द राज्य बहाली की मांग कर रहे हैं. ऐसे समय में आजाद और उनका शक्ति प्रदर्शन बहुत मायने रखता है. वह कैसी राजनीतिक चाल चलते हैं, खासकर राज्य बहाली को लेकर, यह देखने वाली बात होगी. राहुल गांधी बिना किसी विरोध के पार्टी अध्यक्ष पद पर काबिज हो जाएं, ऐसा लग नहीं रहा है. संभव है ऐसा न हो, तो पार्टी टूट भी सकती है. वैसी स्थिति में आजाद और मोदी के बीच नजीदीकी रिश्ते बहुत काम के होंगे. जिस तरीके से आजाद बार-बार मोदी का उल्लेख कर रहे हैं, जाहिर है यह विकल्प हमेशा उनके पास रहेगा.