मसूरी: अपने 89वें जन्मदिन पर रस्किन बॉन्ड आज अपने प्रशंसकों को उनके द्वारा हस्ताक्षर की गई किताबें भेंट करेंगे. रस्किन बॉन्ड के जन्म दिवस को लेकर मसूरी बडोनी चौक पर स्थित कैंब्रिज बुक डिपो में विशेष कार्यक्रम आयोजित किया जाएगा. कैंब्रिज बुक डिपो के स्वामी सुनील अरोड़ा ने बताया कि रस्किन बॉन्ड के जन्मदिवस को लेकर लोगों में काफी उत्साह है. अभी से देश-विदेश से लोग मसूरी आने लग गए हैं.
आज है रस्किन बॉन्ड का जन्मदिन: सुनील अरोड़ा ने बताया कि इस बार रस्किन बॉन्ड अपने प्रशंसकों के लिए प्रकृति पर आधारित किताब 'ऑल टाइम फेवरेट नेचर स्टोरीज' का विमोचन करेंगे. उन्होंने बताया कि रस्किन बॉन्ड शुक्रवार को दोपहर 3.30 बजे दुकान पर पहुंचेंगे. 4 बजे रस्किन बॉन्ड के जन्मदिन की खुशी में केक काटा जाएगा. उसके बाद वह अपने प्रशंसकों से मिलेंगे. अपनी लिखित पुस्तकों को हस्ताक्षर करके अपने प्रशंसकों को देंगे.
तीन साल बाद प्रशंसकों से मिलेंगे रस्किन बॉन्ड: मसूरी कैंब्रिज बुक डिपो के मालिक सुनील अरोड़ा ने बताया कि इस बार रस्किन बॉन्ड के प्रशंसकों के लिए उन्होंने विशेष प्रकार का बैग और बैच तैयार कराये हैं. ये उनके प्रशंसकों को उनकी ओर से भेंट स्वरूप दिये जायेंगे. बता दें कि रस्किन बॉन्ड कोरोना काल में घर पर ही रहे थे. वह इन तीन सालों में लगातार अपनी कलम से अपने प्रशंसकों के लिये किताब लिखते रहे.
ऐसा रहा है रस्किन बॉन्ड का इतिहास: ब्रिटिश आर्मी में भर्ती रस्किन के दादा 1880 में भारत आए थे. उन्होंने एक भारतीय महिला से शादी की थी. उससे बॉन्ड के पिता जन्मे. उन्होंने एक एंग्लो-इंडियन से शादी की. 19 मई 1934 को रस्किन बॉन्ड का जन्म हुआ. हालांकि यह परिवार बहुत हंसी-खुशी वाला नहीं रहा. बॉन्ड के माता-पिता का तलाक हो गया. बॉन्ड के बचपन में ही उनके पिता की मृत्यु हो गई थी. 17 साल की उम्र में रस्किन बॉन्ड इंग्लैंड भी गए. लेकिन जल्द ही भारत लौट आए. इसके बाद तो वह भारतीयता के रंग-ढंग में ऐसे रंगे कि यहां का मौसम-वादियां, घटाएं, धूप, नदी, पर्वत और छोटे कीड़े भी उनकी कहानियों का हिस्सा बनते चले गए.
रस्किन बॉन्ड ने मसूरी को बनाया कर्मक्षेत्र: रस्किन बॉन्ड वर्ष 1964 में पहली बार मसूरी आए थे. पहाड़ों की रानी उन्हें इतनी पसंद आई कि वह मसूरी के ही बनकर रह गए. यहां रहकर उन्होंने कई उपन्यास लिखे. इनमें द ब्लू अंब्रेला, एक था रस्टी कहानी पर टीवी शो बना था. उनकी किताब ‘सुजैन सेवेन हसबैंड’ पर फिल्म ‘सात खून माफ बनी थी’. रस्किन बॉन्ड का पहला उपन्यास द रूम ऑन द रूफ को वर्ष 1957 में जॉन लेवलिन राइस पुरस्कार मिला था. उन्हें साहित्य अकादमी पुरस्कार भी मिल चुका है. रस्किन बच्चों के लिए सैकड़ों कथाएं, निबंध और उपन्यास लिख चुके हैं. वर्ष 1999 में उन्हें पद्मश्री और 2014 में पद्मभूषण मिल चुका है.
मसूरी और रस्किन बॉन्ड हैं एक दूसरे के पूरक: अपने मौसम और हरियाली के अलावा देहरादून और मसूरी की एक और विशेष पहचान है, वो हैं मशहूर अंग्रेजी लेखक रस्किन बॉन्ड. दूसरे शब्दों में कहें तो रस्किन बॉन्ड का साहित्य भी बहुत हद तक दोनों पहाड़ी शहरों के विश्व प्रसिद्ध ख्याति का परिचायक है. उन्होंने द थीफ, व्हेन डार्कनेस फॉल्स, अ फेस आन द डार्क, द काइट मेकर, द टनल, अ फ्लाइट्स ऑफ पिजन, द वुमन आन प्लेटफार्म, मोस्ट ब्यूटीफुल, डेल्ही इज नॉट फार, एंग्री रिवर जैसी पांच सौ से भी अधिक कहानियां, उपन्यास, लेख और कुछ कविताओं की रचना की. कथावस्तु बहुत सामान्य और सरल होने के बावजूद भी उनकी हर रचना दिल पर एक खास प्रभाव छोड़ जाने में कामयाब रहती है.
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बॉन्ड को हल्की बारिश में जलेबी खाना है पसंद: बॉन्ड को दो चीजें बेहद पसंद हैं. एक तो हल्की-हल्की पहाड़ी बारिश और इस बारिश में गर्मा-गर्म जलेबियां मिल जाएं तो कहना ही क्या. दो दिन पहले ही उन्होंने इंस्टाग्राम पर एक तस्वीर साझा कि जिसमें वह जलेबी खा रहे हैं और मसूरी में हो रही है बारिश का आनंद ले रहे हैं.