नई दिल्ली: फिलीपींस और चीन के बीच समुद्री संघर्ष के कुछ दिनों बाद दक्षिण चीन सागर में भारत द्वारा अपनी ताकत बढ़ाने के रूप में देखा जा सकता है. भारतीय नौसेना का पनडुब्बी रोधी युद्धपोत आईएनएस कदमट्ट इस सप्ताह के शुरू में मनीला बंदरगाह पर पहुंचा. दक्षिण चीन सागर में क्षेत्रीय तनाव के नवीनतम प्रकरण में एक विवादित चट्टान के पास फिलीपींस की एक नाव और एक चीनी जहाज के बीच टक्कर हो गई. फिलीपींस ने चीन पर उत्पीड़न, बाधा और जोखिम भरे युद्धाभ्यास सहित उकसावे वाली कार्रवाइयों में शामिल होने का आरोप लगाया.
यह घटना फिलीपींस के पिछले दावे के बाद हुई है कि चीन ने उसके तीन जहाजों को रोकने के लिए पानी की बौछारों का इस्तेमाल किया था. दक्षिण चीन सागर चीन, फिलीपींस और अन्य देशों से जुड़े क्षेत्रीय विवादों का केंद्र बिंदु बना हुआ है. विशेष रूप से फिलीपींस द्वारा चीन पर 10 दिसंबर को स्प्रैटली द्वीप समूह में दूसरे थॉमस शोल में नागरिक आपूर्ति जहाजों को निशाना बनाने का आरोप लगाया गया था. इसमें एक नाव को कथित तौर पर चीन तटरक्षक जहाज द्वारा टकरा दिया गया था. पश्चिमी फिलीपींस सागर के लिए राष्ट्रीय कार्य बल ने दावा किया कि चीन ने पानी की बौछार का उपयोग करके एक नाव के इंजन को गंभीर क्षति पहुँचाई.
हालाँकि, चीन तट रक्षक ने पलटवार करते हुए फिलीपींस की नाव पर जानबूझकर टक्कर मारने और कई चेतावनियों की अनदेखी करने का आरोप लगाया. इस बीच, रिपोर्टों के अनुसार दक्षिण चीन सागर में फिलिपिंस के मछुआरों और सैनिकों को क्रिसमस उपहार और प्रावधान देने का इरादा रखने वाले नागरिक नौकाओं के एक काफिले ने चीनी जहाजों द्वारा लगातार निगरानी और पीछा करने के कारण अपना मिशन रद्द कर दिया. घटना के दो दिन बाद, आईएनएस कदमत मनीला बंदरगाह पर पहुंचा.
महासागरों में 'दोस्ती के पुलों' को मजबूत करते हुए भारतीय नौसेना का स्वदेश निर्मित एएसडब्ल्यू कार्वेट आईएनएस कदमत, प्रमुख इंडो-पैसिफिक साझेदार देशों में लंबी दूरी की तैनाती पर 12 दिसंबर को फिलीपींस पहुंचा. इसका फिलीपींस नौसेना ने गर्मजोशी से स्वागत किया. मनीला में भारतीय दूतावास ने एक बयान में यह जानकारी दी.
आईएनएस कदमत्त 13 दिसंबर को फिलीपींस नौसेना के एक अपतटीय गश्ती जहाज बीआरपी रेमन अलकराज के साथ एक समुद्री साझेदारी अभ्यास किया. आईएनएस कदमत्त वर्तमान में पश्चिम फिलीपींस सागर में लंबी दूरी की परिचालन तैनाती पर है. उल्लेखनीय बात यह है कि यह घटनाक्रम इस साल जून में फिलीपींस के विदेश सचिव एनरिक मनालो की भारत यात्रा के दौरान नई दिल्ली और मनीला द्वारा रक्षा और समुद्री सहयोग में सहयोग बढ़ाने पर सहमति के बाद हुआ है.
रक्षा सहयोग पर दोनों मंत्रियों ने इस क्षेत्र में एक साथ काम करना जारी रखने में गहरी रुचि व्यक्त की. इसमें रक्षा एजेंसियों के बीच नियमित या उन्नत आधिकारिक स्तर की बातचीत, मनीला में रेजिडेंट डिफेंस कार्यालय खोलना, रियायती लाइन के लिए भारत की पेशकश पर विचार करना शामिल है. विदेश मंत्री एस जयशंकर और मनालो के बीच एक बैठक के बाद जारी एक संयुक्त बयान में यह कहा गया. आगे कहा गया कि फिलीपींस की रक्षा आवश्यकताओं को पूरा करने, नौसैनिक संपत्तियों के अधिग्रहण और समुद्री सुरक्षा और आपदा प्रतिक्रिया पर प्रशिक्षण और संयुक्त अभ्यास के विस्तार सहित अन्य का श्रेय दिया जाएगा.
दोनों देशों के लिए समुद्री क्षेत्र के बढ़ते महत्व को स्वीकार करते हुए दोनों मंत्रियों ने द्विपक्षीय समुद्री वार्ता और हाइड्रोग्राफी पर बढ़ते सहयोग का स्वागत किया. दोनों मंत्रियों ने समुद्री क्षेत्र में जागरूकता की उपयोगिता पर जोर दिया और इस संदर्भ में भारतीय नौसेना और फिलीपींस तट रक्षक के बीच व्हाइट शिपिंग समझौते के लिए मानक संचालन प्रक्रिया (एसओपी) के शीघ्र संचालन का आह्वान किया. वे भारतीय तट रक्षक और फिलीपींस तट रक्षक के बीच उन्नत समुद्री सहयोग पर समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर करने के लिए उत्सुक हैं.
फिर इस साल अगस्त में फिलीपींस ने 2023-2028 की अवधि के लिए अपनी तीसरी राष्ट्रीय सुरक्षा नीति (एनएसपी) शुरू की. ये राष्ट्रीय संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता पर एक प्रमुख बिंदु के रूप में जोर देती है. इससे भारत को चीन की आक्रामकता के सामने दक्षिण पूर्व एशिया में अपने रक्षा पदचिह्न को और बढ़ावा देने का एक अच्छा अवसर मिलता है.
फिलीपींस के राष्ट्रपति फर्डिनेंड मार्कोस जूनियर द्वारा जारी नई नीति में देश के राष्ट्रीय सुरक्षा हितों के रूप में निम्नलिखित की पहचान की गई. राष्ट्रीय संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता, राजनीतिक स्थिरता, शांति और सार्वजनिक सुरक्षा, आर्थिक मजबूती और एकजुटता, पारिस्थितिक संतुलन और जलवायु परिवर्तन लचीलापन, राष्ट्रीय पहचान, सद्भाव और उत्कृष्टता की संस्कृति, साइबर, सूचना और संज्ञानात्मक सुरक्षा और क्षेत्रीय और अंतर्राष्ट्रीय शांति और एकजुटता शामिल है.
फिलीपींस दक्षिण पूर्व एशिया के उन देशों में से है जिनका दक्षिण चीन सागर में चीन के साथ क्षेत्रीय विवाद है. 2016 में हेग में अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय (ICJ) ने फैसला सुनाया कि चीन ने दुनिया के सबसे व्यस्त वाणिज्यिक शिपिंग मार्गों में से एक दक्षिण चीन सागर में फिलीपींस के अधिकारों का उल्लंघन किया है. अदालत ने चीन पर फिलीपींस की मछली पकड़ने और पेट्रोलियम खोज में हस्तक्षेप करने, पानी में कृत्रिम द्वीप बनाने और चीनी मछुआरों को क्षेत्र में मछली पकड़ने से रोकने में विफल रहने का आरोप लगाया.
ट्रिब्यूनल ने माना कि फिलीपींस के मछुआरों को दक्षिण चीन सागर में मिस-चीफ रीफ और स्कारबोरो द्वीपों में मछली पकड़ने का पारंपरिक अधिकार प्राप्त था और चीन ने उनकी पहुंच को प्रतिबंधित करके इन अधिकारों में हस्तक्षेप किया था. अदालत ने माना कि चीनी कानून प्रवर्तन जहाजों ने अवैध रूप से टकराव का गंभीर खतरा पैदा किया जब उन्होंने क्षेत्र में फिलीपीन जहाजों को प्रभावित किया.
भारत चीनी जुझारू व्यवहार से अपने संबंधित सुरक्षा हितों की रक्षा के लिए फिलीपींस और दक्षिण पूर्व एशियाई देशों के संगठन (आसियान) के कुछ अन्य सदस्यों के साथ घनिष्ठ रक्षा संबंध विकसित कर रहा है. ऑब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन थिंक टैंक में स्ट्रैटेजिक स्टडीज प्रोग्राम की फेलो प्रेमेशा साहा के मुताबिक, दक्षिण पूर्व एशिया के देश अपने रक्षा साझेदारों में विविधता लाने की कोशिश कर रहे हैं.
भारत एक मजबूत रक्षा और सुरक्षा भागीदार के रूप में उभर रहा है. साहा ने एनएसपी की रिलीज के तुरंत बाद ईटीवी भारत को बताया था. यह भारत के लिए उस क्षेत्र के देशों के साथ अपने रक्षा संबंधों का विस्तार करने का एक अच्छा अवसर है. भारत और दक्षिण पूर्व एशियाई देशों के बीच संबंध अब सांस्कृतिक और सभ्यता संबंधों तक सीमित नहीं हैं.
दक्षिण चीन सागर में भारत की रुचि रणनीतिक, आर्थिक और सुरक्षा विचारों के संयोजन से प्रेरित है. हालाँकि, भारत दक्षिण चीन सागर में क्षेत्रीय विवादों का दावेदार नहीं है, लेकिन इस क्षेत्र में नौसैनिक उपस्थिति बनाए रखने के लिए उसके पास कई कारण हैं.
दक्षिण चीन सागर वैश्विक व्यापार के लिए एक महत्वपूर्ण जलमार्ग है. इसमें भारत के व्यापार का एक महत्वपूर्ण हिस्सा भी शामिल है. इस क्षेत्र में नौसैनिक उपस्थिति भारत को संचार की अपनी समुद्री लाइनों की रक्षा करने और ऊर्जा संसाधनों के निर्बाध प्रवाह को सुनिश्चित करने की अनुमति देती है.
अन्य देशों की तरह भारत भी क्षेत्रीय स्थिरता और समुद्री सुरक्षा में किसी भी संभावित व्यवधान को लेकर चिंतित है. नौसैनिक उपस्थिति से भारत क्षेत्र में शांति और सुरक्षा बनाए रखने में योगदान दे सकता है. भारत हिंद-प्रशांत क्षेत्र के देशों के साथ अपनी रणनीतिक साझेदारी को मजबूत कर रहा है. इसमें दक्षिण चीन सागर में रुचि रखने वाले देश भी शामिल हैं. क्षेत्र में नौसैनिक गतिविधियों में शामिल होने से भारत को समान विचारधारा वाले देशों के साथ सहयोग करने और नियम-आधारित व्यवस्था में योगदान करने की अनुमति मिलती है.
भारत ने दक्षिण चीन सागर में नौवहन और हवाई उड़ान की स्वतंत्रता की लगातार वकालत की है और समुद्र के कानून पर संयुक्त राष्ट्र कन्वेंशन (यूएनसीएलओएस) सहित अंतरराष्ट्रीय कानून के अनुसार शांतिपूर्ण तरीकों से विवादों को हल करने के महत्व पर जोर दिया है. सक्रिय नौसैनिक उपस्थिति इन सिद्धांतों के प्रति भारत की प्रतिबद्धता को मजबूत करती है और राजनयिक जुड़ाव में मदद करती है.
दक्षिण चीन सागर में चीन की बढ़ती दादागिरी ने पड़ोसी देशों और अन्य हितधारकों के बीच चिंता बढ़ा दी है. भारत उस क्वाड का हिस्सा है जिसमें अमेरिका, जापान और ऑस्ट्रेलिया भी शामिल है जो एक स्वतंत्र और खुले इंडो-पैसिफिक को सुनिश्चित करना चाहते हैं. ये एक ऐसा क्षेत्र है जो जापान के पूर्वी तट से अफ्रीका के पूर्वी तट तक फैला हुआ है.