जबलपुर। एक्शन फिगर से खेलने वाले और मोबाइल में उलझे बचपन में भी चिड़िया से दोस्ती के किस्से सुनाई दे जाते हैं. जबलपुर की पंखुड़ी और गौरैया की दोस्ती ऐसी ही है. ये गौरैया पंखुड़ी को घायल अवस्था में मिली थी, चौथी क्लास में पढ़ने वाली पंखुड़ी उसे अपने घर लाईं और उसकी देखभाल करने लगी. अब गौरैया पंखुड़ी की अच्छी दोस्त बन गई है, वे दोनों साथ ही रहते हैं. बता दें कि ये गौरैया उड़ नहीं पाती, लेकिन पंखुड़ी के साथ फुदकती जरूर है और सबसे ज्याजा खास बात ये है कि अब गौरैया भी मोबाइल में वो गेम देखती है, जो पंखुड़ी खेलती है. आइए जानते हैं गौरैया और पंखुड़ी की अनोखी दोस्ती की कहानी-
गौरैया और पंखुड़ी में ऐसे हुई दोस्ती: शहर के रांझी इलाके में पंखुड़ी और गौरैया की दोस्ती चर्चा का विषय बनी हुई है. पंखुड़ी वर्मा चौथी क्लास में पढ़ती हैं, एक दिन जब वे अपने दोस्तों के साथ जीसीएफ फैक्ट्री के ओलंपिक ग्राउंड में खेल रही थी, तब वहां एक प्यासी गौरैया चिड़िया पानी खोज रही थी. इस बात का एहसास पंखुड़ी को हुआ तो पंखुड़ी ने अपनी अंजुली से गौरैया को पानी पिला दिया, बस उस एक अंजुली पानी ने गौरैया और पंखुड़ी की दोस्ती करा दी.
इसके बाद पंखुड़ी अपने दोस्तों के साथ खेलने के बाद घर की ओर लौटने लगी, लेकिन गौरैया ने पंखुड़ी का साथ नहीं छोड़ा और गौरैया उड़ते-उड़ते पंखुड़ी के साथ घर तक पहुंच गई. पंखुड़ी के पिता ने जब चिड़िया को घर के भीतर देखा तो उन्होंने पंखुड़ी से पूछा कि "आप इस चिड़िया को घर क्यों ले आई?", इस बात पर पंखुड़ी ने अपने पिता को बताया कि वह उसे लेकर नहीं आई है, बल्कि वह चिड़िया खुद ही अपने आप उनके साथ आ गई.
पंखुड़ी के साथ मोबाइल देखती है गौरैया: उस दिन के बाद से गौरैया पंखुड़ी और उनके परिवार की सदस्य बनकर रह रही है. इस घर में 4 सदस्य हैं, लेकिन अब गौरैया ने भी इस घर को अपना लिया है. घर का सोफा गौरैया को बहुत पसंद है और ज्यादातर समय वह इस सोफे के ही आसपास रहती है. पंखुड़ी ने गौरैया का नाम 'मिनी' रखा है और पंखुड़ी और मिनी दिन भर सहेलियों की तरह खेलती दिखती हैं. कभी पंखुड़ी उसे चावल के दाने खिलाती है, कभी उसे पानी पिलाती है. यहां तक कि अब पंखुड़ी के साथ गोरैया भी मोबाइल देखना सीख गई है, पंखुड़ी मोबाइल पर जो वीडियो गेम खेलती है, गौरैया उसे देखती रहती है. धीरे-धीरे पूरा परिवार गोरैया से प्यार करने लगा है और इस घर में सबसे ज्यादा आवाज गौरैया के चहकने की आती है.
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शहरों का हिस्सा बनने के लिए तैयार नहीं सुंदर पक्षी: गौरैया चिड़िया हमारे वातावरण में कभी बहुतायत में पाई जाती थी, लेकिन अब यह हमारे वातावरण से लगभग गायब हो गई है. लोग पहले इन चिड़ियों को दाना भी डालते थे, घर का बचा हुआ खाना बाहर रख दिया जाता था जिससे चिड़िया इसे चुग ले, लेकिन धीरे-धीरे लोग अपनी जरूरतों में इतने खो गए कि उन्होंने अपने वातावरण में रहने वाले दूसरे जीवो का ध्यान रखना ही बंद कर दिया और गौरैया हमसे रूठ कर न जाने कहां चली गई. केवल गौरैया नहीं बल्कि हमारे आसपास रहने वाली कई चिड़िया जैसे मैना, बुलबुल यहां तक कि कौआ तक अब दिखाई नहीं देते. कभी-कभी लोगों के पाले हुए कबूतर नजर आ जाते हैं, लेकिन हमारे वातावरण में रहने वाले यह सुंदर पक्षी हमारे शहरों का हिस्सा बनने के लिए तैयार नहीं है.
अब ऐसे चहचहाएगी गौरैया: पंखुड़ी ने याद दिलाया है कि "हमें गौरैया का ध्यान रखना होगा, तब हमें प्रकृति की चहचहाट सुनाई देगी, नहीं तो आने वाली पीढ़ियां इस बात का एहसास ही नहीं कर पाएंगे कि हमारे वातावरण में पक्षी भी हुआ करते थे." पंखुड़ी और गौरैया की दोस्ती नैसर्गिक है, जितनी जरूरत गौरैया को पंखुड़ी की है, उतनी ही जरूरत हम सब को भी गौरैया की है, इसलिए अपने आसपास ऐसा वातावरण तैयार करें कि हम से बिछड़ी गौरैया दोबारा हमारे आसपास नजर आने लगे.