बेंगलुरू : पारिवारिक राजनीति का विरोध कर राष्ट्रीय राजनीति में सफल रही भाजपा के लिए कर्नाटक में पारिवारिक राजनीति पर अंकुश लगाना एक बड़ी चुनौती बन गई है. पूर्व सीएम येदियुरप्पा और उनके बेटे विजयेंद्र के प्रति रवैये के कारण भाजपा आलाकमान को कई कठिन चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है. प्रदेश में बीजेपी के 50 से ज्यादा सांसद, विधायक और विधान परिषद के सदस्य पारिवारिक राजनीतिक पृष्ठभूमि वाले हैं. यदि अगले विधानसभा चुनाव में पारिवारिक पृष्ठभूमि वाले लोगों को टिकट नहीं दिया जाता है, तो यह निश्चित रूप से भाजपा के लिए भी नुकसान देय होगा.
राज्य में लोकसभा सदस्यों में तुमकुर सांसद जीसी बसवराज के पुत्र ज्योति गणेश विधायक हैं. शिमोगा से सांसद बी वाई राघवेंद्र के पिता येदियुरप्पा, चिक्कोडी से सांसद अन्नासाहेब की पत्नी शशिकला जोला मंत्री हैं. कलबुर्गी से सांसद उमेश जाधव के बेटे अविनाश जाधव विधायक हैं, जबकि चामराजनगर से सांसद वी श्रीनिवास प्रसाद के दामाद हर्षवर्धन विधायक हैं. बेंगलुरु दक्षिण के सांसद तेजस्वी सूर्या के चाचा रवि सुब्रमण्या विधायक हैं. बेल्लारी के सांसद देवेंद्रप्पा पूर्व मंत्री रमेश जरकीहोली के करीबी रिश्तेदार हैं. रायचूर के पूर्व सांसद सना फकीरप्पा मंत्री श्रीरामुलु के करीबी रिश्तेदार हैं.
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I am giving up my Assembly constituency for my son BY Vijayendra. I request the voters of Shikaripura to make sure that he wins with a huge margin. I will not contest the next election: Karnataka BJP leader and former CM BS Yediyurappa pic.twitter.com/dalPnenzSC
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— ANI (@ANI) July 22, 2022
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भाजपा विधायकों में पूर्व मंत्री बालचंद्र जराकीहोली के भाई रमेश जरकीहोली विधायक हैं. करुणाकर रेड्डी के भाई सोमशेखर रेड्डी विधायक हैं. उद्योग मंत्री मुरुगेशा निरानी के भाई हनुमंथप्पा निरानी और पूर्व सीएम जगदीश शेट्टार के भाई प्रदीप शेट्टार विधान परिषद के सदस्य हैं. मुख्यमंत्री बसवराज बोम्मई भी पारिवारिक राजनीति से ही निकले हैं. बोम्मई के पिता एसआर बोम्मई मुख्यमंत्री और केंद्रीय मंत्री रह चुके हैं. सोराबा विधायक कुमार बंगारप्पा के पिता एस बंगारप्पा भी पूर्व मुख्यमंत्री और भाजपा सांसद रह चुके हैं. बीजेपी में ज्यादातर विधायक और सांसद किसी न किसी तरह से पारिवारिक राजनीति की पृष्ठभूमि रखते हैं. फिलहाल बीजेपी के ज्यादातर विधायक और सांसद आगामी चुनाव में अपने बच्चों, भाइयों और करीबी रिश्तेदारों के लिए पार्टी टिकट की उम्मीद कर रहे हैं. कुछ ने बच्चों की बेहतर राजनीति के लिए भाजपा पार्टी में शामिल होने का फैसला किया है. मंत्री एमटीबी नागराज अपने बेटे के भविष्य के लिए भाजपा में शामिल हुए.
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पूर्व सीएम येदियुरप्पा अपने बेटे विजयेंद्र को, पूर्व मंत्री केएस ईश्वरप्पा को उनके बेटे कांताराजू, पूर्व सीएम जगदीश शेट्टार को उनकी बहू या बेटे, सांसद बीएन बचेगौड़ा को उनके बेटे, पूर्व सांसद प्रभाकर कोरे को उनके बेटे अमित कोरे, मंत्री उमेश को कट्टी ने अपने भाई रमेश कट्टी, मंत्री गोविंदा करजोल और उनके दो बच्चे आगामी चुनावों में भाजपा से टिकट मिलने की उम्मीद कर रहे हैं. जबकि प्रधानमंत्री मोदी और भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव बी. एल संतोष पारिवारिक राजनीति के खिलाफ हैं. पारिवारिक राजनीति को मान्यता दिए बिना पार्टी को संगठित करने और उसे सत्ता में लाने की उम्मीद के कारण फिलहाल पारिवारिक राजनीति की पृष्ठभूमि से आने वाले राजनेताओं को ज्यादा प्राथमिकता नहीं दी जा रही है.
यही वजह है कि बीजेपी आलाकमान ने पिछले विधानसभा चुनाव में वरुणा में पूर्व सीएम येदियुरप्पा के बेटे बी वाई विजयेंद्र को टिकट देने से इनकार कर दिया था. ऐसे भी उदाहरण हैं जहां अनंतकुमार की पत्नी तेजस्विनी अनंतकुमार को लोकसभा चुनाव में टिकट से वंचित कर दिया गया था. हालांकि, जब बेलगावी लोकसभा क्षेत्र के उपचुनाव में केंद्रीय मंत्री सुरेश अंगड़ी, जो बेलगावी के सांसद थे, ने कोविड के कारण दम तोड़ दिया, तो सुरेश अंगड़ी की पत्नी मंगला अंगड़ी ने बड़ी जीत हासिल की. कई लोगों की राय थी कि अगर मंगला अंगड़ी के अलावा किसी और को टिकट दिया होता तो बीजेपी हार जाती.
पार्टी के इस फैसले से राज्य के कई बीजेपी नेता नाराज हैं. कहा जाता है कि पूर्व मुख्यमंत्री येदियुरप्पा पारिवारिक राजनीति का विरोध करने की नीति से नाखुश हैं. येदियुरप्पा के बेटे बी वाई विजयेंद्र को उपयुक्त दर्जा नहीं दिया गया था और उन्हें विश्वास में नहीं लिया गया था. हाल ही में येदियुरप्पा ने घोषणा की कि वह चुनाव से सेवानिवृत्त होंगे. माना जा रहा है कि यह भाजपा आलाकमान के लिए एक तीव्र असंतोष का संदेश है. येदियुरप्पा का मानना था कि मुख्यमंत्री पद छोड़ने के बाद भी सरकार और पार्टी को उनके मार्गदर्शन में आगे बढ़ेगी. साथ ही उनके बेटे विजयेंद्र को मुख्यमंत्री बोम्मई की सरकार में उपमुख्यमंत्री या महत्वपूर्ण मंत्रालय का पद दिया जाएगा. चूंकि इनमें से कोई भी पूरा नहीं हुआ है. तो ऐसा लगता है कि येदियुरप्पा ने आलाकमान में विश्वास खो दिया है. माना जा रहा है कि येदियुरप्पा के संन्यास की घोषणा 'भाजपा के साथ संबद्धता' तोड़ने की घोषणा है.