पटना : फैशन के दौर में सब कुछ बदल रहा है. महिलाएं तो खास कर डिजाइन को लेकर काफी सजग हैं. हैंडलूम से बने कपड़े धीरे-धीरे बाजारों से गायब होते जा रहे हैं. मशीनों से झटपट बने आउटफिट्स की डिमांड काफी बढ़ गई है. इसके बावजूद अब भी कुछ लोग अपनी कला के माध्यम से बिहार की संस्कृति (Madhubani Art) से सभी को अवगत करा रहे हैं. साथ ही इनके बनाए गए मधुबनी वर्क (Unique Embroidery) लोगों को खूब भा रहे हैं.
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त्योहारों के खास मौकों पर डिजाइनर कपड़ों की मांग काफी बढ़ जाती है. ट्रेंडिंग कपड़ों की ओर सभी आकर्षित होते हैं, लेकिन आज भी कुछ ऐसे ब्रांड और कारीगर मौजूद हैं जो मशीनों से ज्यादा हाथों से किए गए काम को तवज्जों देते हैं.
कारीगर मो. चांद का कहना है कि मधुबनी वर्क सूट, शॉल, ब्लाउज सभी में करा सकते हैं. भले यहां पर मजदूरी थोड़ी सी कम मिल रही है लेकिन अपने घर परिवार के साथ में रह रहे हैं. इसलिए यहां अच्छा लग रहा है. बाहर जाना कोई नहीं चाहता है मजबूरी में जाना पड़ता है. कोरोना काल के पहले मैं हैदराबाद में इसी तरह के कपड़ों पर कढ़ाई किया करता था.
कोरोना काल की दूसरी लहर में काफी लोग बिहार लौटे थे. इन लोगों ने घर वापसी तो कर ली लेकिन इनके सामने रोजी रोजगार की समस्या थी. ऐसे में राजधानी पटना के गौरियाटोली में एक छोटे से कमरे में लगभग 6 कलाकारों ने मधुबनी वर्क की शुरुआत की. इसके माध्यम से आज इन सभी के पास रोजगार है, जिससे इनका और इनके परिवार का भरण पोषण हो रहा है.
ये सभी कारीगर पहले दिल्ली, मुंबई, हैदराबाद सहित बड़े शहरों में काम करते थे. फिर कोरोना की दूसरी लहर के बीच सभी कलाकारों को वापस बिहार लौटना पड़ा था. घर लौट तो गए लेकिन कमाने खाने की परेशानी थी. तब इनलोगों ने अपने काम को एक नई पहचान देने का सोचा. कलाकारी में माहिर इन लोगों ने एक छोटे से कमरे से इसकी शुरुआत की थी. पिछले 6 माह से ये कारीगर कपड़ों पर मधुबनी वर्क को अपने हाथों से उकेरते हैं.
कारीगर मो. गुलाम का कहना है कि पहले दिल्ली में काम करता था और मुंबई से इस काम को मैंने सीखा है. रोजी रोटी चल रहा है. अगर यहां रोजी रोटी चल रहा है तो बाहर जाने से क्या फायदा. यहां सब चीज की कलाकारी होती है. मैटेरियल, धागे हर चीज का काम होता है.
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शुरुआती दौर में इन्हें अपने द्वारा बनाए गए इन कपड़ों को बेचने में काफी दिक्कतें आती थी. इसके पीछे का सबसे बड़ा कारण बाजार का न होना था. इसके साथ ही लोगों को कारीगर और डिजाइनर के बीच एक बहुत बड़ा फर्क दिखता है. डिजाइनर द्वारा कपड़ों का बड़ा मार्केट आपको कहीं भी मिल जाएगा. लेकिन कारीगरों की कशीदाकारी को बाजार मिलना उतना आसान नहीं होता है. फिर भी इन लोगों ने हिम्मत नहीं हारी. आज इनके बनाए गए इन डिजाइनों की मांग काफी बढ़ गई है. ये बात सच है कि इसे खरीदनेवाले लोग भी विशेष होते हैं.
अनुप्रिया ने कहा कि मेरी 1000 की टीम है. पटना के साथ ही नालंदा और गया में भी हमारा कारखाना है. बिहार की संस्कृति है मधुबनी वर्क. खादी भी हाथ से बनाया जाता है. ये सब कुछ हमारे कलाकारों द्वारा बनाया जाता है. बस ये लोग शिक्षित नहीं हैं. 15 सालों से हम ये काम कर रहे हैं.
लंबे समय तक संघर्ष करने के बाद अब इन कारीगरों के द्वारा हाथ से बनाए गए कशीदेकारी की डिमांड सिर्फ बिहार में ही नहीं है बल्कि दूसरे राज्यों में भी है. इनके बनाए गए मधुबनी वर्क को दुकानदार खरीद कर ले जाते हैं. जो महिलाओं को खूब भाता है. ब्लाउज, लहंगा, साड़ी दुपट्टा, शाॉल इन तमाम चीजों पर कलाकार मधुबनी वर्क की कढ़ाई करते हैं. कलाकार मधुबनी पेंटिंग से इंस्पायर्ड चित्रों को पहले कलम की मदद से कपड़ों पर बनाते हैं उसके बाद उस चित्र को रंगा या फिर काटा जाता है. मधुबनी आर्ट में पेड़ फूल गाय भगवानों के चित्र खासतौर से बनाए जाते हैं.
बता दें कि बिहार के मिथिला क्षेत्र के प्रसिद्ध देवी देवताओं के पशु पक्षी के साथ-साथ मिथिला से जुड़ी तमाम चीजों को पर्व त्योहारों पर दीवारों पर भी बनाया जाता है. धीरे-धीरे अब लोग इन डिजाइनों को पसंद करने लगे हैं. नतीजतन इसकी मांग बहुत बढ़ गई है. बाजारों में मधुबनी पेंटिंग या मधुबनी वर्क के डिजाइन वाली साड़ी,ब्लाउज, सूट,शॉल आदि बहुत पॉपुलर हो गए हैं.
आज ये सभी कारीगर जिन्होंने अपनी कला से अपनी एक अलग पहचान बना ली है काफी खुश हैं. पटना में आधा दर्जन कारीगरों को रोजगार मिला है. कीमत कलाकारी पर ही निर्भर करती है. एक कलाकारी की कीमत 500 से लेकर 5000 तक होती है.