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प्रदूषण से खतरे में 'हिमालयन पिका' का अस्तित्व, बुग्याल बचाने के लिए चलेगी मुहिम

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Published : May 18, 2022, 12:25 PM IST

केदारनाथ धाम आने वाले यात्री अपने साथ प्लास्टिक कचरा भी ला रहे हैं. जिन्हें वे बुग्यालों में फेंक रहे हैं. प्लास्टिक कचरे से हिमालयी क्षेत्रों के साथ ही यहां पाये जाने वाले पिका यानी बिना पूंछ वाले चूहे के अस्तित्व पर खतरा मंडरा रहा है. ऐसे में डीएम मयूर दीक्षित ने यात्रियों से प्लास्टिक कचरे को अपने साथ वापस ले जाने की अपील की है.

Himalayan Rat Pika
केदारनाथ यात्रा समाचार

रुद्रप्रयाग: किसी दिन आप रुद्रप्रयाग के बुग्यालों में ट्रैकिंग करने जाएं और आपको वहां बिना पूंछ वाला चूहा दिख जाए तो आप क्या करेंगे? यकीन मानिए आप चिल्लाए बिना नहीं रहेंगे और उस चूहे को देखते ही रह जाएंगे. बुग्यालों में जैव विविधता को बनाये रखने में इस छोटे हिमालयन पिका की महत्वपूर्ण भूमिका है. वहां के इको सिस्टम का यह अभिन्न अंग है. लेकिन, टूरिस्टों की लापरवाही के चलते हिमालयन पिका के अस्तित्व पर खतरा मंडरा रहा है.

दरअसल, केदारनाथ यात्रा में बड़ी संख्या में श्रद्धालुओं के पहुंचने से गंदगी भी फैलने लगी है. तीर्थयात्री धाम पहुंचने के बाद यहां-वहां कूड़ा-कचरा फेंक रहे हैं, जो भविष्य के लिए किसी खतरे से कम नहीं है. साल 2013 की केदारनाथ आपदा आज भी सभी को याद है. जिस कारण हजारों लोगों ने अपनी जान गंवाई थी और सैकड़ों लोग बेघर हो गये थे. बावजूद इसके अभी भी सबक नहीं लिया जा रहा है, जो चिंता का विषय है.

प्रदूषण से त्रस्त केदारघाटी

बुग्यालों में प्लास्टिक कचरा का अंबार: बता दें कि 6 मई को बाबा केदारनाथ के कपाट आम श्रद्धालुओं के दर्शनार्थ के लिए खोल दिये गए. तब से लेकर अब तक बाबा के दरबार में दो लाख से अधिक श्रद्धालु पहुंच चुके हैं. हर दिन हजारों की संख्या में केदारनाथ पहुंच रहे श्रद्धालु पैदल मार्ग से लेकर धाम तक चारों ओर फैले बुग्यालों में प्लास्टिक कचरा फेंक रहे हैं. जिसके कारण धाम की सुंदरता भी बदरंग होती जा रही है. प्लास्टिक कचरे को लेकर भी जिला प्रशासन कोई बड़ा कदम नहीं उठा रहा है. यह प्लास्टिक कचरा आपदा की दृष्टि से भी संवेदनशील है.

हिमालयी क्षेत्रों को नुकसान: 2013 की केदारनाथ आपदा आज भी सभी के जेहन में है. केदारनाथ धाम से 7 किमी ऊपर वासुकीताल झील फटने के बाद जो तांडव मचा था, उसे पूरे विश्व ने देखा. इस आपदा को आज भी याद कर रूह कांपने लगती है. इस आपदा के आने का मुख्य कारण यही रहा कि हिमालयी क्षेत्रों में मनुष्य की गतिविधियां अधिक बढ़ती गई और जब भी हिमालयी क्षेत्रों में मनुष्य का ज्यादा हस्तक्षेप हुआ है, तब-तब आपदाओं ने जन्म लिया है.

प्लास्टिक कचरे से लैंडस्लाइड का खतरा: मनुष्य हिमालयी क्षेत्रों में स्थित बुग्यालों में प्लास्टिक कचरे को लेकर जाता है और यहां-वहां प्लास्टिक कचरे को छोड़ देता है. इस प्लास्टिक कचरे के कारण बुग्यालों को भारी नुकसान पहुंचता है. इससे जमीन में घास नहीं उगती और जमीन के खाली होने से लैंडस्लाइड का खतरा पैदा हो जाता है. पारस्थितिकीय तंत्र गड़बड़ाने से दिक्कतें पैदा हो जाती हैं. इन दिनों केदारनाथ धाम में तीर्थयात्री प्लास्टिक बोतल, चिप्स आदि सामान को लेकर जाते हैं और प्लास्टिक कचरे को बुग्यालों में फेंक रहे हैं. इससे पर्यावरण को भारी नुकसान पहुंचता है. इसके कारण हिमालयी क्षेत्रों में पाये जाने वाले बिना पूंछ के चूहे का अस्तित्व भी संकट में है.

ये भी पढ़ें: 'चारधाम यात्रा की गति को करेंगे धीमा', दिव्य-भव्य यात्रा से पहले उत्तराखंड सरकार का सरेंडर!

पर्यावरणविदों ने जताई चिंता: पर्यावरणविद् देव राघवेंद्र बद्री का कहना है कि केदारनाथ यात्रा पर आने वाले तीर्थयात्री अपने साथ खाने-पीने का सामान लेकर आते हैं और यहां-वहां फेंक देते हैं. इससे प्लास्टिक कचरा सड़ता नहीं है. जिस जगह पर यह गिरा होता है, वहां घास उग पाना मुश्किल हो जाता है. जिससे पारिस्थितिकीय तंत्र भी गड़बड़ाने लग जाता है. यह प्लास्टिक कचरा घास को जला देता है और जमीन में घास नहीं उग पाती है. जमीन के खाली होने से लैंडस्लाइड होने का खतरा बढ़ जाता है. जहां घास जमी होती है, वहां लैंडस्लाइड नहीं होता है.

बिना पूंछ का चूहा: हिमालयी क्षेत्रों में विशेष प्रकार का बिना पूंछ का चूहा पाया जाता है, जिसे हिमालयन पिका कहा जाता है. इस जानवर का इको सिस्टम से बहुत गहरा रिश्ता है. प्लास्टिक कचरे के कारण इसके जीवन पर भी खतरा मंडरा रहा है. केदारनाथ धाम के बगल से मंदाकिनी नदी बह रही है. प्लास्टिक कचरे से नदी को भी भारी नुकसान पहुंचता है. यात्रा पर जाने वाले तीर्थयात्रियों को प्लास्टिक कचरे को अपने साथ वापस ले जाना चाहिए. अन्यथा इस प्लास्टिक कचरे के कारण भविष्य में बहुत बड़ी घटना हो सकती है.

हिमालयन पिका की खासियत: बिना पूंछ वाला चूहा हिमालयन पिका परिवार में छोटे स्तनधारियों की एक प्रजाति है. यह तिब्बत, उत्तराखंड के दूरदराज के इलाकों और नेपाल में भी ऊंचाई पर पाया जाता है. हिमालयन पिका लगभग 17 सेमी लंबा एक छोटा स्तनपायी है और दिखने में रॉयल पिका के समान है. यह विशेष रूप से सुबह जल्दी और फिर से रात में सक्रिय होता है. विभिन्न प्रकार की पौधों को खाता है.

यात्रियों से अपील: डीएम मयूर दीक्षित ने कहा केदारनाथ धाम में वेस्ट मैनेजमेंट के तहत कार्य किया जा रहा है. तीर्थयात्रियों से निवेदन किया जा रहा है कि वे पानी की बोतल और चिप्स के प्लास्टिक कचरे को अपने साथ वापस लेकर जाएं. धाम में सफाई व्यवस्था को लेकर नगर पंचायत को कड़े निर्देश दिए गए हैं. 19 मई को पैदल मार्ग से केदारनाथ धाम तक एक विशेष अभियान चलाया जायेगा, जिसमें यात्रियों से निवेदन किया जायेगा कि वे धाम की सुंदरता को खराब ना करें और प्लास्टिक कचरे को अपने साथ वापस लेकर जाएं.

रुद्रप्रयाग: किसी दिन आप रुद्रप्रयाग के बुग्यालों में ट्रैकिंग करने जाएं और आपको वहां बिना पूंछ वाला चूहा दिख जाए तो आप क्या करेंगे? यकीन मानिए आप चिल्लाए बिना नहीं रहेंगे और उस चूहे को देखते ही रह जाएंगे. बुग्यालों में जैव विविधता को बनाये रखने में इस छोटे हिमालयन पिका की महत्वपूर्ण भूमिका है. वहां के इको सिस्टम का यह अभिन्न अंग है. लेकिन, टूरिस्टों की लापरवाही के चलते हिमालयन पिका के अस्तित्व पर खतरा मंडरा रहा है.

दरअसल, केदारनाथ यात्रा में बड़ी संख्या में श्रद्धालुओं के पहुंचने से गंदगी भी फैलने लगी है. तीर्थयात्री धाम पहुंचने के बाद यहां-वहां कूड़ा-कचरा फेंक रहे हैं, जो भविष्य के लिए किसी खतरे से कम नहीं है. साल 2013 की केदारनाथ आपदा आज भी सभी को याद है. जिस कारण हजारों लोगों ने अपनी जान गंवाई थी और सैकड़ों लोग बेघर हो गये थे. बावजूद इसके अभी भी सबक नहीं लिया जा रहा है, जो चिंता का विषय है.

प्रदूषण से त्रस्त केदारघाटी

बुग्यालों में प्लास्टिक कचरा का अंबार: बता दें कि 6 मई को बाबा केदारनाथ के कपाट आम श्रद्धालुओं के दर्शनार्थ के लिए खोल दिये गए. तब से लेकर अब तक बाबा के दरबार में दो लाख से अधिक श्रद्धालु पहुंच चुके हैं. हर दिन हजारों की संख्या में केदारनाथ पहुंच रहे श्रद्धालु पैदल मार्ग से लेकर धाम तक चारों ओर फैले बुग्यालों में प्लास्टिक कचरा फेंक रहे हैं. जिसके कारण धाम की सुंदरता भी बदरंग होती जा रही है. प्लास्टिक कचरे को लेकर भी जिला प्रशासन कोई बड़ा कदम नहीं उठा रहा है. यह प्लास्टिक कचरा आपदा की दृष्टि से भी संवेदनशील है.

हिमालयी क्षेत्रों को नुकसान: 2013 की केदारनाथ आपदा आज भी सभी के जेहन में है. केदारनाथ धाम से 7 किमी ऊपर वासुकीताल झील फटने के बाद जो तांडव मचा था, उसे पूरे विश्व ने देखा. इस आपदा को आज भी याद कर रूह कांपने लगती है. इस आपदा के आने का मुख्य कारण यही रहा कि हिमालयी क्षेत्रों में मनुष्य की गतिविधियां अधिक बढ़ती गई और जब भी हिमालयी क्षेत्रों में मनुष्य का ज्यादा हस्तक्षेप हुआ है, तब-तब आपदाओं ने जन्म लिया है.

प्लास्टिक कचरे से लैंडस्लाइड का खतरा: मनुष्य हिमालयी क्षेत्रों में स्थित बुग्यालों में प्लास्टिक कचरे को लेकर जाता है और यहां-वहां प्लास्टिक कचरे को छोड़ देता है. इस प्लास्टिक कचरे के कारण बुग्यालों को भारी नुकसान पहुंचता है. इससे जमीन में घास नहीं उगती और जमीन के खाली होने से लैंडस्लाइड का खतरा पैदा हो जाता है. पारस्थितिकीय तंत्र गड़बड़ाने से दिक्कतें पैदा हो जाती हैं. इन दिनों केदारनाथ धाम में तीर्थयात्री प्लास्टिक बोतल, चिप्स आदि सामान को लेकर जाते हैं और प्लास्टिक कचरे को बुग्यालों में फेंक रहे हैं. इससे पर्यावरण को भारी नुकसान पहुंचता है. इसके कारण हिमालयी क्षेत्रों में पाये जाने वाले बिना पूंछ के चूहे का अस्तित्व भी संकट में है.

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पर्यावरणविदों ने जताई चिंता: पर्यावरणविद् देव राघवेंद्र बद्री का कहना है कि केदारनाथ यात्रा पर आने वाले तीर्थयात्री अपने साथ खाने-पीने का सामान लेकर आते हैं और यहां-वहां फेंक देते हैं. इससे प्लास्टिक कचरा सड़ता नहीं है. जिस जगह पर यह गिरा होता है, वहां घास उग पाना मुश्किल हो जाता है. जिससे पारिस्थितिकीय तंत्र भी गड़बड़ाने लग जाता है. यह प्लास्टिक कचरा घास को जला देता है और जमीन में घास नहीं उग पाती है. जमीन के खाली होने से लैंडस्लाइड होने का खतरा बढ़ जाता है. जहां घास जमी होती है, वहां लैंडस्लाइड नहीं होता है.

बिना पूंछ का चूहा: हिमालयी क्षेत्रों में विशेष प्रकार का बिना पूंछ का चूहा पाया जाता है, जिसे हिमालयन पिका कहा जाता है. इस जानवर का इको सिस्टम से बहुत गहरा रिश्ता है. प्लास्टिक कचरे के कारण इसके जीवन पर भी खतरा मंडरा रहा है. केदारनाथ धाम के बगल से मंदाकिनी नदी बह रही है. प्लास्टिक कचरे से नदी को भी भारी नुकसान पहुंचता है. यात्रा पर जाने वाले तीर्थयात्रियों को प्लास्टिक कचरे को अपने साथ वापस ले जाना चाहिए. अन्यथा इस प्लास्टिक कचरे के कारण भविष्य में बहुत बड़ी घटना हो सकती है.

हिमालयन पिका की खासियत: बिना पूंछ वाला चूहा हिमालयन पिका परिवार में छोटे स्तनधारियों की एक प्रजाति है. यह तिब्बत, उत्तराखंड के दूरदराज के इलाकों और नेपाल में भी ऊंचाई पर पाया जाता है. हिमालयन पिका लगभग 17 सेमी लंबा एक छोटा स्तनपायी है और दिखने में रॉयल पिका के समान है. यह विशेष रूप से सुबह जल्दी और फिर से रात में सक्रिय होता है. विभिन्न प्रकार की पौधों को खाता है.

यात्रियों से अपील: डीएम मयूर दीक्षित ने कहा केदारनाथ धाम में वेस्ट मैनेजमेंट के तहत कार्य किया जा रहा है. तीर्थयात्रियों से निवेदन किया जा रहा है कि वे पानी की बोतल और चिप्स के प्लास्टिक कचरे को अपने साथ वापस लेकर जाएं. धाम में सफाई व्यवस्था को लेकर नगर पंचायत को कड़े निर्देश दिए गए हैं. 19 मई को पैदल मार्ग से केदारनाथ धाम तक एक विशेष अभियान चलाया जायेगा, जिसमें यात्रियों से निवेदन किया जायेगा कि वे धाम की सुंदरता को खराब ना करें और प्लास्टिक कचरे को अपने साथ वापस लेकर जाएं.

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